देहरादून, उत्तराखण्ड
उत्तराखण्ड में पारंपरिक मेलों और लोक उत्सवों को पर्यटन और आर्थिकी से जोड़ने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल ने राज्य के मेलों के लिए एक नए युग की शुरुआत कर दी है। जी हां उत्तराखण्ड में साल भर में लगभग 300 से अधिक छोटे-बड़े मेलों का आयोजन होता है। कुछ मेले देवी-देवताओं की पूजा के लिए मनाए जाते हैं, तो कुछ लोक जीवन और व्यापार से जुड़े होते हैं।

इसलिए राज्य के यह मेले केवल उत्सव नहीं हैं, बल्कि यहां की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक पहचान का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। हर मेला अपनी अलग लोककथा, परंपरा और आस्था को जीवित रखता है। चंपावत का देवीधुरा बग्वाल मेला पत्थर युद्ध की परंपरा के लिए प्रसिद्ध है, चमोली का गौचर मेला पशु व्यापार और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का संगम है, बागेश्वर के उत्तरायणी मेले में होने वाला चोलिया नृत्य पूरे कुमाऊं की सांस्कृतिक धड़कन बन जाता है, अल्मोड़ा का नंदा देवी मेला देवी की झांकियों, लोकगीतों और नृत्यों से भक्ति और उल्लास का संगम प्रस्तुत करता है। वहीं पिथौरागढ़ का जौलजीबी मेला भारत और नेपाल की दोस्ती और व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करने का प्रतीक है। उत्तराखण्ड के ये मेले अर्थव्यवस्था को सहारा देने और सांस्कृतिक जुड़ाव को बनाए रखने का कार्य अच्छे से कर रहे हैं।



