डॉ. आम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में रंगाहरि जी द्वारा लिखित एवं किताबवाले प्रकाशन द्वारा प्रकाशित पुस्तक “पृथ्वी सूक्त – धरती माता के प्रति एक श्रद्धांजलि” का विमोचन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी, केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान जी ने किया. पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम का आयोजन प्रज्ञा प्रवाह, दिल्ली प्रांत एवं किताबवाले प्रकाशन द्वारा किया गया था.
राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान जी ने कहा कि आंखें तो सबके पास हैं, पर श्रीमद्भागवत गीता हमें बताती है कि देखने वाला वह है, जो सबके अंदर उस एक को देख सके और उस एक को सबमें देखने लगे और सबको उस एक में देखने लगे तो मैं कभी न उनसे अलग होता हूं और न वह मुझसे अलग होते हैं. परमात्मा और जीवात्मा उपाधियां हैं, शब्द हैं. एक बार अगर इस एकात्मता का ज्ञान हो गया तो उसके बाद परमात्मा और जीवात्मा का अंतर समाप्त हो जाता है. मां जिस तरह अपने बच्चों को पालती है, उसी तरह पृथ्वी माता अलग-अलग भाषा बोलने वाले और अलग-अलग रास्ते से चलने वाले अपने बच्चों को धनधान्य से भरपूर करती है.
उन्होंने कहा कि श्री रंगाहरि जी के संकलन को देखने से ही लगता है कि वे उच्चकोटि के विद्वान हैं. उन जैसे विद्वान से सभी बात करना चाहते हैं, सभी संवाद करना चाहते हैं और सभी उनसे कुछ न कुछ सीखना चाहते हैं. रंगाहरि जी का हर विषय पर गहरा अध्ययन है, किसी भी विषय पर वह धारा प्रवाह बोलते हैं. मेरा यह सौभाग्य है कि मुझे उनके द्वारा रचित पुस्तक पृथ्वी सूक्त पर दो शब्द लिखने का अवसर मिला. वे विद्वान तो हैं ही, साथ ही कर्मयोगी भी हैं. जो आत्मज्ञान प्राप्त करने का इच्छुक है, उसी में उसको आनंद मिलता है और उसके साथ वह क्रियावान है, ऐसे व्यक्ति को ही ब्रह्मज्ञानी माना जाता है और कहा जाता है, श्री रंगाहरि जी ऐसे ही हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि संघ के कार्यकर्ता के नाते 80 के दशक से मेरा रंगा हरि जी से अच्छा परिचय रहा है. रंगा जी उनके पिता का नाम है, हरि जी उनका नाम है. संघ में कभी-कभी लोग उनको रंगा जी कहते थे तो बताते थे कि रंगा जी आएंगे नहीं, वह ऊपर हैं. सभी आयु के व्यक्ति रंगा जी के चारों ओर बैठे रहते थे. घंटे तक गपशप चलती थी. इसके कारण मेरे जैसे लोग भी उनके आसपास मंडराते रहते थे. हम स्नान करते हों या नहीं, पर अगर वर्षा होगी और छाता नहीं होगा तो हम गीला होंगे ही. उसी तरह उतना लाभ हमारा भी हुआ. रंगा जी का पूरा जीवन स्वीकृत कार्य के लिए समर्पित था. इसलिए सदैव कर्मशील रहते थे.
उन्होंने कहा कि भारत को दुनिया को यह सिखाना है कि विविधता में एकता नहीं, एकता की ही विविधता है. हमारे यहां हमारी मातृभूमि समृद्ध है, चारों ओर से सुरक्षित है. हमको ना अपने में झगड़ा करने की जरूरत पड़ी, ना बाहर से झगड़ा करने की जरूरत पड़ी. इसलिए हमने अपने दिमाग को सकारात्मक दिशा में लगाया. यह हमारी मातृभूमि के उपकार हैं. हम अपनी राष्ट्रीयता के घटकों में मातृभूमि को अनिवार्य घटक मानते हैं.
दुनिया में राष्ट्र कैसे बने? अंग्रेजी में जिसको नेशन कहते हैं, वह नेशन स्टेट है. स्टेट है, तब तक नेशन है. स्टेट गया कि नेशन गया. हमारे ऋषियों ने विचारपूर्वक, तपस्या पूर्वक इस राष्ट्र का निर्माण किया. विश्व के कल्याण की इच्छा करने वाले ऋषियों के दुर्धर तप से राष्ट्र बना और उत्पन्न हुआ.
जी-20 मुख्यतः एक आर्थिक विचार करने वाली परिषद होती है. उसको हमने वसुधैव कुटुंबकम की भावना देकर मानवों का विचार करने वाली परिषद बनाया. हमें पृथ्वी के प्रति भक्ति, प्रेम, समर्पण और त्याग की भावना रखनी चाहिए और जीवन को तमस से ज्योति की तरफ ले जाना चाहिए. हमें विविधता में भी अपनी मूल एकता को ध्यान में रखते हुए परस्पर व्यवहार का उत्तम आदर्श दुनिया के सामने रखना चाहिए.
पुस्तक के लेखक रंगाहरि जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी हैं, जिन्होंने अपना जीवन साहित्य और समाज सेवा के लिए समर्पित किया. उनका जन्म 12 मई, 1930 को कोच्चि में हुआ. अप्रैल 1951 से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़कर, संघ की विभिन्न भूमिकाओं में रहते हुए उन्होंने अपनी प्रतिबद्धता और अटूट समर्पण का परिचय दिया. रंगाहरि जी एक बहुआयामी लेखक हैं, जिन्होंने कई पुस्तकें लिखी हैं. “पृथ्वी सूक्त: धरती माता के प्रति एक श्रद्धांजलि” अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में मौजूद ज्ञान का अध्ययन प्रस्तुत करती है. अंग्रेजी एवं हिंदी में लिखी गई यह पुस्तक पृथ्वी के साथ मनुष्य के संबंधों पर प्रकाश डालती है, और ऐसी अंतर्दृष्टि प्रदान करती है.