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‘हम सब एक’ के भाव से ही विश्वगुरु भारत की कल्पना संभव

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रांची. राष्ट्र संवर्धन समिति के तत्वाधान में रांची विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट सभागार में सामाजिक सद्भाव विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य भय्याजी जोशी ने कहा कि हम बड़े भाग्यशाली हैं कि हमने भारत में जन्म लिया है. हमें एक ऐसी आदर्श विरासत मिली है जो विश्व को समभाव से देखने की दृष्टि देती है. वर्तमान समय भारत का है. देश समाज बदल रहा है. हम सब संक्रांति के समर्थक हैं. एक श्रेष्ठ देश का श्रेष्ठ नागरिक होने का हमें गर्व है. आज भारत वैश्विक प्रतिस्पर्धा में अपना अलग स्थान रखता है. विश्व के अनेक शक्तियों के हजारों आघातों के बावजूद हम मिटे नहीं. तभी महर्षि अरविंदो ने हमें ‘मृत्युंजय भारत’ कहा था.

उन्होंने कहा कि काल प्रवाह में अपने समाज में विसंगतियां भी आती रहीं. संत-महात्माओं ने इन विसंगतियों को दूर करने का सार्थक प्रयास भी किया. किंतु कुछ विसंगतियों ने हमारी परंपरा बनकर कुरीति का आकार ग्रहण कर लिया. अपने समाज की आंतरिक शक्ति यदि ठीक हो तो ऐसी कुरीति पर अंकुश लग पाता है. भय्याजी जोशी ने कहा कि हिन्दू भारत का चिंतन है जो हमें जीवन को देखने की एक समुचित दृष्टि देता है. अपना हिन्दू समाज जीवन मूल्यों पर चलने वाला समाज है.

अठारह पुराणों में परोपकार को श्रेष्ठ बताया गया है. ऐसी विसंगति यानी जातिवाद को हम कब तक ढोते रहेंगे? हम सब एक हैं, ऐसा भाव जब तक विकसित नहीं होगा तब तक हम समाज को एक और श्रेष्ठ नहीं बना सकते. जब हम भारत को माता मानते हैं तो फिर अपने बीच भेदभाव कैसा? मानव निर्मित जातिवाद जैसे भेदभाव को समाज के प्रयास से ही दूर करना है. उन्होंने समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करने के लिए प्रयास करने का आह्वान समाज की सज्जन शक्ति से किया. भारत का समाज परस्परावलंबी है. एक दूसरे को अपना मानकर आगे बढ़ें, यही सार्थक प्रयास देश को समृद्ध बनाएगा. तभी भारत विश्वगुरू बन सकेगा.

प्रस्तावना रखते हुए राकेश लाल ने कहा कि हिन्दू समाज को तोड़ने के अनेक प्रयास चलते आ रहे हैं. ऐसे गंभीर विषय पर हम सबको आज चिंतन करना है. हम सब हिन्दू हैं. अपना समाज संगठित हो ताकि राष्ट्र सशक्त हो.