मेरठ, उत्तर प्रदेश
जब इंसानियत का गला मजहबी अहंकार के फंदे में कसा जाए, तब समझ लीजिए कि वह मजहब नहीं, हैवानियत है। तीन तलाक – एक ऐसी बर्बर परंपरा जिसे देश की सर्वोच्च अदालत ने असंवैधानिक ठहराया, फिर भी वह मुस्लिम समाज में ‘मजहबी अधिकार’ के नाम पर आज भी औरतों की जिंदगी को नर्क बना रही है।
मेरठ की नाजरीन की कहानी किसी फिल्मी पटकथा जैसी नहीं, अपितु उस भयावह सच्चाई का चेहरा है, जहाँ औरत को केवल उपभोग की वस्तु समझा जाता है। दिल्ली के सीलमपुर निवासी नाजरीन के शौहर ने महज तीन शब्दों में रिश्ता खत्म कर दिया – “तलाक, तलाक, तलाक...” और इसके बाद शुरू हुआ ज़ुल्म का वो सिलसिला, जिसने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। नाजरीन को पीटा गया, चार बच्चों समेत घर से निकाल दिया गया और अब उसे तेजाब से जलाने व बेटे को जान से मारने की धमकी दी जा रही है। ये केवल एक नाजरीन की बात नहीं है। यह उस जहरीली सोच का आईना है जो मजहब के नाम पर महिलाओं से दरंदिगी करते हैं। आज सवाल यह है कि क्या मजहब के नाम पर महिलाओं का जीवन यूँ ही रौंदा जाता रहेगा ? जो सोच और व्यवस्था महिला को जीने का अधिकार नहीं देती, वह इंसानियत नहीं, बर्बरता है। अब समय आ गया है कि ऐसी मजहबी मानसिकता का पर्दाफाश किया जाए, जो समाज में नासूर बन चुकी है। सरकार ने तीन तलाक जैसी कुरूतियों के खिलाफ कानून तो बना दिया है लेकिन अब समय आ गया की इस्लामी महिलाएं भी अपने ऊपर हो रहे उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाये। पीड़िता ने दस जून को पुलिस से शिकायत की थी। एसपी सिटी आयुष विक्रम सिंह का कहना है कि तहरीर के आधार पर जांच कर कार्रवाई की जाएगी।