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ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजता उत्तर प्रदेश

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उत्तर प्रदेश जनसंख्या, राजनैतिक, जागरूकता, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक विरासत व स्वतंत्रता आंदोलन की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण राज्य रहा है। यहां का इतिहास शांति-पूर्ण सह अस्तित्व का इतिहास है। यहां बौद्ध, जैन, इस्लाम, सिक्ख व सनातनधर्मी अनुयायी एक साथ रहे और एक-दूसरे के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व धार्मिक जीवन को प्रभावित व समृद्ध करते रहे। विविधता में एकता तथा ‘‘जियो और जीने दो’’ का व्यवहारिक स्वरूप यहां की पहचान है। यहां धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण बहुत से स्थान है साथ ही बहुत से ऐसे स्थल भी है, जिन्हें तीर्थ नहीं कहा जा सकता, लेकिन ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजे हैं यथा - 

भीतरगांव - कानपुर जिले की घाटमपुर तहसील में कानपुर से लगभग 32 कि.मी. दक्षिण में स्थित है। यहां गुप्त कालीन ईंट का बना हुआ एक महत्वपूर्ण मंदिर है। यह गुप्तकालीन वास्तुकला का उत्तम उदाहरण है। 

प्रयाग (इलाहाबाद) - यह एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है। लगभग प्रत्येक धार्मिक ग्रंथ में प्रयाग का उल्लेख मिलता है। यहां हर 12 वें वर्ष कुम्भ और हर छठें वर्ष अर्द्ध कुम्भ का मेला लगता है। भारद्वाज मुनि का आश्रम तथा प्राचीन अक्षयवर भी यहीं है। प्रयाग, गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है तथा ‘तीर्थराज’ के नाम से भी जाना जाता है। संगम पर एक किला है, जिसे अकबर ने बनवाया था। संगम पर लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर भी है। कहते है कि मां गंगा स्वयं उनका अभिषेक करने आती हैं। 

सोरों (जिला एटा) - सोरो या शूकर क्षेत्र की गणना भारत के पवित्र तीर्थों में होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि के प्रारम्भ में पृथ्वी का आविर्भाव यहीं हुआ था यहां वराह भगवान का एक अति प्राचीन दर्शनीय मंदिर है। जिसमें भगवान वराह की विशाल प्रतिमा स्थापित है। प्राचीन काल से ही यहां वराह भगवान की पुण्य-स्मृति में मार्गशीर्ष का मेला लगता है। 

काशी (वाराणसी)- यह भारत ही नहीं अपितु संसार के प्राचीनतम नगरों में से एक हैं। वाराणसी नाम वरूणा और अस्सी दो नदियों से मिलकर बना है। यहां काशी विश्वनाथ, अन्नपूर्णा, संकटमोचन, दुर्गा मंदिर, तुलसी मानस मंदिर, विश्वविद्यालय का विश्वनाथ मंदिर, आदि विश्वेश्वर, साक्षी विनायक आदि दर्शनीय मंदिर है। कुण्डों तथा वापियों में दुर्गा कुण्ड, पुष्कर कुण्ड, पिशाच मोचन, कपिलधारा, मानसरोवर तथा मंदाकिनी उल्लेखनीय हैं। यहां 84 घाट हैं जिनमें अस्सी तुलसी, हरिश्चन्द्र, अहिल्याबाई, दशाश्वमेघ तथा मणिकार्णिका घाट आदि विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। शाम के समय नाव पर बैठकर गंगा की आरती का दर्शन करने विदेशी भी बड़ी संख्या में प्रतिदिन यहां आते हैं। 

सारनाथ - बौद्ध तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध है। बोध गया में ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान बुद्ध ने मृगदाव (सारनाथ) में आकर अपना धर्मोपदेश दिया था। यहां खुदाई में अनेक प्राचीन विहारों और मंदिरों के भग्नाविशेष प्राप्त हुए हैं। यहां का धामेख स्तूप जगप्रसिद्ध है। साथ ही यहां का पुरातत्व संग्रहालय भी दर्शनीय है। 

शाकुम्भरी देवी (सहारनपुर) - सहारनपुर से 41.5 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर चारों ओर पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इसके पास ही देव कुण्ड सरोवर है। यहां नवरात्रि में मेला लगता है। 

हस्तिनापुर  (मेरठ) - मेरठ से 35.2 किमी. दूर यह नगरी पांडवों की राजधानी थी।  कार्तिक पूर्णिमा को यहां बड़ा मेला लगता है। यह प्रसिद्ध जैन तीर्थ भी है। आदि तीर्थंकर ऋषभदेव जी को राजा श्रेयांस ने यहीं इक्षुरस का दान दिया था। इसलिए इसे ‘दानतीर्थ’ कहा जाता है। यहां के जम्बूदीप जैन मंदिर के दर्शन हेतु वर्ष पर्यन्त लोग आते रहते हैं। स्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों के मंदिर यहां है। साथ ही पाण्डवों का टीला (जिसकी प्रो. बी. लाल ने 1952 में खुदाई कराकर, बहुत सी पुरातात्विक वस्तुएंे प्राप्त की थी), पांडव मंदिर, विदुर टीला, बारादरी, द्रोणेश्वर मंदिर, कर्ण मंदिर, द्रोपदी घाट, कामा घाट आदि महत्वपूर्ण व दर्शनीय स्थल हैं। 

कुशीनगर - पडरौना से लगभग 19 किमी. दूर है। वर्तमान कसया नगर के पास स्थित है। भगवान बुद्ध ने यहां निर्वाण प्राप्त किया था। यहां खुदाई में एक प्राचीन निर्वाण स्तूप मिला है। कई गुप्तकालीन विहार और मंदिर भी उत्खनन से प्रापत हुए हैं। सर्वाधिक महत्पवूर्ण मूर्ति है बुद्ध की लेटी हुयी विशाल प्रतिमा। बुद्ध पूर्णिमा से यहां मेला प्रारम्भ होता है, जो लगभग डेढ़ माह तक चलता है। 

मथुरा- इसकी गणना सप्त महापुरियों में होती है। यहां श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। मथुरा में द्वारकाधीश का मंदिर और विश्राम घाट है। इसके दर्शन के लिए प्रतिदिन लाखों लोग आते हैं। 

वृंदावन - यहां लगभग 4000 मंदिर, घाट और सरोवर है। गोंविद देव मंदिर बड़ा भव्य और संुदर है। इसके साथ ही रंगनाथ मंदिर बिहारी जी का मंदिर, राधावल्लभ जी का मंदिर, राधारमण जी का मंदिर, गोपीनाथ मंदिर, शाह जी का मंदिर, अष्ट सखी मंदिर और प्रेम मंदिर जगप्रसिद्ध है। निधिवन और सेवा कुंज प्रसिद्ध वन स्थलियां हैं। वंशीघाट, कालीदह, कशघाट आदि यमुना के प्रसिद्ध घाट यहां स्थित है। 

बरसाना- इसका मूल नाम ब्रहमासारिणी था। यह भगवान कृष्ण की प्रिय राधा रानी का जन्म स्थान है। यहां लाडली जी (राधा जी का स्थानीय नाम) का मंदिर है। राधाष्टमी पर यहां मेला लगता है। 

बिठूर - यह ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसका प्राचीन नाम ब्रहमावर्त तीर्थ है। यहां महर्षि बाल्मीकि का आश्रम, सीता रसोई आदि मुख्य दर्शनीय स्थल है। 

चित्रकूट - वन जाते समय श्रीराम यहां रूके थे। जनश्रुति के अनुसार बाल्मीकि ऋषि भी यहां रहे थे। मंदाकिनी नदी चित्रकूट के जंगलों से होकर बहती है। इस नदी के बांये तट पर कामतानाथ से लगभग 2.4 किमी पर सीतापुर है। जहां नदी के किनारे-किनारे 24 घाट हैं। इनमें से राघव प्रयाग, कैलाश घाट, रामघाट और घृतकल्प घाट विशेष महत्वपूर्ण हैं। सीतापुर में अनेक प्राचीन मंदिर हैं। रामघाट के समीप स्थित पर्णकुटी के विषय में कहा जाता है कि श्रीराम ने यहां निवास किया था। यहां से लगभग 30 किमी. की दूरी पर सती अनुसूया और महर्षि अत्रि का आश्रम है। एक पहाड़ी के अंचल में अनुसूया, अत्रि, दत्तात्रेय और हनुमान जी के मंदिर है। इसे मंदराचल कहते हैं। यहां से मंदाकिनी निकलती है। सीतापुर से 3.30 किमी. की दूरी पर रमणीक जानकी कुंड है। यहां नदी की धारा स्वेत पत्थरों के ऊपर से होकर बहती है। जानकी कुंड से 3.2 किमी पर स्फटिक शिला है। यहां दो बड़ी चट्टाने हैं। कहा जाता है कि राम, लक्ष्मण और सीता ने यहां विश्राम किया था। चित्रकूट में भरत कूप भी है। इस सम्बंध में एक कथा है कि श्रीराम के राजतिलक हेतु सभी पवित्र नदियों से एकत्र जल को इस कुएं में डाला गया था।

आगरा - विश्व का आश्चर्य कहा जाने वाला ताज महल जो कि सफेद संगमरमर से बनाया गया है। इसे देखने के लिए विश्वभर से लोग आगरा आते हैं। आगरा से 40 किमी. दूर स्थित फतेहपुर सीकरी में अकबर का बनवाया हुआ किला और महल है। अकबर का मकबरा सिकन्दरा तथा एतमादुद्दौला का मकबरा शिया संत काजी नूरूल्ला की मजार भी उल्लेखनीय है। 

लखनऊ - जनश्रुति है कि यह नगर भगवान राम के भाई लक्ष्मण ने बसाया था। इसका प्राचीन नाम लक्ष्मणपुरी था। यहां एक पुराना टीला है जो लक्ष्मण टीला के नाम से प्रसिद्ध है। नवाब आसफुद्दौला ने यहां रूमी दरवाजा, इमामबाड़ा आसफी मस्जिद, दौलतखाना, रेजीडेंसी, बिबियापुर कोठी, आदि का निर्माण कराया। गाजीउद्दीन हैदर ने मोती महल, मुबारक मंजिल, सआदत अली का मकबरा बनवाया। स्वतंत्रता संग्राम सैनिकों के सम्मान में बनवाया गया शहीद स्मारक, चिड़ियाघर व बाटेनिकल गार्डन भी दर्शनीय स्थल है। इन सभी ऐतिहासिक स्थानों को देखने के लिए वर्ष भर लोग यहां आते रहते हैं। 

गोला गोकर्णनाथ - लखीमपुर खीरी से लगभग 35 किमी. दूर स्थित गोला गोकर्णनाथ के विषय में कहा जाता है कि रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे लंका में शिवलिंग, स्थापित करने को कहा था। पर शिवलिंग को ले जाते समय उसे भूमि पर रखना निषेध था। परंतु लघुशंका के चलते रावण ने उसे एक भक्त को दे दिया और भक्त शिवलिंग वहीं स्थापित हो गया। वापस आकर रावण बहुत क्रोधित हुआ पर अब कुछ नहीं हो सकता थां इस कथा के आधार पर इस स्थान का नाम गोला गोकर्णनाथ हुआ। 

कम्पिल (फर्रूखबाद) - विष्णु पुराण, जातक कथाओं, रामायण व अनेक अन्य ग्रंथों में इस नगरी का उल्लेख है। यह स्थान जैन धर्म के प्रवर्तक तेरहवें तीर्थकर भगवान विमल नाथ, महासती द्रोपदी तथा गुरु द्रोणाचार्य की जन्मस्थली है। यहां कपिलमुनि का आश्रम, रामेश्वरधाम मंदिर, जैन श्वेताम्बर मंदिर, जैन दिगम्बर मंदिर, भेदकुण्ड, अनेक छोटे मंदिर, भग्नावशेष प्राचीन कुंए आदि अमूल्य सांस्कृतिक धरोहर विद्यमान हैं। जो पर्यटकों, तीर्थ यात्रियों, शिल्पियों शोध-छात्रों आदि के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है। 

संकिस्सा (फर्रूखबाद) - प्राचीन काल में संकास्य नाम से जाना जाता था। चीनी यात्री हेवनसांग ने इसका उल्लेख कपित्थ नाम से किया है। इसके एक टीले पर कुछ भग्नावशेष हैं। बौद्ध मतानुयायियों के अनुसार भगवान बुद्ध यहां देवलोक से अवतरित हुए थे। 

कन्नौज - प्राचीन काल में कान्यकुब्ज नाम से जाना जाता था। चीनी यात्री हवेनसांग के अनुसार वहां अनेक संथालय थे, जिनमें लगभग 10,000 भिक्षु रहते थे। नगर में 200 देव मन्दिर थे। जिनमें से अनेक शिव, विष्णु और देवी के मंदिर थे। यहां क्षेमकली देवी का मंदिर, पदमावती सती मन्दिर, हजारों वर्ष पुराने खण्डहर आदि है। पुरातत्व, कला और संस्कृति के कारण पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र हैं। 

गोरखनाथ मंदिर (गोरखपुर):- जिस स्थान पर महायोगी गोरक्षनाथ ने खिचड़ी का प्रसाद बांटा और चमत्कार दिखाया। उसी स्थान पर गोरक्षनाथ जी का मन्दिर स्थापित है। यह महायोगी जी की तपस्थली और नाथ सम्प्रदाय का सिद्धपीठ है। प्रतिवर्ष यहां मेला लगता है।

शुक्रताल (मुजफ्फरनगर):- जिस वटवृक्ष के नीचे बैठकर महर्षि शुक्राचार्य ने राजा परीक्षित को महाभारत की कथा सुनाई थी, वहां अब एक भव्य मंदिर है। पास ही हनुमान मंदिर, नक्षत्र वाटिका व अन्य बहुत से मंदिर है। यहां भागवत कथा का आयोजन लगभग वर्षपर्यन्त होता रहता है। बड़ी संख्या में पर्यटक व श्रद्धालु यहां आते हैं। 

बाराबंकी - लखनऊ से लगभग 27 किमी. की दूरी पर स्थित बाराबंकी में महादेवा, किन्तूर, कोटवाधाम आदि प्रसिद्ध स्थान है। जनश्रुति है कि महाराज युधिष्ठिर ने यहां महादेव की स्थापना की थी महारानी कुंती द्वारा स्थापित कुन्तेश्वर मंदिर भी किन्तूर ग्राम में है। 

कहा जा सकता है कि ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजता उत्तर प्रदेश अपने आप में विशिष्ट है। अनूठी है यहा की धरोहर...जिन्हें देखने को लोग लालायित रहते हैं।

- लेखक प्रोफेसर हैं , इतिहास विभाग, चौ. चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ