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सर्वधर्म समभाव का पालन करने की अपेक्षा केवल हिन्दुओं से ही क्यों?

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राष्ट्र सेविका समिति द्वारा जाल सभागृह में आयोजित दो दिवसीय लक्ष्मीबाई केळकर स्मृति व्याख्यानमाला सफलतापूर्वक संपन्न हुई. प्रथम दिवस, 30 जनवरी को कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉक्टर वैजयंती भौरास्कर एवं मुख्य अथिति संस्कृति मंत्री उषा ठाकुर थीं. प्रथम दिवस की वक्ता शेफाली वैद्य जी, सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर व प्रखर वक्ता भी हैं.

शेफाली जी के व्याख्यान का विषय था, नो बिंदी नो बिजनेस. जिसमें उन्होंने हिन्दू त्योहारों को लक्ष्य बनाकर किये जाने वाले विज्ञापनों से हिन्दू प्रतीकों के हटाये जाने पर प्रश्न उपस्थित किया. उन्होंने कहा कि हमारे उत्सवों को केवल एक कमर्शियल अवसर बना दिया गया है, जिसमें न हमारी संस्कृति, न हमारे प्रतीकों और न हमारी भावनाओं का सम्मान होता है.

हमारे त्योहारों पर कंपनियां ऐसे विज्ञापन निकालती हैं, जिनमें न आनंद, न उत्साह प्रकट होता है. बल्कि बेरंग कपड़ों में निरुत्साही चेहरे लिए मॉडल्स दिखते हैं. यही देखते हुए मैंने तय किया कि यदि आपको हमारा पैसा चाहिए तो हमारे प्रतीकों और हमारी भावनाओं का सम्मान करें. बिंदी या तिलक यह हिन्दुओं का एक प्रकट प्रतीक है, जो हमारी भावनाओं से जुड़ा है. यदि यही विज्ञापनों से हटा दिया तो हमारी पहचान कहां रही?

उन्होंने कहा कि हम अभी मानसिक गुलामी से उबरे नहीं हैं. जब तक कोई यूनिवर्सिटी हमें तिलक या बिंदी का महत्व नहीं बताती, हम उसे स्वीकार ही नहीं करते. हमारे त्योहारों को हमारी धार्मिक पहचान से तोड़ने का प्रयास हो रहा है, जिसमें विज्ञापनों से हमारे प्रतीक तो गायब हुए ही, अब त्योहारों के नामों का उर्दूकरण भी शुरू हो गया है. दिवाली को विज्ञापनों में जश्ने रिवाज क्यों कहा जाना चाहिए? सर्वधर्म समभाव का पालन करने की अपेक्षा केवल हिन्दुओं से ही क्यों की जाती है, अन्य से क्यों नहीं?

उन्होंने कहा कि देवी अहिल्या की नगरी में आकर अपना विषय रखते हुए उन्हें बेहद गर्व हो रहा है. कार्यक्रम के आरंभ में अध्यक्ष डॉक्टर वैजयंती भौरास्कर का स्वागत भारती कुशवाह, वक्ता शेफाली वैद्य का स्वागत सीमा भिसे द्वारा किया गया. गीत प्रस्तुति स्वाति निगम, वंदे मातरम गायन श्रुति शेन्द्रे द्वारा किया गया. कार्यक्रम की प्रस्तावना रश्मि मंडपे, आभार प्रदर्शन आरती मिश्रा और कार्यक्रम का संचालन रेणुका पिंगले द्वारा किया गया.