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धर्म को जानने के लिए सत्य पर चलना पड़ता है – डॉ. मोहन भागवत

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मानस भवन में आयोजित आद्य जगद्गुरु श्री रामानंदाचार्य जी की 723वीं जयंती पर आयोजित समरसता व्याख्यानमाला में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भगवान ने अपने किसी भी अवतार में जात पात, भेद भाव को नहीं माना है. यही हमारे शास्त्रों का भी आदेश है. देश हमारा है, समाज हमारा है. अपना पवित्र हिन्दू धर्म व संस्कृति है. इसे सभी बीमारियों से मुक्त करके खड़ा करना है. यह हम नहीं करेंगे तो हमारे अपने घर परिवार और हम पर भी संकट है.


उन्होंने कहा कि संतों को जात-पात के भेद में मत बांधिए, संत सभी के होते हैं. वर्तमान समय में सामाजिक समरसता बहुत आवश्यक हो गई है. मनुष्यों में जात-पात, ऊँच-नीच की दृष्टि से लोगों को देखने की आदत काफी पहले से है, ये अभी की आदत नहीं है. लेकिन अब समय आ गया है कि इसे धीरे-धीरे सुधारें. भारत को नीचा दिखाकर एकता तोड़ने वालों को समरसता से जवाब दें. हिन्दू समाज को संघ संगठित कर रहा है और बिना समरसता के संगठन नहीं होता है, इसलिए सामाजिक समरसता अपनानी होगी. उन्होंने कहा कि समाज के लोगों को छोटे-छोटे व्यवहारों को ठीक करना होगा.

सरसंघचालक जी ने कहा कि धर्म जोड़ता है, किंतु भारत के बाहर धर्म शब्द नहीं है. समाज में जो जात-पात का भेद पैदा हुआ है, उसको हटाने का काम सभी को करना होगा. अब समय आ गया है कि भेद का समर्थन बिल्कुल नहीं करना चाहिए. धर्म को जानने के लिए सत्य पर चलना पड़ता है. अध्यात्म में भेद का समर्थन कहीं नहीं है, इसलिए समरसता के कार्यक्रम चलाने की फिर से आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि गलती को ठीक करना है, गलती करने वाले को ठीक नहीं करना. छुआछूत की बीमारी से लड़कर समरसता के साथ भारत विश्व गुरु बनना चाहिए.

व्याख्यानमाला में जगद्गुरु सुखानंद द्वाराचार्य स्वामी राघव देवाचार्य जी ने जगद्गुरु रामानंदाचार्य जी द्वारा समरसता को लेकर किए कार्यों के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि बहुत से लोग अपनी आदत बदलने से डरते हैं, लेकिन आज के समय में इसे बदलने की बहुत आवश्यकता है. हमारा शास्त्र बताता है कि अगर भक्त हैं तो फिर खंभे से भी भगवान निकल सकते हैं. भगवान ने जब जात-पात का भेद नहीं दिया तो फिर हम लोग भेद करने वाले कौन होते हैं.