संघ संस्मरण
वर्ष 1952 में आम चुनावों में भारतीय जनसंघ कुछ खास न कर पाया। गुरुजी ने बीजेएस के एक कार्यकर्ता को लिखा, “जो जो चुनाव हार गए हैं उन्हें खेल भावना के साथ इसके परिणाम को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन अपनी संस्कृति की इस सच्ची भावना के साथ कि हमें हार और जीत दोनों में समान भाव से अपना कार्य बिना किसी मोह के करना है। जो जीत गए हैं, उन्हें यह अधिकार है कि वह खुश नजर आए, मगर फूलें नहीं और जो हार गए हैं, यह स्वाभाविक रूप से उदास दिखाई देंगे, परंतु उन्हें झुकना या निराश्रित नहीं महसूस करना है। आखिरकार, यह ऐसे ही रहा है और होना भी चाहिए कि यह पार्टियों के बीच एक खेल है, जो एक ही राजनीतिक संरचना की हिस्सेदार हैं और यह खेल बिल्कुल दोस्ताना तथा भाईचारे की भावना से खेलना चाहिए” उन्होंने आगे कहा, “ चुनाव प्रचार में यह अस्वाभाविक नहीं है कि काफी कड़वाहट और शत्रुता पैदा की जाए, पर मैं मानता हूँ कि इस प्रकार की अवांछित भावनाओं को सम्पूर्ण रूप से समाप्त कर देना चाहिए और एक सटीक तथा सही समझ कि हम सब एक ही मातृभूमि के बच्चे हैं, को परिश्रम पूर्वक स्थापित किया जाना चाहिए और सभी को, चाहे वह किसी भी पार्टी से संबंध रखते हों, यह निश्चित कर लेना चाहिए कि उन्हें एक दूसरे के सहयोग से लोगों की भलाई के लिए कार्य करना चाहिए। अगर सही अर्थों में देखा जाए तो सहमति का क्षेत्र ही विस्तृत होता है और मतभेदों का न के बराबर। इस अवधारणा के साथ हमारा प्रजातांत्रिक स्वरूप बना रहेगा, चाहे जो लोग इस को तोड़ना चाहते हैं, इस पर कितना भी प्रहार क्यों न करें तथा देश में कितनी ही अराजकता फैलाने का प्रयत्न करें।”
।। 5 सरसंघचालक, अरुण आनंद, प्रभात प्रकाशन, प्रथम संस्करण-2020, पृष्ठ- 96 ।।