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पर्यावरण मित्रों से एक मुलाकात

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यूपी

बढ़ते ग्लोबल वॉर्मिंग और प्रदूषण पूरी दुनिया के लिए खतरा बन चुके हैं,  लेकिन ऐसे समय में कुछ लोग अपने छोटे-छोटे प्रयासों से बड़े बदलाव करके दूसरों के लिए उदाहरण बन रहे है। बता दें देश के अलग-अलग कोनों में कुछ ऐसे प्रेरक लोग सामने आए हैं, जो न केवल प्रकृति से प्रेम करते हैं, बल्कि अपने कामों से दूसरों को भी जागरूक कर रहे हैं।

प्रो. हर्षा खरकाल ने तैयार की बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक

 ऐसा ही कुछ देखने को मिला है, नोएडा के एमिटी यूनिवर्सिटी में जहां की प्रोफेसर हर्षा खरकाल ने ऐसा बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक तैयार किया है, जो मिट्टी में 60 दिनों के अंदर घुलकर पूरी तरह समाप्त हो जाता है। यह प्लास्टिक कृषि अपशिष्ट से बना है और इसके निर्माण में किसी हानिकारक रसायन या गैस का इस्तेमाल नहीं किया गया है। इसकी लागत भी पारंपरिक प्लास्टिक जितनी ही है, इससे डिस्पोजेबल कप, प्लेट, चम्मच और बगीचों के लिए पॉट तैयार किए गए हैं। उन्हें इसके लिए कई पेटेंट और अंतरराष्ट्रीय सम्मान भी मिल चुके हैं। प्रो. हर्षा ने यह दिखा दिया कि विज्ञान में प्रकृति की हर समस्या का समाधान छिपा है।

आगरा के ‘ग्रीन मैन’ चंद्रशेखर शर्मा

वही आगरा के भोगीपुरा इलाके में रहने वाले रिटायर्ड बैंककर्मी चंद्रशेखर शर्मा ने अपने घर को एक हरे-भरे जंगल में बदल दिया है। उन्होंने अपने घर की दीवारों पर वर्टिकल गार्डन बनाया है और 1000 से ज्यादा पौधे लगाए हैं। इससे उनके घर का तापमान 5 से 6 डिग्री तक कम रहता है। उनके इस काम के कारण उन्हें “ग्रीन मैन” कहा जाने लगा है। उनका घर अब ‘ग्रीन हाउस’ के नाम से प्रसिद्ध है

Special on Environment Day: vertical garden temperature of the house will reduce by 5 to 6 degrees

आगरा के ही त्रिमोहन मिश्रा की प्रतीकात्मक मुहिम

वहीं, आगरा के ही त्रिमोहन मिश्रा ने पेड़ों की अहमियत बताने के लिए एक अनोखी मुहिम चलाई है। वो हर दिन एक छोटे पौधे से ऑक्सीजन मास्क जोड़कर अपने चेहरे पर लगाते हैं और बाजारों में घूमते हैं। उनका संदेश साफ है – “जब पेड़ नहीं रहेंगे, तो सांस कैसे बचेगी'' , उनकी यह मुहिम धीरे धीरे अब देश-विदेश में भी फैल रही है। 


नोएडा की प्रो. हर्षा, आगरा के चंद्रशेखर शर्मा और त्रिमोहन मिश्रा जैसे लोगों के प्रयास हमें यह सिखाते हैं कि पर्यावरण बचाने के लिए कोई बड़ा पद या पैसा नहीं, बस एक सच्ची सोच और मेहनत चाहिए। अगर हर व्यक्ति एक पौधा लगाए, प्लास्टिक का सही विकल्प चुने और प्रकृति के साथ मित्र जैसा व्यवहार रखें, तो हम आने वाली पीढ़ियों को एक बेहतर और सुरक्षित वातावरण दे सकते हैं।