• अनुवाद करें: |
संघ दर्शन

बालासाहब देवरस, व्यायामशाला से सरसंघचालक का सफर

  • Share:

  • facebook
  • twitter
  • whatsapp

रक्तपिपासु सांप्रदायिक ऐसा हिंदू धर्म नहीं है

परपीड़न का भाव हो जिसमें ऐसा हिंदू कर्म नहीं,

आक्रांताओं पर यह हिंदू गांठ बांध लो नरम नहीं,

सब धर्मों को हृदय लगाया सास्वत दिल है चर्म नहीं,

राष्ट्रप्रेम के अंतर ज्वाला हर मन में दहकाता है,

सत्य स्वरूपम चैतन्य रूपम हिंदू ही कहलाता है,

याद करो वह हिंदू है जो नारी को सम्मान दिया,

याद करो वह हिंदू है जो विश्व को अक्षर ज्ञान दिया

याद करो वह हिंदू है जिसने सिद्धांत रचाया है।।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का प्रमुख चेहरा बाला साहेब देवरस जी का जन्म मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पंचमी तिथि की 11 दिसंबर 1915 को महाराष्ट्र के नागपुर स्थित सामान्य परिवार में हुआ था। बचपन में माता और पिता ने मधुकर दत्तात्रेय के नाम से पुकारना प्रारंभ किया। शिक्षा-दीक्षा के साथ उनकी विचारधारा राष्ट्र के प्रति सुदृढ़ होती गई। पढ़ाई के साथ उन्होंने कई जनहित कार्यों को अंजाम दिया। परिवार चाहता था कि उनका बेटा पढ़ लिखकर भारतीय सिविल सर्विस की तैयारी करें। जिससे घर की आर्थिक स्थितियों का बेहतर सुधार कर सकें। दरअसल माता-पिता का मार्गदर्शन भले ही उन्हें नौकरी की तरफ खींचने का प्रयत्न कर रहा हो लेकिन उनकी विचारधारा हिंदु एकता के साथ धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक बदलाव की तरफ गहनता से बढ़ती जा रही थी। दत्तात्रेय देवरस जी ने अपनी शुरुआती परीक्षा नागपुर से प्रारंभ की। लॉ की डिग्री लेने के बाद उन्होंने अनाथ बस्तियों में जाकर बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान करना शुरु किया। उस समय उनका परिवार नागपुर के इतवारी में रहती था। वहीं उन्होंने पास की व्यायामशाला में जाना प्रारंभ किया। दत्तात्रेय जी का व्यायामशाला के दौरान हिंदुत्व विचारक और राष्ट्र समर्थक डॉ. हेडगेवार जी से मुलाकात हुई। मान्य डाक्टर साहब का शीर्ष नेतृत्व मिलने के साथ उन्हें राष्ट्र के प्रति सजगता का मूल मंत्र भी मिला। 1925 में संघ की शाखा की नींव रखी गई। शाखा का मुख्य उत्तरदायित्व डॉक्टर साहब ने निभाया। विधि का चक्र जब घूमता है तो किसी समानता या एकता को बढ़ने में समय नहीं लगता है। देवरस जी ने संघ के प्रति अपना समर्पण कर दिया। धीरे-धीरे दत्तात्रेय से बाला साहेब देवरस की भूमिका में नगर कार्यवाहक का उत्तरदायित्व संभालने लगे। 1965 में उनकी लगनता और ईमानदारी के कारण पदभार ऊचें पायदान पर पहुंचा दिया गया। दरअसल उनको सरकार्यवाह बना दिया। इस जिम्मेदारी को उन्होंने 1973 तक बखूबी निभाया। 

संघ में बालासाहेब ने अपना उत्तरदायित्व को ईमानदारी और समझदारी से निभाया। डाक्टर साहब का भरोसा बालासाहेब देवरस के प्रति बढ़ता चला गया। उनकी छवि में डॉक्टर हेडगेवार की छवि स्पष्ट झलकने लगी थी। बता दें कि,  बाला साहेब देवरस उन लोगों में से थे जिन्होंने डॉक्टर हेडगेवार जी के साथ नागपुर की पहली शाखा ‘मोहिते बाड़ा’ से संघ की शुरुआत की थी। देवरस जी का प्रशिक्षण भी खुद डॉक्टर जी के हाथों हुआ था शायद यही कारण था कि देश के अधिकतर स्वयंसेवकों को बाला साहेब देवरस में ही डॉक्टर साहेब की छवि नजर आती थी। ऐसा माना जाता है कि देवरस जी के परिवार की इच्छा थी की दत्तात्रेय नौकरी करें। बालासाहेब की आत्मिक इच्छा राष्ट्र के प्रति इतनी बढ़ चुकी थी, जिससे उन्हें जनहित और समाज सेवा के अलावा कुछ नजर नहीं आ रहा था। आखिर वहीं किया जो उनके लक्ष्य में निर्धारित था। संघ के प्रति दृढ़ता से कार्य करते हुए उन्होंने कई बड़े बदलाव किए। आपातकाल में सरकार की नजर संघ की तरफ थी। उस समय संघ की कार्यबद्धता पर प्रतिबंध भी लगाया गया था। इसके साथ कुछ स्वयं सेवकों की गिरफ्तारी भी शुरु कर दी गई थी। बालासाहेब ने अपनी कर्मठता से संघ की प्रतिष्ठा को बचाया। एकजुटता से सरकार के विरोध में खड़े हुए, आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा।  

उल्लेखनीय है, वर्ष 1932 तक बाला साहेब देवरस को संघ में बड़ी भूमिका मिल चुकी थी, वह संघ के साथ साथ सामाजिक कार्यों में भी उतनी ही रुचि रखते थे। सरसंघचालक डॉक्टर हेडगेवार जी के आग्रह पर उन्होंने एक अनाथ विद्यालय में बच्चों को पढ़ाना शुरु कर दिया था। वर्ष 1937 में पुणे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रशिक्षण शिविर चल रहा था जहां देवरस जी को मुख्य शिक्षक की जिम्मेदारी दी गयी उस समय प्रशिक्षण वर्ग 40 दिनों का हुआ करता था।

डॉक्टर साहेब को यह भली भांति ज्ञात था कि बाला साहेब देवरस एक ईमानदार और राष्ट्र प्रेमी व्यक्ति हैं इसलिए यह संघ के लिए पूर्णकालिक स्वयंसेवक रहेंगे।        

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक गुरुजी के स्वर्गवास के बाद बाला साहेब देवरस को सरसंघचालक का दायित्व दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि गुरुजी ने शरीर त्यागने से पहले एक पत्र में यह इच्छा जाहिर की थी कि उनके बाद बाला साहेब देवरस को ही संघ का दायित्व दिया जाए और संघ ने गुरु जी की आखिरी इच्छा पूरी करते हुए बाला साहेब देवरस को सरसंघचालक का दायित्व दिया। बालासाहेब ने अपने गुरुजी के मार्गदर्शन में नए किरण डालने का काम किया। संघ की प्रमुख जिम्मेदारी मिलने के बाद उन्होंने गरीबी और पिछड़े लोगों की तरफ विशेष ध्यान केंद्रित किया। इतना ही नहीं बालासाहेब ने दहेज प्रथा, छुआछूत और अन्य भेदभाव को समाप्त करने के लिए बड़ा संघर्ष किया था।  

दरअसल पहले संघ की शाखाएं 6 दिनों की लगती थी और रविवार को साप्ताहिक अवकाश रहता था और श्रावण महीने में सोमवार को भी छुट्टी होती थी लेकिन देवरस जी को जब नागपुर के प्रभारी का दायित्व मिला तो उन्होंने रविवार और सोमवार के लिए भी गतिविधियां आरंभ कर दी और धीरे-धीरे संघ की शाखा 7 दिनों की कर दी गई। उसी दौरान से आज तक संघ की शाखाएं साल के 365 दिन आरंभ रहती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में घोष तथा ‘समूह गान’ की प्रथा भी बाला साहेब देवरस के नेतृत्व में शुरु किया गया। वर्ष 1937 में विजयादशमी उत्सव के दौरान नागपुर में करीब 2 हजार स्वयंसेवकों ने एक साथ 5 सामूहिक गीत प्रस्तुत किये थे जो अपने आप में अद्भुत था। इस उत्सव के दौरान सभी दर्शक मंत्रमुग्ध हो गये थे और यहीं से संघ में घोष व समूह गान का प्रचलन भी प्रारंभ किया था।  

जातीय भेदभाव को लेकर बालासाहेब की आश्चर्यजनक घटना

बालासाहेब के जीवन काल की वो सत्यात्मक घटना जो आज तक प्रेरणा का स्त्रोत बनी हुई है। एक बार की घटना है देवरस जी शाखा के कुछ मित्रों को घर पर भोजन के लिए बुलाना चाहते थे लेकिन उससे पहले उन्होंने अपनी मां से इस बात का भरोसा लिया कि घर पर आए किसी भी मित्र से उसकी जाति नहीं पूछी जाएगी और सभी को एक समान बर्तन में खाना खिलाया जायेगा। देवरस जी ने अपनी मां से कहा कि उनके दोस्तों को खाने के साथ साथ इज्जत भी मिलनी चाहिए और ऐसा ही हुआ। इस घटना के बाद से उनके घर पर किसी की जाति कभी नहीं पूछी गयी और सभी को एक समान सम्मान दिया जाने लगा। बाला साहेब देवरस ने कई बार अपने व्याख्यान में इस बात का जिक्र किया कि छुआछूत एक अभिशाप है और इसे जल्दी खत्म करना होगा अन्यथा यह समाज को बहुत तेजी से बांटने का काम करेगा। बाला साहेब देवरस ने अपने 21 वर्षों के सरसंघचालक के कार्यकाल के दौरान जाति आधारित भेदभाव का जमकर विरोध किया। बाला साहेब की कर्मठता के कारण उनकी क्षवि राष्ट्र चिंतक, दृढ़ स्तम्भ कारी और जनसंघ के शिल्पकार के रूप में देखी जाने लगी। इसके साथ ही देवरस जी को हिंदु एकता और राष्ट्र परिवर्तन के रूप में बड़ा प्रतिष्ठित शख्सियत और मार्गदर्शक के रूप में आज भी याद किया जाता है। जनसंघ के लिए विशेष योगदान देने वाले देवरस जी का यह स्वप्न था कि जनसंघ का कोई देश का प्रधानमंत्री बने और उनकी यह इच्छा भी जिंदगी के आखिरी समय में माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने पूरी कर दी। बालसाहेब देवरस जी की भारत-पाकिस्तान, भारत-चीन युद्ध, 1975 का आपातकाल, जनता पार्टी का उदय, पंजाब में चरमपंथी, दलितों का इस्लाम में सामूहिक कन्वर्जन, इंदिरा गांधी की हत्या और राम जन्म भूमि आंदोलन जैसे कई बड़े परिवर्तन देश में देखने को मिले थे जिसमें बाला साहेब देवरस की अहम भूमिका रही।

(लेखक आईआईएमटी कॉलेज ऑफ मैनेजमेंट ग्रेटर नोएडा में पत्रकारिता एवं जनसंचार संकाय के छात्र हैं)