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संघ और सेवा को एक दूसरे का पर्याय मानते हैं डॉ. मोहन भागवत

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हाल में उत्तराखंड की देवभूमि ऋषिकेश में भाऊराव देवरस सेवा न्यास के द्वारा निर्मित माधव सेवा विश्राम सदन के लोकार्पण समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत ने सेवा को मानव का परम धर्म बताते हुए सेवा के लिए लोक-संपर्क को महत्वपूर्ण बताया है। सरसंघचालक ने कहा है कि लोक संपर्क के बिना जनसेवा के उद्देश्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता । माधव सेवा विश्राम सदन के लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में सरसंघचालक जी द्वारा व्यक्त  विचार निःसंदेह समाज में संवेदनशीलता और सेवाभावना को  जागृत करने की सामर्थ्य मौजूद है। उन्होंने कहा कि यह सेवा सदन सेवा और समर्पण का प्रत्यक्ष उदाहरण है। उल्लेखनीय है कि भाऊराव देवरस सेवा न्यास  का गठन 1993 में किया गया था जिसके प्रथम अध्यक्ष भाजपा के वरिष्ठ नेता स्व. पंडित अटल बिहारी वाजपेयी थे। स्व. श्री  भाऊराव देवरस की गणना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारकों में प्रमुखता से की जाती थी। स्व.मुरलीधर दत्तात्रेय देवरस उपाख्य भाऊराव देवरस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक स्व. मधुकर दत्तात्रेय देवरस उपाख्य बाला साहेब देवरस के छोटे भाई थे। 1992 में  भाऊराव देवरस के निधन के एक  वर्ष बाद उनकी पुण्य स्मृति में भाऊराव देवरस सेवा न्यास का गठन किया गया था। न्यास ने विगत  तीन दशकों में समाज सेवा के क्षेत्र में अनेक उल्लेखनीय कार्य किये हैं। माधव सेवा विश्राम सदन  का निर्माण कार्य दो वर्ष में  पूरा हुआ है और 1.40 लाख एकड़ क्षेत्र में निर्मित इस आश्रम की लागत लगभग तीस करोड़ रुपए आई है। इस  अनूठे सेवा सदन के निर्माण हेतु 150 दानदाताओं ने आर्थिक सहयोग प्रदान किया है। इस सेवा सदन का निर्माण  एम्स में इलाज हेतु आने वाले मरीजों और उनके परिजनों को अत्यंत कम शुल्क पर ठहरने की  सुविधा उपलब्ध कराने के पुनीत उद्देश्य से किया गया है।मानव सेवा सदन के लोकार्पण समारोह में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर सह कार्यवाह डा कृष्ण गोपाल, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक एवं महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी के साथ अनेक विशिष्ट विभूतियां सरसंघचालक मोहन भागवत के साथ मंच पर आसीन थीं।

         कार्यक्रम में  सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत ने मानव सेवा के महत्व पर  विस्तार से प्रकाश डालते हुए आगे कहा कि सेवा से  हमारे बंधुओं की स्थिति में बदलाव आता है और उन्हें अच्छे जीवन की अनुभूति होने लगती है लेकिन उससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि सेवा हमारे जीवन में सकारात्मक बदलाव लाती  है और सेवा का पुण्य  जीते जी हमें   स्वर्गिक आनन्द की अनुभूति प्रदान करता है। सेवा करने से लोगों में संपर्क स्थापित होता है। आज़ दुनिया में जो युद्ध चलते रहते हैं उसका सबसे कारण यह है कि मन से मन का संपर्क टूट गया है। संवाद के अभाव में समाज में जो दूरियां बढ़ी हैं उन्हें लोक संग्रह के माध्यम से दूर किया जा सकता है । सरसंघचालक ने कहा कि हमारे बीच कई समानताएं हैं। हमें उन्हें पहचानना होगा। मनुष्य के अंदर धीरे धीरे प्रस्तुत होने वाली दिव्यता की अनुभूति और अभिव्यक्ति ही सेवा है।

             उल्लेखनीय है कि सरसंघचालक मोहन भागवत ने अपने उद्बोधनों में हमेशा सेवा के महत्व को रेखांकित किया है। मानव सेवा के अभियानों में संघ के कार्यकर्ताओं की संलग्नता सर्वविदित है। दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन होने का गौरव हासिल कर चुके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य कर्ता मानव सेवा के हर अभियान में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। गौरतलब है कि गत वर्ष जयपुर में आयोजित राष्ट्रीय सेवा भारती के तीसरे राष्ट्रीय संगम  में सरसंघचालक ने कहा था कि संघ के स्वयंसेवक स्वभावत: सेवा करते हैं। जहां भी आवश्यकता होती है‌ संघ के कार्यकसर्ता अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं और अपनी सामर्थ्य के अनुसार सेवा करते हैं। सरसंघचालक ने हमेशा कहा है कि सेवा में स्पर्धा के लिए कोई स्थान नहीं है। यह मनुष्य की सामान्य अभिव्यक्ति है। मेरे पास जो कुछ है उसमें से सबको देने के पश्चात् जो बचता है वही मेरा है। यही सेवा है।