हेलमेट मैन की कहानी स्वयं उनकी जुबानी
देश में प्रत्येक वर्ष दुपहिये वाहनों से सम्बंधित दुर्घटनाओं में हजारों लोग जान गंवा देते हैं जिनमें अधिकांश लोग वे होते हैं जो दुपहिये वाहन पर हेलमेट का उपयोग नहीं करते हैं। इस समस्या को समझते हुए नोएडा के निवासी राघवेन्द्र जी ने एक पहल की और आज वे एक जागरूक नागरिक के रूप में अपने नागरिक कर्तव्य का पालन कर ‘हेलमेट मैन’ के नाम से लोगों के दिलों में जगह बना चुके हैं। उनसे बात की केशव संवाद टीम के सदस्य धीरज त्रिपाठी ने, प्रस्तुत है बातचीत के अंश -
आप अपने बारे में बताइए और आपको सड़क सुरक्षा हेलमेट वितरण के इस अभियान चलाने के लिए किसने और कैसे प्रेरित किया?
मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता हूं और जागरूकता अभियानों में सक्रिय रहता हूं। मुझे सड़क सुरक्षा और हेलमेट वितरण की प्रेरणा एक व्यक्तिगत और हृदयविदारक घटना से मिली। हमारे देश में प्रतिदिन लगभग 20 लोग हेलमेट न पहनने के कारण सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवा रहे हैं। पूरे देश में विशेष रूप से युवा वर्ग के बीच जागरूकता की भारी कमी है। अक्सर यह देखा जाता है कि जब कोई दुःखद घटना घटती है, तभी लोगों की आंखें खुलती हैं। मेरे जीवन में भी एक ऐसा ही हादसा हुआ, जिसने मुझे गहराई से झकझोर दिया। मेरा एक घनिष्ठ मित्र, जो बिहार से आकर ग्रेटर नोएडा में पढ़ाई कर रहा था, अपने भविष्य को संवारने और अपने परिवार का सहारा बनने का सपना देखता था। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। दुर्भाग्यवश, एक सड़क दुर्घटना में हेलमेट न पहनने के कारण उसने अपनी जान गंवा दी। उसकी असमय मृत्यु ने न केवल उसके परिवार को गहरे शोक और आर्थिक संकट में डाल दिया, बल्कि मुझे भी आत्ममंथन करने पर मजबूर कर दिया। उस परिवार की पीड़ा और टूटे हुए सपनों को देखकर मेरे भीतर एक आंतरिक आवाज उठी कि मुझे देशभर में युवाओं और माता-पिता को सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूक करना चाहिए। तब से मैंने यह संकल्प लिया है कि मैं सड़क सुरक्षा और हेलमेट पहनने की अनिवार्यता को लेकर देशभर में जागरूकता फैलाऊंगा, ताकि इस तरह के हादसों को रोका जा सके और कीमती जिंदगियों को बचाया जा सके।
हेलमेट वितरण के क्षेत्र में आपका सबसे प्रेरणादायक अनुभव क्या रहा है?
मैं अब तक देश के 22 राज्यों में लगभग 65,000 हेलमेट का वितरण कर चुका हूं। मेरे इस अभियान के दौरान करीब 36 लोगों का जीवन इन्हीं हेलमेट की वजह से सुरक्षित रह पाया है। इससे मुझे ऐसा अनुभव होता है मानो कोई अदृश्य शक्ति मुझे देख रही है और इस कार्य को निरंतर गति देने के लिए प्रेरित कर रही है। अनजान शहरों में, अनजान लोगों की सहायता करके मुझे एक अद्भुत संतोष और आत्मिक शांति का अनुभव होता है। पूरे देश में एक पारिवारिक भावना देखने को मिलती है, जो प्रेम, करुणा और मानवीयता के धागे से हमें जोड़ती है। यह अत्यंत दुःखद है कि हर वर्ष बिना किसी युद्ध के लगभग 1,70,000 परिवार अपने विकास और भविष्य को खो देते हैं, क्योंकि उनके अपने लोग सड़क दुर्घटनाओं में असमय अपनी जान गंवा बैठते हैं। जब कोई व्यक्ति भगवान की मूर्ति के पास मेरी तस्वीर रखता है या मुझसे मिलकर श्रद्धा से प्रणाम करता है, तो मेरा दिल और आंखें दोनों भर आती हैं। यह भावनात्मक पल मुझे और अधिक समर्पण के साथ इस कार्य को आगे बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं। मैं इस कार्य को इसी अनुभूति, समर्पण और प्रतिबद्धता के साथ जारी रखूंगा, ताकि हम और अधिक जिंदगियों को बचा सकें और देश में सड़क सुरक्षा को एक आंदोलन का रूप दे सकें।
किसी ऐसे उदाहरण के बारे में बताइए जहां आपने सड़क सुरक्षा के लिए जागरूकता फैलाने में बाधाओं का सामना किया हो। आपने इन बाधाओं को कैसे पार किया? अभियान हेतु संसाधनों की पूर्ति के बारे में बताइए ?
मैंने नोएडा का अपना घर बेच दिया, नौकरी छोड़ दी और अपने जीवन को पूरी तरह इस अभियान के लिए समर्पित कर दिया। मेरे पिता का सहयोग सदैव मेरे साथ रहता है। वे न केवल भावनात्मक रूप से मेरा समर्थन करते हैं, बल्कि आर्थिक रूप से भी मेरी सहायता करते हैं। इसके अलावा, कई परिवार भी अपनी भावनाओं और स्मृतियों के रूप में इस अभियान में योगदान देते हैं। कुछ परिवार अपने प्रियजनों की याद में वार्षिक रूप से हेलमेट दान करते हैं। एक बहन ने तो अपने भाई की स्मृति में 100 से अधिक हेलमेट दान किए। देश-विदेश में रहने वाले कुछ लोग भी अपने परिवार के सदस्यों की स्मृति में हेलमेट भेजते रहते हैं। इसी तरह समाज और पीड़ित परिवारों द्वारा दिए गए सहयोग और समर्थन से मैं अपने इस कार्य को आगे बढ़ा रहा हूं। अब तक ईश्वर की कृपा और लोगों के सहयोग से मुझे कभी भी संसाधनों की कमी महसूस नहीं हुई।
समाज के विभिन्न समूहों के साथ जुड़ने के लिए आप कौन-सी रणनीतियाँ अपनाते हैं, खासकर युवाओं और छात्रों के बीच में ?
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा चार साल से ऊपर के बच्चों के लिए हेलमेट पहनने को अनिवार्य करने का कानून पारित किया गया है। यह कानून बच्चों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी सड़क सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए गांववासियों के सहयोग से हेलमेट बैंक स्थापित करने की योजना बनाई गई है। इसके माध्यम से लोगों को मुफ्त हेलमेट उपलब्ध कराए जाएंगे, जिससे सड़क दुर्घटनाओं को कम किया जा सके। इसके अलावा, आधुनिक बाइकों की पिछली सीट की डिजाइन एक गंभीर समस्या है, क्योंकि यह सुरक्षा के लिहाज से उपयुक्त नहीं है। इस विषय पर भी गंभीर विचार-विमर्श की आवश्यकता है, ताकि बाइकों की डिजाइन को अधिक सुरक्षित बनाया जा सके। मैने उत्तराखंड सरकार के साथ ‘रोड सेफ्टी ब्रांड एंबेसडर’ के रूप में काम किया है और इस दौरान कई महत्वपूर्ण मुद्दों को सरकार के सामने रखा है। इन मुद्दों में सड़क सुरक्षा सुधार, हेलमेट की अनिवार्यता, दुर्घटना पीड़ितों के लिए सहायता प्रणाली को मजबूत करना और जागरूकता अभियानों का विस्तार शामिल है। ऐसे कई महत्वपूर्ण विषय हैं जिन पर मैं लगातार काम कर रहा हूं और आगे भी पूरी प्रतिबद्धता और समर्पण के साथ इस मिशन को आगे बढ़ाता रहूंगा। मेरा उद्देश्य देश को सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में और अधिक जागरूक और सुरक्षित बनाना है।
अपने काम के दौरान भावनात्मक थकान को कैसे दूर करते हैं? इस कार्य में आपके परिवार का सहयोग कैसे रहता है?
सबसे पहले, मैं अपनी जीवनसंगिनी का हृदय से धन्यवाद करता हूं, जिन्होंने हर कठिन परिस्थिति में मेरा साथ दिया। एक समय ऐसा भी आया जब मुझे अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी और अपने घर को बेचना पड़ा। कोविड के दौरान आर्थिक तंगी के कारण मेरी पत्नी की ज्वेलरी भी मुथूट फाइनेंस के माध्यम से नीलाम हो गई। लेकिन इन कठिनाइयों के बावजूद मेरा हौसला कभी नहीं टूटा। मेरे परिवार ने हर कदम पर मेरा हौसला बढ़ाया और मुझे निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। मेरी माता जी, जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं, अंततः इस दुनिया को छोड़कर चली गईं। उनके अंतिम समय में दिए गए शब्द आज भी मेरे जीवन का संबल बने हुए हैं। उन्होंने कहा था- ”बेटा, उदास मत होना। मैं जा रही हूं, लेकिन देश की हर माँ का आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ रहेगा।“ उनके इन शब्दों ने मेरे जीवन का लक्ष्य स्पष्ट कर दिया और मुझे एक नई ऊर्जा दी। अब मेरा यह प्रयास है कि मैं अपने कार्यों के माध्यम से समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाऊं और अपने माता-पिता के सपनों को साकार कर सकूं।
आने वाले वर्षों में इस अभियान का क्या लक्ष्य रहेगा? अभियान को लेकर आपकी दीर्घकालिक योजना क्या है?
मेरा लक्ष्य वर्ष 2025 तक 200 स्थानों पर हेलमेट बैंक स्थापित करना है, जहां कोई भी व्यक्ति अपने मोबाइल नंबर के माध्यम से पंजीकरण कर निःशुल्क हेलमेट प्राप्त कर सके। यह सुविधा पूरी तरह निःशुल्क होगी, ताकि सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके और लोगों की जान बचाई जा सके इसके अलावा, मेरा मानना है कि यदि कोई आम नागरिक सड़क दुर्घटना में पीड़ित की मदद करता है, तो उसे सरकार द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिए। साथ ही, दुर्घटना पीड़ित परिवारों को सरकारी सहायता राशि समय पर और बिना किसी परेशानी के उपलब्ध कराई जानी चाहिए। मैंने युवाओं की एक टीम तैयार करने की योजना बनाई है, जिसे सड़क सुरक्षा और आपातकालीन स्थितियों से निपटने के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है। इस टीम का मुख्य उद्देश्य लोगों में यह जागरूकता फैलाना है कि-”जैसे कोई व्यक्ति बिना जूते-चप्पल पहने घर से बाहर नहीं जाता, वैसे ही किसी को भी बिना हेलमेट पहने बाइक या साइकिल नहीं चलानी चाहिए।“ यह अभियान न केवल सड़क सुरक्षा को एक आंदोलन का रूप देगा, बल्कि देश के युवाओं को जिम्मेदार और जागरूक नागरिक बनने के लिए प्रेरित भी करेगा। मेरा प्रयास है कि यह पहल देशभर में सुरक्षा और सेवा की एक मिसाल बने।




