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देवभूमि का पदम: एक पवित्र वृक्ष की पुनर्जागरण कथा

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उत्तराखण्ड की शांत वादियों में, जहाँ हवा में देवत्व घुला है, वहीं एक पवित्र देववृक्ष 'पदम' (पई/पयां) सदियों से लोक-जीवन का हिस्सा रहा है। कभी विवाह के स्वागत द्वार इसकी पत्तियों से सजते थे, दुल्हन की डोली इसकी टहनियों से महकती थी, और हर धार्मिक अनुष्ठान में कलश पदम-पत्र से पवित्र माना जाता था।

समय बदला… और धीरे-धीरे यह देववृक्ष लोगों की स्मृतियों में धूमिल होने लगा।

लेकिन इस वर्ष शरद ऋतु के साथ कुछ नया हुआ। जैसे ही पहाड़ियों पर पदम के गुलाबी-सफेद फूल खिले, वैसे ही लोगों के मन में इसे फिर से जीवित करने का संकल्प भी जाग उठा। इसी संकल्प ने जन्म दिया ‘पदम महोत्सव’ को।


13 नवंबर को पहली बार उत्तराखण्ड के पाँच स्थानों में यह महोत्सव आयोजित हुआ। पदम ट्रेल वॉक, सेल्फी प्वाइंट और गाँवों में बनने वाले ग्राम पदम उद्यान ने लोगों को फिर से इस देववृक्ष की ओर खींच लिया। विद्यार्थियों, सैलानियों और ग्रामीणों ने मिलकर पदम के पौधे लगाए, मानो प्रकृति से टूटा रिश्ता फिर जुड़ रहा हो।

पदम सिर्फ एक पेड़ नहीं, बल्कि देवभूमि की आस्था, संस्कृति और पर्यावरण का जीवंत प्रतीक है और अब इस महोत्सव के साथ वह फिर से अपने खोए वैभव की ओर लौट रहा है।