गोपेश्वर (चमोली), उत्तराखण्ड
शीतकाल के आगमन के साथ देवभूमि उत्तराखण्ड में भगवान बदरी नारायण की शीतकालीन व्यवस्था विधि-विधान के साथ पूरी कर ली गई है। बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने के बाद बुधवार को भगवान के प्रतिनिधि और बालसखा उद्धवजी, देवताओं के खजांची कुबेरजी, भगवान के वाहन गरुड़जी और आदि शंकराचार्य की गद्दी डोली पारंपरिक तरीके से पांडुकेश्वर पहुँची।
गढ़वाल स्काउट बैंड की मधुर धुनों और ‘जय बदरीविशाल’ के जयकारों के बीच इस भव्य शोभा यात्रा ने मार्ग में उपस्थित श्रद्धालुओं को भाव-विभोर कर दिया।

पांडुकेश्वर पहुँचने के बाद उद्धवजी और कुबेरजी के विग्रह को रावल अमरनाथ नंबूदरी ने विधि-विधान के साथ योग-ध्यान बदरी मंदिर के गर्भगृह में शीतकालीन प्रवास के लिए विराजमान कराया। शीतकाल के महीनों में भगवान बदरी नारायण की पूजा-अर्चना इसी मंदिर में संपन्न होती है। पूरे गर्भगृह में मंत्रोच्चार, दीपों की रोशनी और पारंपरिक रीति-रिवाजों ने वातावरण को दिव्य आस्था से भर दिया।
इसके साथ ही गरुड़जी और आदि शंकराचार्य की गद्दी डोली जोशीमठ के लिए रवाना हो गई, जिन्हें गुरुवार को नृसिंह मंदिर में विशेष अनुष्ठान और पूजा के साथ प्रतिष्ठित कर दिया गया। शीतकाल में नृसिंह मंदिर ही बदरीनाथ धाम का आधिकारिक केंद्र माना जाता है, और हजारों श्रद्धालु भगवान बदरी नारायण के शीतकालीन दर्शन के लिए यहां पहुंचते हैं।
उत्तराखण्ड के ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में कठोर सर्दी के बीच देवधर्म ट्रेडिशन का यह स्थान परिवर्तन न मात्र धार्मिक परंपरा है, बल्कि देवभूमि की आस्था और प्राचीन संस्कृति का अनूठा उदाहरण भी है।



