संघ से मिले संस्कार और जीवन के उद्देश्य
अमेरिका के प्रसिद्ध शोध वैज्ञानिक एवं पॉडकास्टर लेग्स फ्रीडमैन
द्वारा लिया गया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का साक्षात्कार 16 मार्च
2025 को प्रसारित हुआ। साक्षात्कार में फ्रीडमैन ने प्रधानमंत्री के बचपन,
हिमालय
में बिताए गए वर्ष तथा सार्वजनिक जीवन से संबंधित अनेकों प्रश्न पूछे। यहां
प्रस्तुत हैं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित प्रश्नोत्तर –
लेग्स फ्रीडमैन : आपके जीवन काएक और महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि आपने जीवन भर अपने देश भारत को
सबसे ऊपर रखने की बात कही है। जब आप 8 साल के थे तब आप आरएसएस में शामिल हुए
जो हिंदू राष्ट्रवाद के विचार का समर्थन करता है। क्या आप आरएसएस के बारे में बता
सकते हैं? और उनका आप पर क्या प्रभाव पड़ा? आप जो भी आज हैं
और आपके राजनीतिक विचारों के विकास पर उनका क्या प्रभाव पड़ा?
एक तो बचपन में कुछ न कुछ करते रहना ये मेरा स्वभाव था। मुझे याद है मेरे यहां एक माकोसी थे, मुझे नाम थोड़ा याद नहीं, वो शायद सेवा दल में हुआ करते थे। माकोसी सोनी ऐसे कुछ थे। वह अपने पास एक बजाने वाली डफली रखते थे और देशभक्ति के गीत गाते थे, उनकी आवाज भी बहुत अच्छी थी। वह हमारे गांव में आते थे, अलग-अलग जगह पर उनके कार्यक्रम होते थे। मैं पागल की तरह बस उनको सुनने चला जाता था। रात-रात भर उनके देशभक्ति के गाने सुनता था। मुझे मजा आता था, क्यों आता था, पता नहीं है।
वैसे ही, मेरे यहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा चलती थी। शाखा में तो
खेल-कूद होता है, लेकिन देशभक्ति के गीत भी होते थे। तो मन को बड़ा मजा आता था,
यह
सब मन को छूता था, अच्छा लगता था। तो ऐसे करके हम संघ में आ गए। संघ से संस्कार मिले कि
भई कुछ भी सोचो, करो, अगर वो पढ़ते हो, तो भी सोचो, मैं इतना पहुं,
इतना पहूं कि मैं देश
के काम आऊं। अगर व्यायाम करता हूं तो ऐसा व्यायाम करूं, ऐसा व्यायाम करूं कि मेरा शरीर भी देश
के काम आए। यह संघ के लोग सिखाते रहते हैं।
अब संघ एक बहुत बड़ा संगठन है। शायद अब उसके सौ साल हो रहे हैं, ये सौवां वर्ष है और दुनिया में कहीं
इतना बड़ा स्वयंसेवी संगठन होगा,
ऐसा मैंने तो नहीं सुना है। करोड़ों लोग उसके साथ जुड़े हुए हैं।
लेकिन संघ को समझना इतना सरल नहीं है। संघ के काम को समझने का प्रयास करना चाहिए
और संघ, एक तो 'पर्पज ऑफ लाइफ' (जीवन के उद्देश्य) के विषय में आपको एक
अच्छी दिशा देता है। दूसरा यह कि जो वेद काल से जो कहा गया है, देश ही सब कुछ है और जनसेवा ही
प्रभुसेवा है, जो
हमारे ऋषियों ने कहा है, जो
विवेकानंद ने कहा, वही
बातें संघ के लोग करते हैं। वो एक घंटा शाखा, यूनिफॉर्म
पहनना, संघ नहीं है।
स्वयंसेवकों को कहते हैं कि तुम्हे संघ से जो प्रेरणा मिली कि समाज के लिए कुछ करना
चाहिए, उस प्रेरणा से
आज ऐसे काम चल रहे हैं।
जैसे, कुछ
स्वयंसेवकों ने सेवा भारती नाम का संगठन खड़ा किया है। यह सेवा भारती जो गरीब
बस्तियां होती हैं, जिन
झुग्गी झोपड़ी में गरीब लोग रहते हैं, उसको वे सेवा बस्ती कहते हैं। मेरी मोटी-मोटी जानकारी है, करीब वो बिना किसी सरकारी मदद के सवा
लाख सेवा प्रकल्प को चलाते हैं,
वहां जाना, समय
देना, बच्चों को
पढ़ाना, उनके स्वास्थ्य
की चिंता करना, ऐसे-ऐसे
काम समाज के सहयोग से करते हैं। उनके अंदर संस्कार लाना, उस इलाके में स्वच्छता का काम करना यह
सब होता है। यह सवा लाख सेवा प्रकल्प एक छोटा नंबर नहीं है।
वैसे, संघ में से ही गढ़े हुए कुछ स्वयंसेवक हैं, वो वनवासी
कल्याण आश्रम चलाते हैं और यो जंगलों में आदिवासियों के बीच में रहकर, आदिवासियों
की सेवा करते हैं। 70 हजार से ज्यादा 'वन टीचर वन स्कूल' एकल
विद्यालय चलाते हैं और अमेरिका में भी कुछ लोग हैं जो इस काम के लिए उन्हें शायद 10
डॉलर या 15 डॉलर का डोनेशन देते हैं और वो कहते हैं कि इस महीने एक 'कोका-कोला'
नहीं
पीनी है, एक 'कोका-कोला' मत पियो और उतना पैसा इस एकल विद्यालय
को दो।
अब आदिवासी बच्चों को पढ़ाने के लिए 70 हजार एकल
विद्यालय की व्यवस्था करना बड़ी सेवा है। ऐसे ही कुछ स्वयंसेवकों ने शिक्षा में
क्रांति लाने के लिए विद्या भारती नाम का संगठन खड़ा किया। देश में उनके करीब 25
हजार स्कूल चलते हैं और 30 लाख छात्र 'हर समय' उनमें
होते हैं और में मानता हूं अब तक करोड़ों विद्यार्थियों की बहुत ही कम दाम में
पढ़ाई हो, और संस्कार की भी प्राथमिकता हो, जमीन से जुड़े
हुए लोग हों, कुछ न कुछ हुनर सीख रहे हों, समाज पर बोझ न बनें, यानी
जीवन के हर क्षेत्र में वे चाहे महिला हो, युवा हो, यहां तक मजदूर
भी हों।
शायद मेंबरशिप के हिसाब से मैं कहूं तो 'भारतीय मजदूर
संघ' है। इसके पचपन हजार के करीब यूनियन्स हैं और करोड़ों की संख्या में
उनके मेंबर्स है। दुनिया में इतना बड़ा लेबर यूनियन नहीं होगा। लेफ्टिस्ट लोगों ने
मजदूरों के मूवमेंटों को बड़ा बल दिया। जो लेबर मूवमेंट है, उनका नारा क्या
होता है 'वर्कर्स ऑफ द वर्ल्ड यूनाइट', यानी यह भाव
होता है 'दुनिया के मजदूरों, एक हो जाओ' फिर देख लेंगे।
यह मजदूर संघ वाले क्या कहते हैं, जो आरएसएस के शाखा से निकले हुए
स्वयंसेवक मजदूर संघ चलाते हैं? वो कहते है, 'वर्कर्स यूनाइट
द वर्ल्ड'। लेफ्टिस्ट कहते हैं, 'वर्कर्स ऑफ द वर्ल्ड, यूनाइट'
आरएसएस
से निकले मजदूर संघ के स्वयंसेवक
कहते है 'वर्कर्स, यूनाइट द वर्ल्ड' (मजदूरों, दुनिया को एक करो) दो शब्दों को इधर-उधर करने से यह दो कितने बड़े
वाक्य बनते हैं, लेकिन
दोनों में एक बड़ा वैचारिक बदलाव है।
संघ की शाखा से निकले हुए यह लोग जब अपनी रूचि, प्रकृति, प्रवृत्ति के अनुसार काम करते हैं, तो इस प्रकार की गतिविधियों को बल देते हैं। जब भारत के ऐसे कामों को
देखेंगे, तो अनुभव में
आएगा कि चकाचौंथ वाली दुनिया से दूर रहते हुए सौ साल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
ने एक साधक की तरह समर्पित भाव से कार्य किया है। मेरा यह सौभाग्य रहा कि ऐसे
पवित्र संगठन से जुड़कर मुझे जीवन के संस्कार मिले, मुझे जीवन का उद्देश्य मिला। मेरा यह भी सौभाग्य रहा कि मैं कुछ पल
के लिए, कुछ समय के लिए
संतों के बीच चला गया, वहां
मुझे आध्यात्मिक संतुष्टि मिली,
जीवन का लक्ष्य मिला,
संतों के पास आध्यात्मिक स्थान मिला, स्वामी आत्मस्थानंद जी जैसे लोगों ने जीवन भर मेरा हाथ पकड़ कर के
रखा। हर पल मेरा मार्गदर्शन करते रहे। तो रामकृष्ण मिशन और स्वामी विवेकानंद जी के
विचार, संघ के सेवाभाव
इन सब ने मुझे गढ़ने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की है।