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संघ की स्थापना समाज को सामर्थ्यवान बनाने के लिए हुई थी – नरेंद्र ठाकुर जी

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गोरखपुर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर जी ने रामगढ़ताल स्थित योगिराज गम्भीरनाथ प्रेक्षागृह में संघ शताब्दी वर्ष के अवसर पर पत्रिका ध्येय मार्ग के विशेषांक “राष्ट्र साधना के सौ वर्ष” का लोकार्पण किया।। उन्होंने कहा कि संघ की 100 वर्ष की यात्रा के उपलक्ष्य में विभिन्न कार्यक्रमों की श्रृंखला प्रारम्भ हो चुकी है, उसी कड़ी में यह भी है। विजयादशमी 1925 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रारंभ हुआ और 2025 में संघ अपने 100 वर्ष पूर्ण करने जा रहा है। संघ की स्थापना किसी के विरोध के लिए नहीं, बल्कि अपने समाज को सामर्थ्यवान बनाने के लिए की गई।। संपूर्ण हिन्दू समाज का संगठन करना है, इस लक्ष्य के साथ डॉ. हेडगेवार ने संघ की स्थापना की। डॉ. हेडगेवार का जीवन देशभक्ति से ओत प्रोत था। अनुशीलन समिति के सदस्य थे। आंदोलन के दौरान राजद्रोह का अभियोग लगाकर एक वर्ष की सजा दी गई, पर वे विचलित नहीं हुए। हिन्दू समाज को जगाना आवश्यक है, यह सोचकर संघ स्थापना पंद्रह वर्षों के अंदर पूरे देश में कार्य पहुंचा दिया।

उन्होंने कहा कि हरेक स्थान का अपना-अपना एक विशेष प्रसंग है। हर स्थान की अपनी अलग-अलग चुनौतियां रही हैं। केरल, त्रिपुरा की परिस्थितियां आपने देखी हैं। “समाज संघ जैसा बन जाए तो ‘संघ’ की आवश्यकता नहीं रहेगी”, ऐसा डॉक्टर साहब कहते थे। समाज को साथ लेकर काम में लग जाएँ। समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने हेतु स्वयंसेवक लग गए। विभिन्न क्षेत्रों में 32 से अधिक संगठनों ने अपनी पहचान बना ली है। ‘मैं’ से ‘हम’ की ओर ले जाने वाले कार्य और कार्यकर्ता खड़े हुए। लेकिन इन विभिन्न संगठनों के साथ-साथ ‘संघ’ की मूल ‘शाखा’ का कार्य चलता रहा। आज पूरे देश में 83 हजार से अधिक शाखाएं दैनिक लग रही हैं, वही 26 हजार स्थानों पर 32 हजार से अधिक साप्ताहिक मिलन चल रहे हैं।

उन्होंने कहा कि ऐसे सभी विषय जो समाज को ठीक करते हैं, वह अपना कार्य है। फिर भी कुछ दिशा तय की गई है। पहला है – ‘सामाजिक समरसता’। आज भी छुआछूत दिखता है, यह ठीक है क्या? ‘हिन्दू समाज’ का एक मंदिर होना चाहिए, पानी का एक स्रोत होना चाहिए और एक श्मशान होना चाहिए।

दूसरा है – ‘कुटुम्ब प्रबोधन’। परिवार व्यवस्था को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। तीसरा विषय है – ‘पर्यावरण’। विकास के नाम पर हमने इस पृथ्वी का शोषण किया है, जिसका दुष्परिणाम देखने को मिल रहा है। पेड़ लगाएँ, पानी बचाएँ और प्लास्टिक को ‘ना’ कहें। चौथी बात है – ‘स्व’ के भाव का जागरण। स्वाधीनता प्राप्त करने के बाद वास्तव में ‘स्व’ आया क्या? व्यक्तिगत प्रयोग की चीजों में हम स्वदेशी का प्रयोग करें। और पाँचवां विषय है – ‘नागरिक कर्तव्यों का पालन’। कानून से कभी अनुशासन नहीं आता है, इसे अपने जीवन के आचरण में लाना होता है।

हम भारत के परम वैभव के लिए काम कर रहे हैं। दुनिया भारत की बात माने तो हमें उस तरह का कार्य करना होगा।

कार्यक्रम अध्यक्ष सुप्रसिद्ध व्यवसायी गैलेंट ग्रुप के चेयरमैन चंद्र प्रकाश अग्रवाल ने कहा कि संघ की 100 वर्ष की यात्रा समाज और राष्ट्र के लिए बहुत प्रेरणादायी रही। आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में संघ और उनके अन्य सहयोगी संगठनों ने अनुकरणीय कार्य किया है। विश्व संवाद केंद्र गोरखपुर द्वारा प्रकाशित यह विशेषांक संकलन बहुत ही पठनीय होगा, जिसमें संघ के 100 वर्षों की यात्रा का उल्लेख है। इसके लिए शुभकामनाएं।

कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन और भारत माता के चित्र पर पुष्पार्चन के साथ हुआ। मंचासीन अथितियों ने “राष्ट्र साधना के सौ वर्ष” विशेषांक का लोकार्पण किया।