- जब दरिंदगी मजहब से ढँकी जाती है
- 'उस्मान' दरिंदा है या मजहबी संरक्षित प्राणी?
नैनीताल : 12 साल की मासूम चीख रही थी... उसका बचपन लहूलुहान था...और अपराधी? बुजुर्ग नहीं, दरिंदा था। नाम था मोहम्मद उस्मान। उम्र 73 वर्ष, पेशा ठेकेदारी और मजहब- वही जिसे आजकल कानून से ऊपर मान लिया गया है। लेकिन नैनीताल की सड़कों पर उठी आवाज अब सवाल पूछ रही है- "क्या मुसलमान होना अब अपराध करने का लाइसेंस है?" हर बार जब कोई बलात्कारी या आतंकी मुसलमान होता है, तो पूरा सिस्टम ‘सांप्रदायिक सौहार्द’ की चादर ओढ़ लेता है। मगर इस बार जनता चुप नहीं रहेगी। इस बार मुद्दा सिर्फ रेप नहीं मजहब की ढाल बन चुकी व्यवस्था है।
घटना की सच्चाई
स्थान : नैनीताल - मोहम्मद उस्मान ने लालच देकर बच्ची को गाड़ी में बैठाया।
फिर चाकू की नोंक पर उसकी अस्मत को रौंदा।
उस्मान ने बचपन को नोचा। इंसानियत का गला घोंटा।
बच्ची ने किसी तरह हिम्मत जुटाकर अपने परिजनों को इसकी जानकारी दी, बेटी की आप बीती सुनकर मां-बाप का दिल सिहर उठा। पुलिस ने आरोपी को पकड़ा, लेकिन प्रश्न अभी भी उठ रहे हैं, क्या ये गिरफ्तारी दिखावा है? क्या फिर वही सेक्युलर राजनीति की पुरानी पटकथा दोहराई जाएगी?
मजहबी दरिंदों का ट्रेंड: क्या ये इत्तेफाक है?
इस एक मामले से पहले भी देश ने कई बार देखा है कि जब आरोपी मुस्लिम होता है, तो... मीडिया का सुर बदल जाता है, सेक्युलर नेता चुप हो जाते हैं । एफआईआर से लेकर कोर्ट तक की रफ्तार धीमी हो जाती है।
पिछले चर्चित मामले:
1. बुलंदशहर गैंगरेप (2016) — मुस्लिम आरोपियों पर केस धीमा पड़ा।
2. जब सहारनपुर में मुस्लिम युवक पकड़ा गया तो मामला दबा दिया गया।
3. मेरठ, मुरादाबाद, बरेली में लव जिहाद के कई केस — पर कट्टरपंथी भावनाएं आहत होने के डर से चुप्पी।
महिलाओं में दिखी नाराजगी
नाबालिग के साथ हुई रेप की घटना के बाद अब महिलाओं में नाराजगी देखने को मिल रही है। घटना के बाद नैनीताल गांधी चौक पर महिलाओं ने एकत्र होकर आरोपी को फांसी देने और मामले की जांच फास्ट ट्रैक कोर्ट में करवाए जाने की मांग की है। महिलाओं ने चेतावनी दी जब तक आरोपी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की जाती, तब तक महिलाएं इसी तरह प्रदर्शन करती रहेंगी।
प्रदर्शन कर रही महिलाओं के द्वारा पहले शहर की माल रोड पर जुलूस निकालने का फैसला किया गया था, जिसे प्रशासन ने अनुमति नहीं दी, जिसके बाद महिलाओं ने गांधी चौक पर एकत्र होकर नाबालिग के साथ हुई घटना का विरोध दर्ज कराते हुए अपना गुस्सा प्रकट किया। साथ ही संयुक्त मजिस्ट्रेट के माध्यम से देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन भेजकर मामले का संज्ञान लेते हुए कड़ी कार्रवाई की मांग की।
प्रदर्शनकारियों की मांगें:
फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई
फांसी की सजा
मजहबी संस्थानों की जांच जो आरोपी को बचाने में लगे हैं
राजनीतिक तुष्टिकरण: इंसाफ का गला घोंटता सेक्युलरिज्म
जब-जब कोई आरोपी मुस्लिम होता है, तब-तब ये 5 पैटर्न सामने आते हैं:
1. नाम छुपा दिया जाता है
2. नेता "समाज को बांटने की साजिश" कहकर मुद्दा बदल देते हैं
3. पुलिस पर दबाव पड़ता है कार्रवाई धीमी करने का
4. कुछ पत्रकार "मोब लिंचिंग का खतरा" बताकर असली मुद्दा भटका देते हैं
5. अदालतों में सालों तक मामला लटका रहता है
अब प्रश्न उठता है की आखिर उस्मान को कब फांसी मिलेगी? या फिर... उसे भी बचा लेगा उसका मजहब? नैनीताल की बच्ची इंसाफ मांग रही है। वो पूछ रही है- "क्या मेरा रेप इसलिए कम गिना जाएगा क्योंकि आरोपी कट्टरपंथी समाज का है?"
अगर न्याय देने से पहले धर्म देखा जाने लगे, तो फिर न्याय की देवी की आंखों पर दोबारा पट्टी लग जायेगी। और अगर उस्मान जैसे आरोपी को भी 'मजहबी तमगा' लगाकर बचा लिया गया, तो ये देश कभी ‘न्याय की मूर्ति’ नहीं बन पाएगा।