आखिर क्यों, हिन्दुओं की पहचान कर मार दी गईं गोलियां..
लेखक- डॉ. मयंक चतुर्वेदी
पहलगाम (जम्मू-कश्मीर) में हुए आतंकी हमले ने अंदर तक झकझोर दिया है। कहा जा रहा है कि विदेशी साजिश थी, पाकिस्तान का हाथ था, लेकिन यह हाथ घर के अंदर आया कैसे? कोई अपने भी थे, जो इस पूरे आतंकवादी घटनाक्रम में शामिल हैं। “इंटेलिजेंस” इनपुट कह रहा है कि छह आतंकियों में से तीन भारत के नागरिक थे, जिन्होंने विदेशी इस्लामिक आतंकवादियों के साथ मिलकर अपने ही भारतीय भाइयों का खून मजहब के नाम पर “जिहाद” कर बहाया है।
घटना के बाद से मीडिया में रिपोर्ट्स में से अनेकों में इस बात को दोहराया गया है कि पुलवामा हमला पार्ट-1 था जो 14 फरवरी 2019 को हुआ था, जिसमें 40 भारतीय सुरक्षा कर्मियों की जान गई थी। इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली थी। अब पहलगाम हमला पार्ट-2 है, जिसे 22 अप्रैल 2025 को बैसरन घास के मैदान में 26 लोगों की जान लेकर अंजाम दिया गया है। हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के फ्रंट ग्रुप द रेसिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) ने ली है, जो पाकिस्तान का आतंकी संगठन है। टीआरएफ जम्मू-कश्मीर में सक्रिय है और भारत इसे पहले ही आतंकवादी संगठन घोषित कर चुका है। यह गुट 2019 में तब सामने आया था, जब जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाया था। टीआरएफ ने अब तक सुरक्षाकर्मियों और आम लोगों पर कई हमले किए हैं, जिनमें 2020 में बीजेपी नेता और उनके परिवार की हत्या और 2023 में पुलवामा में कश्मीरी पंडित संजय शर्मा की हत्या भी शामिल है। साल 2019 के पुलवामा हमले में भी टीआरएफ का नाम आया था।
आज भारत में न जाने टीआरएफ जैसे कितने संगठन पल रहे हैं, और देखने में यही आता है कि इनके निशाने पर गैर मुसलमान रहते हैं। आखिर हिन्दुओं को ही क्यों टार्गेट किया जाता है? भारत में मोहम्मद बिन कासिम से लेकर अब तक अनेकों आक्रमण हो चुके हैं। 712 ई. में उसने सिंध में आक्रमण कर तबाही मचाई और लाशों के ढेर लगा दिए थे। इस मजहबी उन्मादी ने ही पहली बार भारत में इस्लाम को स्थापित किया था। फारसी ग्रंथ “चचनामा” में अरबों की सिंध पर जीत के साथ गैर मुसलमानों (हिन्दुओं) के प्रति उनके तरह-तरह के अत्याचारों और हिंसात्मक प्रयोगों की जानकारी मिलती है।
इतिहास में मुहम्मद बिन कासिम के बाद 10वीं शताब्दी से तुर्क आक्रमण शुरू हुए, जिनमें महमूद गज़नवी, मुहम्मद गोरी, बाबर, तैमूर लंग, अलाउद्दीन खिलजी जैसे अंध जिहादियों के आक्रमण प्रमुख हैं। इन आक्रमणकारियों ने हिन्दुओं को मारकर उनकी जो बड़ी-बड़ी मीनारें बनाईं और हिन्दू बेटियों, बहनों को ले जाकर खुले बाजार में बेचने से लेकर जिस तरह से बच्चा पैदा करने वाली मशीन, सिर्फ इस्लामिक औजार के रूप में इस्तेमाल किया, गाजी की उपाधियां धारण कीं। गाज़ी उस व्यक्ति को कहते हैं जो इस्लाम के लिए जिहाद (मजहबी युद्ध) में भाग लेता है या जिसने सीधे तौर पर इस्लाम को बढ़ाने में अपना योगदान दिया है, जो इस्लामी विस्तार के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है।
वस्तुत: इसके आज अनेकों प्रमाण मौजूद हैं। भारत पर पहली बार मुस्लिम आक्रमण 712 ई. में हुआ था, तब से लेकर अब तक 1337 साल गुजर चुके है, इतने दिनों में सांस्कृतिक भारत कई हिस्सों में बंट चुका है। अनेक देश इसके प्रमाण हैं, पीढ़ियों के स्तर पर भारत आज अपनी 45 पीढ़ियां औसतन पार कर चुका है, किंतु उसके बाद भी शेष भारत और यहां का ज्यादातर बहुसंख्यक समाज (हिन्दू) है, वह समझना ही नहीं चाहता कि आखिर जिहादी घटनाएं बार-बार क्यों हो रही हैं। क्यों मजहब के नाम पर अलग देश लेने के बाद भी ये रुकने का नाम नहीं लेतीं!
इसी संदर्भ में यह ऐतिहासिक प्रसंग है, जिसके मर्म को सभी को समझना चाहिए; जब भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मौलाना मुहम्मद अली ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि, “अपने मजहब और अकीदे के मुताबिक मैं एक गिरे से गिरे और बदकार मुसलमान को भी महात्मा गाँधी से बेहतर समझता हूँ”। यह चर्चित घटना सन् 1924 की है, जिस का विवरण डॉ. आंबेडकर ने अपनी पुस्तक पाकिस्तान और पार्टीशन ऑफ इंडिया (1940) में दिया है। पूछने पर मौलाना ने अपनी बात को बार-बार दोहरा कर कहा, ताकि गलतफहमी न रहे। समझने के लिए यहां इतना जान लें कि मौलाना मुहम्मद अली बड़े प्रतिष्ठित आलिम थे और गाँधी जी के अन्यतम सहयोगी भी रहे थे। इससे भी मौलाना की संजीदगी समझी जा सकती है। मौलाना ने अपने रिलीजन का केंद्रीय तत्व बड़ी सुंदरता से रखा था। जहाँ आचरण नहीं, विश्वास मुख्य है।
इसी से भारत, इजराइल, सीरिया, ईराक, यूरोप के देशों में तबाही कर रहे लश्कर-ए-तैयबा, पासबान-इ-अहले हदीस, जैश-ए-मोहम्मद, तहरीक-ए-फुरकान, हरकत-उल-मुजाहिदीन, हरकत उल-अंसार, हिज़बुल मुजाहिद्दीन, अल-उमर मुजाहिदीन, जम्मू एंड कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, अल-बद्र, जमात-उल-मुजाहिदीन, अल-क़ायदा, दुख़्तरान-ए-मिल्लत, इण्डियन मुजाहिदीन, इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवेंट, जमात-उल-मुजाहिदीन, इस्लामी स्टेट (आई.एस.आई.एस.), बोको हरम, तालिबान या लश्करे-तोयबा आदि संगठनों के कामों का भी सही वर्गीकरण कर लेना चाहिए।
वे सिरफिरे नहीं हैं, वे बेकार में हिंसा नहीं कर रहे हैं, उनका मकसद साफ है। जैसा भ्रमवश या लोगों को भुलावे में रखने के लिए कह दिया जाता है कि आतंकवादी का कोई मजहब या धर्म नहीं होता, वे उतने ही मुसलमान हैं, इसलिए, किसी मुसलमान के लिए गाँधी जी जैसे गैर-मुस्लिमों से अधिक अपने हैं। जिहादी, आतंकवाद के संदर्भ में इस सत्य को ठीक से समझकर ही भारत पर हो रहे राजनीतिक, आध्यात्मिक, अन्य हिंसात्मक, लव जिहाद, लैण्ड जिहाद जैसे अनेक प्रकार के आक्रमणों को समझा जा सकता है।
ईसाइयत और इस्लाम की वैसी मान्यताओं के ठीक विपरीत, हिन्दू धर्म किसी मतवाद, विश्वास आदि को धर्म का आधार नहीं मानता। इसीलिए हिन्दू धर्म उस तरह सामाजिक-राजनीतिक और हिंसक रूप से संगठित धर्म या मत, पन्थ नहीं है, जो अपनी और दूसरों की गिनती आदि का ध्यान रखते हुए धर्म (मजहब) की चिंता कर सके। यह इस की कठिनाई भी है, जो इस पर इस्लाम अथवा ईसायत के संगठित आक्रमणों को अपेक्षाकृत आसान बनाती रही है। अर्थात, हिन्दू धर्म की विशेषता एक विशेष परिस्थिति में इस की दुर्बलता भी बनी रही है।
वास्तव में जब तक भारत के मदरसों एवं अन्य जगह दीनीतालीम के नाम पर, कभी अल्लाह, कभी रसूल, फिर कभी जिहाद के लिए “तालीमुल् इस्लाम” तमाम हदीसे और नफरत फैलाने वाले पाठ पढ़ाए जाते रहेंगे और जब तक तकरीरों के नाम पर भारत में गैर मुसलमानों के प्रति भड़काऊ बयानबाजी उदाहरण-दिल्ली में हुए मुस्लिम संगठनों का हालिया प्रदर्शन का होना और उसमें सरकार के साथ ही गैर मुस्लिम विरोधी बातों को इशारों में रखने का काम का किया जाना होता रहेगा, कहना होगा कि तब तक भारत में आगे भी गैर मुसलमान (हिन्दू एवं अन्य) इसी तरह से मारे जाते रहेंगे।
मुर्शिदाबाद जैसी घटनाएं बार-बार दोहरायी जाएंगी, जिसमें एक विशेष वर्ग के जिहादी-आतंकवादी भीड़ में आएंगे, सब कुछ लूट ले जाएंगे, जो शेष बचेगा उसे आग के हवाले करेंगे, पीटेंगे, मारेंगे, आपको गैर मुसलमान होने की सजा दी जाएगी और मजबूरन आप इसी तरह से शेष भारत में भी बार-बार इधर से उधर पलायन करते रहेंगे, जब तक कि आपके अंत तक की घोषणा नहीं कर दी जाती है!
……
वस्तुत: ऐसे में विचार यही करना है कि हम कौन से भारत का निर्माण कर रहे हैं? जहां अपनों के खून से ही अपनी भूमि को लाल किया जा रहा है! मजहब के नाम पर एक अघोषित यु्द्ध किया जा रहा है, जिसका कोई अंत नहीं। फिर जिसके चलाने के बाद भी इस बात की कोई गारंटी कभी है ही नहीं कि इस मतान्ध जिहादी यु्द्ध के बाद किसी को जन्नत मिलेगी ही।
बावजूद उसके यह जानते हुए भी पूरी दुनिया में जिहाद बदस्तूर जारी है। आश्चर्य होता है यह देखकर कि जहां मुसलमान है, वहां उनके खिलाफ और जहां सब मुसलमान हैं तो वहां एक दूसरे के खिलाफ, शिया और सुन्नी के अलावा कोई तीसरा अहमदिया जैसा बहाना उन्हें कत्लेआम मचाने का मिल ही जाता है और यह जिहाद बदस्तूर जारी रहता है।