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आजादी का अमृत महोत्सव

सही अर्थों में यह है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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·         संघ का प्रारंभ से ही लक्ष्य रहा है- ‘अपनी विजय शालिनी संगठित कार्य शक्ति द्वारा धर्म का संरक्षण करते हुए अपने राष्ट्र को वैभव के शिखर पर ले जाना

·         केवल राष्ट्र प्रथम स्थान पर हो, यह भाव मन में दृढ़ता से धारण करें

·         संघ को जानना है तो घर के पास की किसी संघ की शाखा में आइये। संघ को जानने का कोई दूसरा मार्ग नहीं है

क्या है संघ यानी RSS, 27 सितंबर, सन 1925 को विजय दशमी के दिन, डॉ केशव राव बलिराम हेडगेवार ने अपने 17 मित्रों के सम्मुखहम आज से संघ को शुरू कर रहे हैं  की घोषणा से संघ को आरंभ किया था। ना नाम रखा था ना यह तय किया कि कैसे काम करेगा, कौन-कौन क्या-क्या दायित्व ग्रहण करेंगे, कहां-कहां होगा, क्या-क्या काम करेगा कुछ भी निश्चित किए बिना संघ शुरू कर दिया। मन में केवल एक भाव था राष्ट्र के लिए जो भी आवश्यक होगा वह करेंगे। सब कुछ बाद में जैसे-जैसे ध्यान में आता गया, निश्चित होता गया और करते गए। जो भी करें राष्ट्र के लिए, इसके घटकों में यह भाव दृढ़ हो। इसके स्वयंसेवक परिवार, समुदाय, जाति, मत, पंथ, संप्रदाय सहित सब कुछ राष्ट्र के सम्मुख द्वितीय हो, केवल राष्ट्र प्रथम स्थान पर हो, यह भाव मन में दृढ़ता से धारण करें। इसी भाव जागरण के लिए संघ की संपूर्ण कार्यप्रणाली, रीति नीति और परंपराएं आवश्यकता और समयानुसार विकसित हुई। संक्षेप में कहें, तो राष्ट्रीय सोच के अनुसार व्यवहार करने वाले व्यक्ति का निर्माण संघ करता है इसके आगे संघ कुछ और करता भी नहीं।

संघ के अनुसार व्यक्ति की स्वयं की मानसिकता उसको व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक या राष्ट्रीय भूमिका वह कैसे निभाये, इसके लिए प्रेरित करती है। सब भूमिकाओं को निभाने में व्यक्ति को अपनी भूमिका स्वयं निर्धारित करने और भूमिका निर्वाह में प्राथमिकता किसे दे, यह सुनिश्चित करने का बोध कराने का प्रयत्न संघ करता है। संघ का वर्तमान स्वरूप कार्यप्रणाली रीति नीति और परंपराएं समय के साथ और आवश्यकता के अनुरूप स्वयं विकसित हुई हैं। आज की नीति यदि समय और परिस्थिति के अनुसार बदलने की आवश्यकता हुई तो संघ ने निःसंकोच परिवर्तन किया है और भविष्य में करेगा भी। संघ की यह सुनिश्चित अवधारणा है कि हिंदू जीवन शैली के शाश्वत मूल्य, राष्ट्रीयता की सांस्कृतिक अवधारणा एवं इसका प्रतीक प्रतिनिधि भगवा ध्वज संघ में अपरिवर्तनीय है। इसके अलावा संघ कुछ भी समय के अनुसार बदलने में संकोच नहीं करेगा। ऐसे व्यक्ति जिनकी सोच और व्यवहार राष्ट्रीय भावनाओं के अनुरूप हो वह जीवन में जिस भी भूमिका में हो अपने स्थान पर हृदय के भाव के अनुरूप अपनी भूमिका निभाते हैं। आज संघ को 95 वर्ष हो गए हैं। समाज जीवन की प्रत्येक व्यवस्था और कार्यक्षेत्र में संघ के स्वयंसेवक उससे मनोभावों को ग्रहण कर उसके अनुरूप अपने कर्तव्य निभा रहे हैं और समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को राष्ट्रीय दृष्टिकोण से निभाने का प्रयत्न कर रहे हैं। कमोबेश 95 वर्ष बाद संघ के दृष्टिकोण के अनुसार प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन दृष्टिकोण दृष्टिगोचर हो रहा है। अगर कोई संघ को जानना या समझना चाहे तो पढ़कर नहीं समझ सकता इसके लिए तो उसे इसकी व्यवस्था में आना होगा। संघ की समस्त गतिविधियों एवं कार्य प्रणाली के केंद्र में केवल मनुष्य और उसकी मानसिकता रहती है मनुष्य क्या हो, कैसा हो और उसकी सोचने की दिशा क्या हो यह ध्यान में रखकर ही संघ कार्य करता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उद्देश्य भारत को विश्व में सर्वश्रेष्ठ बनाना है, देश में ऐसे राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करना जो देश के हित के बारे में सोचे उसके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाए। समाज में समरसता की भावना का विकास करना है, राष्ट्र को सुदृढ़, साधन संपन्न सशक्त बनाना है, देश की संस्कृति की रक्षा करते हुए एकता बनाये रखना है, इन सभी उद्देश्यों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरा करने में सदा प्रयासरत रहता है। संघ का उद्देश्य सम्पूर्ण दुनिया को सुखी-सम्पन्न वैभव पूर्ण बनाना है। और इसके लिए भारत वर्ष को परम वैभव सम्पन्न होना अति-आवश्यक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उद्देश्यों को पूरा करने के लिए चरैवेति चरैवेति में विश्वास करता है।

संघ को समझना आसान भी है और संघ को समझना मुश्किल भी है। संघ को जानने का एक ही रास्ता है। हृदय में एक सकारात्मकता रखकर वास्तविक जिज्ञासा को लेकर, बिना किसी पूर्वाग्रह के श्रद्धा भक्ति पूर्ण तरीके से संघ को जानने का प्रयास करना। संघ का स्वयंसेवक यह साधना जीवन भर करता है। अर्थात संघ को जानने की जिज्ञासा लेकर, शुद्ध अंतःकरण से जो संघ का अनुभव लेते है। धीरे-धीरे उनको संघ समझ में आने लगता है। हर दिन समझ की मात्रा बढती जाती है। लेकिन अगर पूर्वाग्रह से संघ को देखेंगे तो संघ समझ में नहीं आएगा। संघ को जानना है तो घर के पास की किसी संघ की शाखा में आइये। संघ को जानने का कोई दूसरा मार्ग नहीं है। संघ के बारें में पढ ़कर संघ को नहीं जान सकते। परम पूज्यनीय गुरूजी ने कहा थागत 15 वर्षों से संघ का सरसंघचालक होने के नाते अब मैं धीरे धीरे संघ को समझने लगा हूँ।‘’

            संघ के काम के बारें में जो दिखाया जाता है, जो बताया जाता है। वो संघ का काम नहीं है बल्कि संघ के स्वयंसेवकों का काम है। संघ का काम तो सिर्फ शाखा चलाना है। शाखाओं में मनुष्यों का निर्माण होता है। और यह सुनिश्चित करना कि ऐसा ही माहौल पूरे देश में निर्मित्त हो बस संघ का इतना छोटा सा काम है।संघ कुछ नहीं करता और स्वयंसेवक कुछ नहीं छोड़ते, सब कुछ करते है।

            संघ का कोई अलग से अपना विचार नहीं है। अपने देश के सभी लोगों का मिलकर जो चिन्तन बना है। संघ उसी चिंतन पर चलता है। स्वतंत्रता के पूर्व अपने देश के उत्थान के लिए, कार्य करने वाले सभी लोगों का उनके अनुभव से जो निष्कर्ष था। उस निष्कर्ष को पूरा करने का का काम संघ ने उठाया। उन सभी महापुरुषों का चिन्तन थाहम देश का भाग्य परिवर्तन अपनी बुराइयां छोड़कर, अपनी अस्मिता के लिए एक साथ मिलकर हमको जीना-मरना चाहिए। और यह आदत बहुत दिनों से छूटी हुयी है। तो इनको इस आदत पर लगाने वाला एक संगठन होना चाहिए। डा. हेडगेवार जी ने यह आदत डलवाने के लिए 1925 में संघ की स्थापना की।

            संघ को देखना है तो लोग स्वयंसेवक को देखते है। और साथ-साथ वो भी देखते है जो वो करता है। और कहते है यही संघ है। लेकिन जिसमें से ऐसा सोच ऐसी कर्म करने की इच्छा विकसित होती है। असल मायनों में वही संघ है। संघ अपने स्वयंसेवक पर विश्वास करता है। हमारे विचार के सम्पर्क में आते है, हमारे विचार से चलने वाले कामों से निकलकर गये है। संघ जानता है स्वयंसेवक सोच विचार कर जो भी करेगा वो अच्छा ही होगा।

            संघ का विचार सत्य विचार है, अधिष्ठान शुद्ध है पवित्र है। इस शक्ति से ही संघ हर मुश्किल का सामना कर रहा है। इन विचारों को व्यवहार में लाने वाली कार्यपद्वति को तैयार करने का काम, संघ शाखाओं के माध्यम से कर रहा है। बाकी सब बंद हो सकता है। संघ की शाखा कभी बंद नहीं होगी। पहले अपने आपको ठीक करों। एक उदाहरण बनो दूसरों के लिए। मनुष्य जीवन स्वार्थ के लिए नहीं परोपकार के लिए मिला है। पहले इसका व्यय राष्ट्रीय भावना के लिए करो फिर अंतर्राष्ट्रीय बंधुत्व की बातें करना। अपने पड़ोसियों के दुःख दर्द में शामिल हो और भाषण दो विश्व बंधुत्व के। इस तरहत्याग और सेवाजैसे गुणों से युक्त मनुष्य का निर्माण करने वाली प्रयोगशाला का नामराष्ट्रीय स्वयंसेवक संघहै।

            संघ के स्वयंसेवकों द्वारा की जाने वाली प्रार्थना से भी संघ के मूल भाव का पता चलता है। अपनी प्रार्थना की पंक्तियों के माध्यम से संघ का हर स्वयंसेवक नित्य ही अपने लक्ष्य को तथा उसकी पूर्ति हेतु किए गए संकल्प को दोहराता था आज भी दोहराता है।

   नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे

त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्।

महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे

पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते ।। 1।।

प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता

इमे सादरं त्वां नमामो वयम्

त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयम्

शुभामाशिषं देहि तत्पूर्तये।

अजय्यां विश्वस्य देहीश शक्तिं

सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्

श्रुतं चौव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं

स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत।। 2।।

समुत्कर्षनिःश्रेयस्यैकमुग्रं

परं साधनं नाम वीरव्रतम्

तदन्तः स्फुरत्वक्षया ध्येयनिष्ठा

हृदन्तः प्रजागर्तु तीव्रानिशम्।

विजेत्री नः संहता कार्यशक्ति

विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्।

परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं

समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम् ।। 3।।

।। भारत माता की जय।।

अर्थातहे वात्सल्यमयी मातृभूमि, तुम्हें सदा प्रणाम! इस मातृभूमि ने हमें अपने बच्चों की तरह स्नेह और ममता दी है। इस हिन्दू भूमि पर सुखपूर्वक मैं बड़ा हुआ हूँ। यह भूमि महा मंगलमय और पुण्यभूमि है। इस भूमि की रक्षा के लिए मैं यह नश्वर शरीर मातृभूमि को अर्पण करते हुए इस भूमि को बार-बार प्रणाम करता हूँ।

हे सर्व शक्तिमान परमेश्वर, इस हिन्दू राष्ट्र के घटक के रूप में मैं तुमको सादर प्रणाम करता हूँ। आपके ही कार्य के लिए हम कटिबद्ध हुवे हैं। हमें इस कार्य को पूरा करने का आशीर्वाद दे। हमें ऐसी अजेय शक्ति दीजिये कि सारे विश्व में हमें कोई जीत सकें और ऐसी नम्रता दें कि पूरा विश्व हमारी विनयशीलता के सामने नतमस्तक हो। यह रास्ता काटों से भरा है, इस कार्य को हमने स्वयं स्वीकार किया है और इसे सुगम कर कांटों रहित करेंगे।

ऐसा उच्च आध्यात्मिक सुख और ऐसी महान ऐहिक समृद्धि को प्राप्त करने का एकमात्र श्रेष्ठ साधन उग्र वीरव्रत की भावना हमारे अन्दर सदैव जलती रहे। तीव्र और अखंड ध्येय निष्ठा की भावना हमारे अंतःकरण में जलती रहे। आपकी असीम कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने में समर्थ हो।

       ।। भारत माता की जय।।

संघ का प्रारंभ से ही लक्ष्य रहा है- ‘अपनी विजय शालिनी संगठित कार्य शक्ति द्वारा धर्म का संरक्षण करते हुए अपने राष्ट्र को वैभव के शिखर पर ले जाना।संघ का विश्वास है कि संगठित बनो। बलशाली समाज अपनी हर समस्या का समाधान करने में सक्षम होता है। इसलिए संघ के चिंतन कर्म का मुख्य केंद्र समाज को संगठित अवस्था प्राप्त करना ही रहा है, परंतु इसके साथ ही समाज और देश के सामने उपस्थित तत्कालीन समस्याओं के प्रति वह कभी मूकदर्शक नहीं रहा और ना उसने उन्हें अनदेखा किया।

चाहे सामाजिक सुरक्षा का क्षेत्र हो या सामाजिक समरसता का चाहे सेवा का क्षेत्र हो या सामाजिक संस्कार का देश पर आये दैवीय या मनुष्यकृत संकट का प्रश्न हो या विघटन कारी शक्तियों से संघर्ष का, हर क्षेत्र में संघ अपने जन्म  के काल से ही हर मोर्चे पर सक्रिय रहा है।

 

- सूर्य प्रकाश टोंक, क्षेत्र संघचालक, पश्चिम उत्तर प्रदेश

(नोट : ये लेखक के निजी विचार हैं)