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जब 12 साल की हिन्दू बच्ची इस्लामी मानसिकता की हुयी शिकार

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गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश : कभी-कभी कोई घटना सिर्फ अपराध नहीं होती वह एक सोच का खुलासा करती है। गाजियाबाद की 12 साल की मासूम हिन्दू बच्ची के साथ जो हुआ, वह इस बात का सबूत है कि कट्टरपंथी इस्लामी मानसिकता किस हद तक सड़ चुकी है। कट्टरपंथी मुस्लिमों की मानसिकता इतनी गिरी हुई है कि उसे उम्र, मासूमियत या नैतिकता कुछ भी नहीं दिखता। उनके लिए अगर कुछ मायने रखता है तो सिर्फ यह की हिन्दू बेटी है या तो इसका मतान्तरण करवा लो या इसके जीवन को नष्ट कर दो। दरअसल, एक मुस्लिम युवक ने इंस्टाग्राम के माध्यम से हिन्दू छात्रा से दोस्ती की, फिर जैसे ही बात बंद हुई, उसने उस छात्रा को बदनाम करने की धमकी दी। बच्ची की तस्वीरें इंटरनेट पर वायरल की और उस पर मतान्तरण करने का दबाव बनाने लगा। सोचिए, 12 साल की बच्ची को मतान्तरण के लिए विवश किया जा रहा है। ये मजहबी आतंक नहीं तो क्या है?

कट्टर सोच का नया चेहरा: डिजिटल लव-जिहाद

यह अब स्पष्ट हो चुका है कि कुछ मजहबी मानसिकताएँ सोशल मीडिया को हथियार बनाकर हिन्दू बेटियों को मानसिक, सांस्कृतिक और धार्मिक रूप से तोड़ने में जुटी हैं। यह ‘गंदी दोस्ती’ नहीं, एक योजनाबद्ध हमला है। जहाँ पहले बातचीत, फिर धमकी, और अंततः मतान्तरण की जबरदस्ती की जाती है। वशी नामक युवक ने जब देखा कि बच्ची का परिवार सतर्क हो गया है, तो उसने हिन्दू बेटी के दोस्तों से संपर्क करना शुरू कर दिया। पूछताछ, पीछा और धमकियाँ शुरू हो गईं। घर का पता दो, वरना तुम्हारी दोस्त की पढ़ाई बंद करवा देंगे। और जब बच्ची ने विरोध किया, तो कहा गया "इस्लाम अपना लो।" 

सबसे शर्मनाक हिस्सा: स्कूल ने भी मोड़ा मुँह

जब छात्रा की माँ फीस जमा करने स्कूल गई, तो शिक्षिका ने कहा, "हम आपकी बेटी का नाम काट रहे हैं। हम उसे अब पढ़ा नहीं सकते क्योंकि उसका फोटो इस तरीके से वायरल हुआ है" यानी जिस बच्ची को मजहबी शिकार बनाया गया, उसी को अपराधी बना दिया गया। ये कैसा न्याय है? ये किस तरह की सामाजिक चेतना है, जो पीड़िता को ही दंडित कर रही है? यह घटना मात्र पुलिस केस नहीं। यह समाज को खुली चुनौती है। समाज, शासन और शिक्षण संस्थानों को अब यह समझना होगा कि गंदी मजहबी मानसिकता से निपटने के लिए केवल कानून नहीं, ठोस सामाजिक इच्छाशक्ति चाहिए।