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इतिहास

कर्तव्य भाव से युक्त सामुदायिक और नियंत्रित शारीरिक बल से निर्मित होता है अनुशासन – श्री गुरुजी

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कर्तव्य भाव से युक्त सामुदायिक और नियंत्रित शारीरिक बल से निर्मित होता है अनुशासन – श्री गुरुजी

"विद्यार्थियों की ग्रहणशील आयु में, उनके मन पर सतत् संस्कारों से यह अंकित कर देना चाहिए कि कर्त्तव्य सर्वोपरि है और सब अधिकार-चाहे व्यक्ति के हों, चाहे समूह के, कर्त्तव्य सापेक्ष हैं और कर्त्तव्य की तुलना में गौण हैं। विद्यार्थियों से समुचित कर्त्तव्य - भावना जागृत करने के लिए हमारी शिक्षा प्रणाली ध्येयोन्मुख होनी चाहिए। यदि हम अपनी पवित्र मातृभूमि के प्रति तीव्र त्याग भावना का दृढ़ आधार निर्माण करते हैं, तो सम्पूर्ण समाज की आकांक्षा, भावना और बुद्धि में सामंजस्य प्रस्थापित होगा। जब इस सामूहिक इच्छा-आकांक्षा के साथ सामुदायिक और नियंत्रित शारीरिक बल का संयोग होगा, तो वही बात निर्माण होगी जिसे लोग अनुशासन कहते हैं।”

।। श्री गुरूजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा, पृष्ठ – 139 ।।