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धरोहर

शिकागो में स्वामी विवेकानन्द का सहिष्णुता का सन्देशजब धर्म संसद में बोले विवेकानन्द

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१८९३ में ११ सितम्बर को स्वामी विवेकानन्द (Swami Vivekanand) ने शिकागो (Chicago) की धर्म संसद (Parliament of Religions) में जब बोलना आरम्भ किया तो वहां बैठे लोगों के मन-मस्तिष्क में उनकी बातें गहराई तक उतर गईं। भारत को दीन-हीन मानने वाले आश्चर्यचकित थे।

विवेकानन्द जी (Vivekanand) के इस भाषण का आधार थी धार्मिक सहिष्णुता (Religious Tolerance)। जिस पर वर्तमान में भी वाद-विवाद छिड़ा रहता है। चाहे राजनीति का क्षेत्र हो या धर्म का।

परन्तु इस सहिष्णुता को बड़े ही सहज भाषा में स्वामी विवेकानन्द (Swami Vivekanand) अपने 5 मिनट के भाषण (Speech) में ही समझा चुके हैं।

५ मिनट में सहिष्णुता का सन्देश
विवेकानन्द (Vivekanand) ने जो कहा उसका अर्थ है ‘‘मुझे गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूँ, जिसने दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का मन्त्र सिखाया है।

भारत न मात्र सार्वभौमिक सहनशीलता में विश्वास रखता है, अपितु विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में भी स्वीकार करता रहा है।''



पारसियों पर बोले विवेकानन्द
वे तर्क देते हुए उन्होंने आगे कहा, ‘मैं एक ऐसे देश से हूँ, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों को परेशान किए बिना सभी लोगों को शरण दी है। इजराइल की पवित्र स्मृतियां संजोकर अभी तक भारत ने ही रखी हैं। जबकि रोम ने उनके धर्म स्थलों पर हमला कर खण्डहर बना दिया था। भारत ने महान पारसी धर्म के लोगों को भी शरण दी और आज भी वो हमारे साथ हैं।’

धर्म संसद में उन्होंने संकेतों में जता दिया कि ब्रिटिश यदि भारत पर शासन कर पा रहे हैं तो यह भी भारत की सहिष्णुता का ही कारण है। सहिष्णुता को ठीक ढंग से समझने के लिए दो उदाहरण है।



सहिष्णुता का वास्तविक अर्थ
पहला सहिष्णुता का अर्थ बर्दाश्त करना यानि टॉलरेट (tolerate) करना होता है। ऐसी सहिष्णुता दूसरी विचारधारा को पसन्द न करते हुए भी मात्र इसलिए समझौता करती है क्योंकि उस दूसरी विचारधारा को हटाना कठिन होता है। ऐसी स्थिति में अवसर मिलते ही एक विचारधारा दूसरी विचारधारा के उन्मूलन के लिए प्रयासरत हो जाती है और यह स्थिति विवाद या कभी-कभी तो जानलेवा बन जाती है।

ब्रिटिशों को हमने व्यापारी रूप में अपनाया परन्तु वे शासक बन बैठे। तब हमने श्रीकृष्ण का दिखाया मार्ग चुना और उन्हें यहां से भागने पर विवश कर दिया।
परन्तु यदि सहिष्णुता (Tolerance) को गहराई से समझे तो यह समरसता और प्रेम पूर्ण स्वीकार भाव यानि Acceptance है। सहिष्णु होने के लिए आवश्यक है कि हम सभी में एक-दूसरे के धर्म, भाषा और संस्कृति के प्रति आदर का भाव हो न कि डरा-थमकाकर या लालच देकर दूसरों पर अपना धर्म या विचार थोपना।

यही समरसता पूर्ण सहिष्णुता (Harmonious Tolerance) सदा से ही भारत की संस्कृति में रची-बसी है।