मौसम और अध्यात्मिकता का आदर्श मिश्रण: अगस्त
अगस्त का महीना एक ऐसा संगम है जहाँ ऋतु परिवर्तन, अध्यात्मिकता, लोक परंपराएं और राष्ट्रीय चेतना एक साथ प्रकट होती हैं। यह केवल वर्षा ऋतु के अंत का संकेत नहीं, बल्कि विविध सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों का शुभ अवसर भी है।
मुंबई में नेहा के घर पर चेन्नई से उसकी मां माया मनपुरिया और बैंगलोर से विन्नी आई थीं। बातों-बातों में त्योहारों पर चर्चा छिड़ गई। वंदना दीदी बोलीं- “देवता सो रहे हैं, इसलिए शाम को दिया जलाने की उतनी जल्दी नहीं रहती।” माया जी ने बताया- “देवशयनी एकादशी को भगवान को फल-फूल, मूली और गन्ना अर्पित कर सुलाने का गीत गाकर पूजा करते हैं। मारवाड़ी, गुजराती और महाराष्ट्रीयन परंपराओं में एक खास नियम होता है कि रात में दीप नहीं जलाया जाता।”
श्रावण मास की एकादशी ‘पुत्रदा एकादशी’ कहलाती है, जिसमें विष्णु-लक्ष्मी की पूजा कर संतान प्राप्ति और उन्नति की कामना की जाती है। सावन के सोमवार को शिव मंदिरों में विशेष पूजा होती है। इस बार 8 अगस्त को सावन का चौथा सोमवार है, जो ‘वर लक्ष्मी व्रत’ का भी दिन है। मुख्यतः दक्षिण भारत में विवाहित महिलाएं देवी लक्ष्मी की पूजा कर अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
9 अगस्त - रक्षाबंधन: भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक रक्षाबंधन सावन की पूर्णिमा को मनाया जाता है। द्रौपदी द्वारा कृष्ण की अंगुली पर चीर बाँधने की कथा इसका आधार है। यह पर्व केवल पारिवारिक नहीं, सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्तों को भी सशक्त करता है। भाई-बहन का यह मिलन उत्सव, विशेष रूप से लोक संस्कृति से जुड़ा है, जिसमें आत्मीयता, जिम्मेदारी और सुरक्षा की भावना है।
संघ परिवार में डॉ. हेडगेवार ने भगवा ध्वज पर रक्षासूत्र बांधकर समस्त हिन्दू समाज को एकसूत्र में पिरोने का संकल्प दोहराया- ”धर्माे रक्षितः रक्षितः।“ अर्थात् जब हम धर्म की रक्षा करते हैं, तब वही धर्म हमारी रक्षा करता है। यह पर्व सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक जागरूकता का प्रतीक है।
हल षष्ठी (ब्रज क्षेत्र): बलराम जी के जन्मदिवस पर मनाया जाने वाला यह पर्व मथुरा-वृंदावन क्षेत्र में विशेष रूप से मनाया जाता है। खेत में हल न चलाने और महुए के व्यंजनों के साथ यह उत्सव मातृत्व और कृषि संस्कृति से जुड़ा है।
15 अगस्त - स्वतंत्रता दिवस: भारतवासियों के लिए यह राष्ट्रीय गर्व का दिन है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री देश को संबोधित करते हैं। यह दिन देशभक्ति, बलिदान और नागरिक चेतना को समर्पित है।
16 अगस्त - जन्माष्टमी: कृष्ण जन्मोत्सव केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक रंगों से भरपूर उत्सव बन चुका है। दही हांडी उत्सव में युवाओं की टोलियाँ उत्साह से भाग लेती हैं। मथुरा-वृंदावन से सीधा प्रसारण देश-दुनिया तक पहुँचता है।
गोगा नवमीं: जम्मू-कश्मीर के कटरा क्षेत्र में स्थित गोगा वीर जी मंदिर सभी धर्मों के लोगों की आस्था का केंद्र है। लोक देवता गोगा पीर की पूजा बच्चों की रक्षा के लिए की जाती है। महिलाएं मिट्टी के घोड़े पर सवार गोगा वीर जी की प्रतिमा बनाकर प्रार्थना करती हैं। हरियाणा, पंजाब, हिमाचल और राजस्थान में यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।
23 अगस्त - बैल पोला: महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक के किसान इस दिन मवेशियों का धन्यवाद करते हैं। बैलों को सजाया जाता है, जुलूस निकाला जाता है, और पूजा कर उन्हें विश्राम दिया जाता है। यह हमारी संस्कृति में पशुधन के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का उत्सव है।
23 अगस्त-बोंडेरम उत्सव (गोवा): दिवार द्वीप पर मनाया जाने वाला यह त्योहार पुर्तगाली शासन के विरुद्ध ग्रामवासियों की सांस्कृतिक विजय का प्रतीक है। झांकियों और नृत्यों से सड़कों पर उत्सव मनाया जाता है।
25 अगस्त - वराह जयंती: विष्णु के वराह अवतार का यह पर्व तिरुपति (आंध्र प्रदेश) के वराहस्वामी मंदिर में विशेष रूप से मनाया जाता है। नारियल जल से भगवान का अभिषेक कर पूजा की जाती है। यह क्षेत्र वराहक्षेत्र कहलाता है।
26 अगस्त - हरतालिका तीज (उत्तर भारत) / गौरी हब्बा (दक्षिण भारत): यह पर्व शिव-पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक है। महिलाएं सौभाग्य, पति की लंबी उम्र और पारिवारिक सुख के लिए व्रत करती हैं। मायके से सिंधारा आता है। हाथों में मेंहदी, हरे वस्त्र और झूलों की रंगत से यह पर्व हरियाली और स्त्री सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है।
26 अगस्त से 5 सितंबर - ओणम (केरल): मलयाली समाज द्वारा मनाया जाने वाला यह त्योहार राजा महाबली की धरती पर वापसी की स्मृति में मनाया जाता है। यह नई फसल का उत्सव भी है। ओणम में पारंपरिक नाव दौड़, फूलों की रंगोली, नृत्य और भोज (ओनसद्या) शामिल होता है, जिसमें केले के पत्ते पर 29 व्यंजन परोसे जाते हैं।
27 अगस्त - गणेश चतुर्थी: तिलक जी द्वारा प्रारंभ किया गया यह पर्व राष्ट्रीय एकता और सामाजिक समरसता का प्रतीक बन गया। पहले जो देवता केवल पेशवाओं तक सीमित थे, उन्हें तिलक ने जनसामान्य के आंगन में लाकर पूज्य बनाया। आज सोसायटी में भव्य पंडाल बनते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं और गणपति के स्वागत में ढोल-नगाड़े बजते हैं।
28 अगस्त-ऋषि पंचमी/ विश्वकर्मा पूजा (केरल): यह पर्व सप्तऋषियों को समर्पित है। समाज निर्माण में इनके योगदान की स्मृति में यह दिन कृतज्ञता के साथ मनाया जाता है। दक्षिण में इसे विश्वकर्मा पूजा के रूप में मनाते हैं।
31 अगस्त -राधाष्टमी: ब्रज क्षेत्र में यह पर्व कीर्तन, भजन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से सजीव होता है। स्वामी हरिदास धु्रपद परंपरा के जनक और तानसेन के गुरु का जन्मदिन भी इसी दिन होता है। उनके सम्मान में आयोजित महोत्सव में देशभर के संगीतज्ञ भाग लेते हैं।
अगस्त का महीना भारतीय जीवन के विविध रंगों को समेटे होता है। इसमें अध्यात्म, सामाजिक बंधन, ऋषि परंपरा, कृषि संस्कृति, लोक आस्था और राष्ट्रीय चेतना, सबका समावेश है। यह महीना हमारे संस्कार, श्रद्धा, सम्मान और सामूहिकता की अभिव्यक्ति है।