आगरा। गंगा और उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त और जल को स्वच्छ बनाने के लिए प्राकृतिक खेती और वनीकरण को बढ़ावा दिया जाएगा। इस दिशा में किसानों को नीमास्त्र और ब्रह्मास्त्र जैसे जैविक घोलों के उपयोग के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है।
यमुना शुद्धिकरण की कवायद -
यमुना, जो गंगा की प्रमुख सहायक नदी है, का जल अत्यधिक प्रदूषित हो चुका है। उप कृषि निदेशक पीके मिश्रा ने बताया कि यमुना के आसपास के क्षेत्रों में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का बड़े पैमाने पर उपयोग होता है। बारिश के दौरान ये रसायन बहकर यमुना में पहुंच जाते हैं, जिससे नदी का पानी और अधिक प्रदूषित हो जाता है।
यमुना के दोनों किनारों पर पांच किलोमीटर के क्षेत्र में किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रशिक्षित किया जाएगा।
प्राकृतिक घोलों से खेती का प्रोत्साहन -
• नीमास्त्र और ब्रह्मास्त्र: प्राकृतिक कीटनाशक घोल, जो रासायनिक कीटनाशकों का विकल्प हैं।
• जीवामृत, बीजामृत और घनामृत: जैविक उर्वरक, जो फसलों की उपज बढ़ाने और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने में सहायक हैं।
कृषि विभाग इन घोलों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए विशेष कदम उठा रहा है।
यमुना का प्रदूषण: आंकड़े चिंताजनक -
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, यमुना का पानी न तो पीने योग्य है और न ही नहाने योग्य।
• डिसॉल्वड बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD): 7.6 मिलीग्राम प्रति लीटर (आवश्यक स्तर 3-4 मिलीग्राम प्रति लीटर)।
• कुल कोलीफॉर्म: 15,000 (आवश्यक स्तर 5,000-6,000 तक)।
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि यमुना का पानी अत्यधिक प्रदूषित है और इसे शुद्ध करने की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है।
गंगा और यमुना के लिए साझा प्रयास -
गंगा को निर्मल और अविरल बनाने के लिए जैविक खेती और प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग को बढ़ावा देने के साथ, यमुना के जल को भी शुद्ध करने के प्रयास तेज कर दिए गए हैं।
प्राकृतिक खेती और जैविक विधियों से न केवल प्रदूषण कम होगा, बल्कि किसानों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा।
यह पहल न केवल नदियों को शुद्ध करेगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और मानव स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगी।