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भारतवासियों को भ्रमित करने के लिए आर्य-द्रविड़ संघर्ष की झूठी कहानी रची गई – स्वांतरंजन जी

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भारतवासियों को भ्रमित करने के लिए आर्य-द्रविड़ संघर्ष की झूठी कहानी रची गई – स्वांतरंजन जी

- उन्होंने कहा कि भारत की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है – भगवान महात्मा बुद्ध का जन्म और अजातशत्रु के राज्याभिषेक (1806 ईसा पूर्व) के 8 वर्ष बाद महात्मा बुद्ध जी का निर्वाण कुशीनगर में हुआ था। हमें गलत इतिहास को जैसा-तैसा स्वीकार नहीं करना है क्योंकि अंग्रेजों द्वारा फैलाए गए आर्य और द्रविड़ों के संघर्ष की एक भी घटना भारत में नहीं मिलती।

- जबकि 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड के एक आर्क विशप ने ओल्ड टेस्टामेंट का अध्ययन कर एक क्रोनोलॉजी बनायी। उसने कहा कि, सृष्टि की रचना 4004 ईसा पूर्व को हुई है और यही मान्यता ईसाई जगत में प्रचलित हुई। भारतीय वांग्मय बहुत पुराना है और इस 4004 वर्ष ईसा पूर्व के कालखंड में इसे समाहित तो किया नहीं जा सकता था।




लखनऊ। डॉक्टर श्यामसुंदर पाठक द्वारा सम्पादित टेबल साइज भारतीय पंचांग के लोकार्पण कार्यक्रम में मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वांतरंजन जी ने कहा कि आर्य-द्रविड़ संघर्ष की कहानी झूठी थी। यदि विचारों को भ्रमित कर दिया जाए तो पूरा समाज ही दिग्भ्रमित हो जाता है। अंग्रेजों के शासनकाल में यह कार्य तेजी व प्राथमिकता से हुआ।


किसी देश पर लम्बे समय तक शासन करना है तो उस समाज को ही दिग्भ्रमित कर दो अर्थात् उसके मन में यह भाव न जगने पाए कि यह हमारा राष्ट्र है, हमारा समाज है और इसके लिए हमें कुछ करना है। अंग्रेजों ने भारतीय समाज को भ्रमित करने के लिए एक नई परिभाषा गढ़ दी कि आर्य बाहर से आए, भारत में द्रविड़ लोग रहते थे। और आर्यों ने द्रविड़ों को परास्त कर दक्षिण में भेज दिया और अपना आधिपत्य जमा लिया। उनका उद्देश्य आर्यों को बाहरी सिद्ध करना था। इसी से आदिवासी और मूलवासी जैसे शब्द प्रचलित हुए। उन्होंने स्थापित करने का प्रयास किया कि आर्य, मुगल, पठान, सब बाहर से आए हैं। इनका भारत में कोई मूल स्थान नहीं है। इंडिया मल्टीनेशन्स वाला था, अंग्रेजों ने इसे आकर के एक देश बनाया।



स्वांतरंजन जी ने कहा कि भारतीय इतिहास में महाभारत का युद्ध एक मील का पत्थर है। भारत के अनेक मनीषियों ने अपने अध्ययन के आधार पर महाभारत के कालखंड का निर्धारण किया है। आर्यभट्ट और भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया है कि कलियुग का आगमन ईसा के जन्म से ३१०२ वर्ष पहले हुआ और महाभारत का युद्ध कलयुग आगमन से 37 वर्ष पूर्व हुआ था अर्थात् आर्यभट्ट और भास्कराचार्य दोनों ने ही महाभारत के युद्ध का कालखंड 3139 वर्ष ईसा पूर्व बताया है।


जबकि 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड के एक आर्क विशप ने ओल्ड टेस्टामेंट का अध्ययन कर एक क्रोनोलॉजी बनायी। उसने कहा कि, सृष्टि की रचना 4004 ईसा पूर्व को हुई है और यही मान्यता ईसाई जगत में प्रचलित हुई। भारतीय वांग्मय बहुत पुराना है और इस 4004 वर्ष ईसा पूर्व के कालखंड में इसे समाहित तो किया नहीं जा सकता था। अतः षड्यंत्र पूर्वक अंग्रेजों ने भारतीय ज्ञान व पुराणों को माइथॉलोजी बता दिया। कहा कि, यह कपोल कल्पना है। वे भारत के इतिहास को सिकंदर के आक्रमण से गिनते हैं अर्थात् 323 वर्ष ईसा पूर्व मात्र।


उन्होंने कहा कि भारत की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है – भगवान महात्मा बुद्ध का जन्म और अजातशत्रु के राज्याभिषेक (1806 ईसा पूर्व) के 8 वर्ष बाद महात्मा बुद्ध जी का निर्वाण कुशीनगर में हुआ था। हमें गलत इतिहास को जैसा-तैसा स्वीकार नहीं करना है क्योंकि अंग्रेजों द्वारा फैलाए गए आर्य और द्रविड़ों के संघर्ष की एक भी घटना भारत में नहीं मिलती। डॉ. भीमराव आंबेडकर भी मानते हैं कि भारतीय ग्रंथों और वेदों में यहां की नदियों, पर्वतों के बारे में जितना आत्मीयपूर्ण संबोधन है, वह बाहर से आया हुआ समाज कर ही नहीं सकता। आर्य एक गुण है, एक विशेषण है – तभी तो सीता जी भगवान राम को कई बार आर्य नाम से संबोधित करती हैं।


हमें समाज को भ्रमित करने वाली बातें ठीक करनी हैं। हिन्दू समाज भारतीय पंचांग पर पूरा विश्वास करता है। महाकुम्भ के आयोजन का उदाहरण देते हुए कहा कि पंचांग के अनुसार ही महाकुम्भ में बड़ी संख्या में भारतीय समाज पहुंचता है। आज भी पारंपरिक पंचांग के अनुसार ही पूरे नेपाल राष्ट्र में लोक व्यवहार चलता है। लेकिन दुर्भाग्यवश आज भारत की नई पीढ़ी में से अधिकाधिक को हिंदी के 12 महीने और 6 ऋतुओं के नाम तक नहीं पता हैं। पंचांग में कृष्ण पक्ष, शुक्ल पक्ष की वैज्ञानिकता को समझने की आवश्यकता है। हमें अपने ज्ञान की थाती को जानने और समझने की जरूरत है।