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छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन का उद्देश्य समान अवसर एवं शुद्ध प्रशासनिक प्रणाली प्रदान करना रहा – नरेंद्र ठाकुर

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख नरेंद्र ठाकुर ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज के शासन का उद्देश्य अपने अधीनस्थों को शान्ति, सहिष्णुता, सभी जाति-धर्मों के लिए समान अवसर और शुद्ध प्रशासनिक प्रणाली प्रदान करना था. उनके राजनीतिक आदर्श ऐसे थे कि हम उन्हें आज भी बिना किसी परिवर्तन के स्वीकार कर सकते हैं. नरेंद्र ठाकुर मंगलवार को होटल सूर्या में विश्व संवाद केन्द्र काशी द्वारा प्रकाशित चेतना प्रवाह के ‘हिन्दवी स्वराज विशेषांक’ के लोकार्पण समारोह में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने हिन्दू समाज के ‘स्व’ को जागृत करने के लिए मुगलों द्वारा ध्वस्त किये हिन्दू मन्दिरों का पुनरुद्धार किया. फारसी के स्थान पर मराठी और संस्कृत भाषा को प्राथमिकता दी. मुगल कर व्यवस्था को बदलकर अपनी कर प्रणाली लागू की. शिवाजी ने अपनी स्वयं की राजमुहर का निर्माण किया जो फारसी के स्थान पर संस्कृत भाषा में निर्मित की गई थी. उन्होंने राज्य को सुरक्षित रखने के लिए अनेक किलों का निर्माण किया. इसके अतिरिक्त कुशल सेना के साथ-साथ आधुनिक तकनीक का प्रयोग करते हुए नौसेना का भी निर्माण किया. छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने राज्य को आत्मनिर्भर बनाने की दृष्टि से कृषि को प्रधानता दी. किसानों को कृषि के लिए प्रोत्साहित किया.

शिवाजी की शासन व्यवस्था में शत्रु परिवार की महिला-बच्चों का हित और सम्मान भी निहित था

समारोह के अध्यक्ष सिक्किम के राज्यपाल लक्ष्मण आचार्य ने कहा कि इस विशेषांक का विमोचन न केवल “हिन्दवी स्वराज” के 350वें वर्ष पूर्ण होने और छत्रपति शिवाजी महाराज को स्मरण करने का अवसर प्रदान कर रहा है, वरन् भारत में “सुशासन” की जो परम्परा चली आ रही है, उसको भी समझने और जानने का एक सुन्दर अवसर है.

छत्रपति शिवाजी महाराज की शासन व्यवस्था और सोच इस प्रकार की थी कि उन्होंने जिन आक्रमणकारी मुगलों के विरुद्ध युद्ध किया, उनके परिवार की महिलाओं और बच्चों के हितों एवं सम्मान का भी ध्यान रखा. उनकी शासन प्रणाली अत्यन्त सुव्यवस्थित और पारदर्शी थी. उनको भारत के थोड़े भाग में मात्र 6-7 वर्षों तक ही शासन का अवसर प्राप्त हुआ, परन्तु इतने अल्पकाल में ही उन्होंने जो छाप छोड़ी, उसी से आज भी सुशासन के महत्वपूर्ण सूत्र हम प्राप्त कर रहे हैं. छत्रपति शिवाजी को पारंपरिक शिक्षा कुछ खास नहीं मिल पायी थी, परन्तु माता जीजाबाई ने भारतीय शास्त्रों और धर्म ग्रन्थों की जानकारी प्रदान की थी. छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के लिए मुगलों की रोकटोक और निषेध के आदेश के बावजूद काशी से जाकर पं. गंगा भट्ट ने उनका राजतिलक किया. जिससे पौराणिक नगरी काशी का सम्मान बढ़ा.

विषय प्रवर्तन करते हुए पत्रिका के प्रधान सम्पादक प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य की राज्याभिषेक की स्मृति को जीवंत करता है. चंद्रगुप्त मौर्य और छत्रपति शिवाजी के बीच समानता यह है कि दोनों महान शासक थे, लेकिन किसी राजवंश परंपरा के उत्तराधिकारी नहीं थे. यह विषय वस्तु इस विशेषांक का मुख्य आकर्षण है. विशेषांक में छत्रपति शिवाजी महाराज की नौसेना एवं मुस्लिम समुदाय के प्रतिनिधि के साथ-साथ औरंगजेब जैसे क्रूर मुगल शासक को मात देकर हिंदवी स्वराज की स्थापना का वर्णन है. साथ ही विशेषांक में शिवाजी के दो दिन के काशी गुप्त प्रवास एवं शिवाजी का राजतिलक करने वाले काशी के पंडित गंगा भट्ट की वंशावली भी है.

विशिष्ट अतिथिद्वय वाराणसी के महापौर आशोक तिवारी एवं जाणता राजा महानाट्य समिति, काशी प्रान्त के अध्यक्ष अभय सिंह ने विशेषांक की सराहना करते हुए कहा कि विशेषांक वर्तमान पीढ़ी को  शिवाजी की कार्यप्रणाली, कूटनीति और शासन व्यवस्था से परिचित कराएगा.

कार्यक्रम के प्रारम्भ में अतिथियों ने भारत माता एवं छत्रपति शिवाजी महाराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर पुष्पार्चन किया. स्वागत उद्बोधन विश्व संवाद केन्द्र काशी कार्यसमिति के अध्यक्ष डॉ. हेमन्त गुप्त एवं अतिथि परिचय सचिव प्रदीप चौरसिया ने कराया. धन्यवाद ज्ञापन पत्रिका के प्रबन्ध सम्पादक नागेन्द्र एवं संचालन कार्यक्रम संयोजक नवीन श्रीवास्तव ने किया.