कुलपतियों की एक दिवसीय कार्यशाला में 3 महत्वपूर्ण परियोजनाओं का शुभारंभ
बहुभाषा शब्दकोष मल्टीलिंगुअल डिक्शनरी तैयार होगी
अनुवाद क्षमताओं को बढ़ाने के लिए तत्काल अनुवाद का उपाय
नई दिल्ली. कुलपतियों के लिए आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला के समापन सत्र के दौरान तीन महत्वपूर्ण परियोजनाओं का शुभारंभ किया गया. अस्मिता (अनुवाद और अकादमिक लेखन के माध्यम से भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री का संवर्धन); बहुभाषा शब्दकोष; और तत्काल अनुवाद के उपाय. इन सभी परियोजनाओं को आकार देने में प्रमुख भूमिका प्रौद्योगिकी की होगी, और एनईटीएफ और बीबीएस की बहुत बड़ी भूमिका होगी.
शिक्षा राज्य मंत्री डॉ. सुकांत मजूमदार ने उच्च शिक्षा के लिए भारतीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों के लेखन पर कुलपतियों की एक दिवसीय कार्यशाला का उद्घाटन किया. कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और भारतीय भाषा समिति (बीबीएस) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था.
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में डॉ. सुकांत मजूमदार ने विभिन्न उच्च शिक्षा पाठ्यक्रमों के लिए भारतीय भाषाओं में अध्ययन सामग्री तैयार करने के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि शिक्षा प्रणाली को देश की विशाल भाषायी विविधता को प्रतिबिंबित करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि छात्रों को उनकी मातृभाषा में ज्ञान प्राप्त हो. भारतीय भाषाएं राष्ट्र के प्राचीन इतिहास और पीढ़ियों से चली आ रही बुद्धिमत्ता का प्रमाण हैं. युवा पीढ़ी में समृद्ध सांस्कृतिक और भाषायी विरासत में उनके विश्वास को मजबूत किया जाना चाहिए.
सत्र के दौरान, प्रो. चामू कृष्ण शास्त्री ने भारतीय भाषा संबंधी इकोसिस्टम विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया.
यूजीसी के नेतृत्व में भारतीय भाषा समिति के सहयोग से अस्मिता का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में 22 अनुसूचित भाषाओं में 22000 पुस्तकें तैयार करना है. भारतीय भाषा समिति के सहयोग से केंद्रीय भारतीय भाषा संस्थान (सीआईआईएल) के नेतृत्व में बहुभाषा शब्दकोष बहुभाषी शब्दकोशों का एक विशाल भंडार बनाने की एक व्यापक पहल है. भारतीय भाषा समिति के सहयोग से राष्ट्रीय शिक्षा प्रौद्योगिकी मंच (एनईएफटी) के नेतृत्व में तत्काल अनुवाद के उपाय, भारतीय भाषा में तत्काल अनुवाद क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक तकनीकी ढांचे के निर्माण की सुविधा प्रदान करेगी.
कार्यशाला में देश भर से 150 से अधिक कुलपतियों ने भाग लिया. कुलपतियों को 12 मंथन सत्रों में बांटा गया था, जिनमें से प्रत्येक 12 क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों की योजना बनाने और विकसित करने के लिए समर्पित था. प्रारंभिक भाषाओं में पंजाबी, हिन्दी, संस्कृत, बंगाली, उर्दू, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, तमिल, तेलुगु और ओडिया शामिल थीं.
चर्चा से मुख्य निष्कर्ष भारतीय भाषा में नई पाठ्यपुस्तकों के निर्माण को परिभाषित करना, पुस्तकों के लिए 22 भारतीय भाषाओं में मानक शब्दावली स्थापित करना और वर्तमान पाठ्यपुस्तकों के लिए संभावित सुधारों की पहचान करना, घटकों में से एक के रूप में भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) पर जोर देना, व्यावहारिक और सैद्धांतिक ज्ञान को जोड़ना शामिल था.