उत्तरप्रदेश।
- आखिर क्या है आंवला नवमी का महत्व?
- आंवला नवमी कब और किस प्रकार मनाई जाती है? शुभ मुहूर्त सहित।
- जानते हैं आंवला नवमी की वीविशेष फलदायी कथा के बारे मे।
आज कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी का पर्व मनाया जाता है। जिसे अक्षय नवमी, धात्री नवमी और कुष्मांड नवमी भी कहते हैं। यह दिन अक्षय तृतीया की तरह ही शुभकारी होता है। इस अवसर पर वृंदावन की परिक्रमा और आंवले के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है। इसी पर्व को पश्चिम बंगाल में जगधात्री पूजा के रूप मे मनाते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार आंवला नवमी के दिन द्वापर युग का आरंभ हुआ था। आंवला नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान शिव और श्री हरि विष्णु सहित मां लक्ष्मी का वास होता है। इस विशेष दिन पर आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोज के बाद पूर्व दिशा की ओर मुंह करके स्वयं भोजन करने और प्रसाद के रूप में आंवला खाने की विशेष मान्यता है। ऐसा करने से धन-सम्पदा और सुख शांति बनी रहती है।
आंवला नवमी कब और किस प्रकार मनाई जाती है? शुभ मुहूर्त सहित–
- आंवला नवमी पर पूजन के लिए स्वच्छ वस्त्र धारण कर आवश्यक सामग्री एकत्रित कर लें, इसमें आंवला जरूर शामिल करना चाहिए।
- आंवला नवमी पर पूरी सब्जी और मीठे में खीर और मिष्ठान का भोग अवश्य लगाएं।
- इसके पश्चात सभी पूजन सामग्री और भोग लेकर आंवले के वृक्ष के पास जाएं।
- आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर आंवले के पेड़ का पूजन करें और आंवले की जड़ में दूध अर्पित करें।
- आंवले के वृक्ष की पूजा करते समय हल्दी, कुमकुम, अक्षत, पुष्प, चंदन आदि चढ़ाएं।
- कपूर अथवा शुद्ध देसी घी से आरती करते हुए 7 बार आंवले के वृक्ष की परिक्रमा करें।
- पूजा के बाद व्रत की कथा पढ़नी अथवा सुननी चाहिए।
आंवला नवमी की विशेष फलदायी कथा –
आंवला नवमी पर लक्ष्मी जी की पूजा का विशेष महत्व है। इससे जुड़ी एक कथा है, एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण के लिए आई और रास्ते में उन्होंने भगवान विष्णु और शिव जी की एक साथ पूजा करने का मन बनाया। तभी माता लक्ष्मी को महसूस किया कि भगवान विष्णु की अति प्रिय तुलसी शिव जी के प्रिय बेल पत्र की विशेषता एक साथ आंवले के वृक्ष में ही पाई जाती है। इसके बाद माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को ही श्री हरि विष्णु और भगवान शिव का प्रतिरूप मानकर विधि सहित पूजा-अर्चना की। मां लक्ष्मी की पूजा से प्रसन्न होकर भगवान शिव और श्री हरि विष्णु प्रकट हुए। कहा जाता है कि इसके बाद माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे ही भोजन तैयार कर भगवान शिव और श्री हरि विष्णु को समर्पित किया। बाद में मां लक्ष्मी ने स्वयं इस भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। जिस दिन यह सब हुआ उस दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी।