जबलपुर.
सरसंघचालक जी ने कहा कि आज विश्व की स्थिति साधन संपन्न है, असीमित ज्ञान है. पर उसके पास मानवता के कल्याण का मार्ग नहीं है. भारत इस दृष्टि से संपन्न है. परन्तु वर्तमान परिपेक्ष्य में भारत ने अपने ज्ञान को विस्मृत कर दिया. यह स्मरण करना शेष है कि हमें विस्मृति के गर्त से बाहर निकलना है. भारतीय जीवन दर्शन में अविद्या और विद्या दोनों का महत्व है, भौतिक और आध्यात्मिक जीवन में संतुलन बना रहे, इसीलिए दोनों का सह-संबंध आवश्यक है. उन्होंने कहा कि हिन्दू धर्म में इसे स्वीकार किया गया है, इसलिए हिन्दू धर्म अविद्या और विद्या दोनों के मार्ग से होकर चलता है. इसीलिए अतिवादी और कट्टर नहीं है. जबकि पश्चिम की अवधारणा में अतिवादिता तथा कट्टरपन दिखता है क्योंकि उन्हें अपने स्वार्थ की हानि का डर है. इस कारण से उनकी दृष्टि अधूरी है.
उन्होंने इंगित किया कि सृष्टि के पीछे एक ही सत्य है तथा उसका प्रस्थान बिंदु भी एक ही है. मानव धर्म ही सनातन धर्म है और सनातन धर्म ही हिन्दू धर्म है. जो सभी विषयों को एकाकार स्वरूप में देखता है. विविधता में एकता का विश्वव्यापी संदेश देता है. हमारे यहां धर्म की अवधारणा सत्य, करुणा, शुचिता एवं तपस है. यही धर्म दर्शन विश्व के कल्याण के लिए देना है.
इस अवसर पर मंच पर प्रान्त संघचालक डॉ. प्रदीप दुबे, योगमणि ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. जितेन्द्र जामदार, अखिल भारतीय सह बौद्धिक प्रमुख दीपक विस्पुते, सहित नगर के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे.