मैनपुरी, उत्तर प्रदेश
केसर का जिक्र होते ही कश्मीर ही याद आती है, क्योंकि केसर की खेती ठंडे इलाके और एक विशेष प्रकार की मिट्टी में ही संभव है। लेकिन उत्तर प्रदेश की सास-बहू की जोड़ी ने नया कीर्तिमान रच दिया है। मैदानी इलाके में असंभव मानी जाने वाली केसर को उगाकर ये जोड़ी आसपास के लोगों के लिए प्रेरणा बन गई है।
कहा जाता है जब हौसलों को राह मिलती है। तकनीक, लगन और मेहनत का गठजोड़ होता है। तब रचना होती है आत्मनिर्भरता की एक नई कथा की । मैनपुरी की शुभा भटनागर और उनकी बहू मंजरी ने यही कर दिखाया । उन्होंने मैनपुरी में एक हॉल में कश्मीर की केसर उगाकर मिसाल बना दी। शुभा भटनागर का कहना है कि तीन साल पहले उनके मन में कुछ नया करने की जिज्ञासा जगी। तकनीकी ज्ञान की कमी थी, लेकिन जज्बा भरपूर। उन्हें साथ मिला बहू मंजरी का। दोनों ने मिलकर गूगल पर खोजा कि केसर की खेती कैसे की जा सकती है। वर्ष 2023 में ये सास-बहू की जोड़ी कश्मीर पहुंची। वहां उन्होंने किसानों से प्रशिक्षण लिया और सीखा कि केसर कैसे बोई, सींची और संभाली जाती है। 30 अगस्त 2023 को रघुवीर शीतगृह के एक 1200 वर्गफुट हॉल को उन्होंने केसर के लिए विशेष चैंबर में बदल दिया। फिर क्या था – मेहनत रंग लाई और नवंबर में पहली फसल तैयार हो गई।
पहली बार में 2.25 किलो केसर का उत्पादन हुआ, जो ₹750 प्रति ग्राम के हिसाब से बिका। अब यह जोड़ी सालाना 3.5 किलो केसर उगा रही है, जिसकी कीमत ₹899 प्रति ग्राम तक पहुँच चुकी है। शुभा और मंजरी आज अपनी केसर की बिक्री पूरे भारत में ऑनलाइन कर रही हैं। ऑर्डर भी डिजिटल, डिलीवरी भी डिजिटल – सच्चे अर्थों में आधुनिक कृषि उद्यमिता का उदाहरण। इतना ही नहीं, इस पहल से 22 स्थानीय महिलाओं को रोजगार मिला है। यह प्रयास महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक ठोस कदम है। शुभा और मंजरी की जोड़ी सिर्फ सास-बहू नहीं अपितु विकसित भारत की प्रतीक हैं।