- हिंदू पक्ष ने कहा अतिरिक्त सर्वे से उनके दावे को मजबूत किया जा सकता है
- मामले को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) पहले से ही सर्वेक्षण कर रहा है
वाराणसी। वाराणसी की अदालत ने ज्ञानवापी परिसर में नए और अतिरिक्त सर्वे की मांग को ठुकरा दिया है। यह याचिका हिंदू पक्ष द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने ज्ञानवापी परिसर के उस हिस्से में एएसआई द्वारा और गहराई से सर्वेक्षण करवाने की मांग की थी जो इस समय कानूनी दायरे में है।
क्या है पूरा मामला?
ज्ञानवापी का मामला काफी समय से विवादों में है। इसमें हिंदू पक्ष का दावा है कि ज्ञानवापी के अंदर और आसपास हिंदू धार्मिक संरचनाएं मौजूद हैं, जबकि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि ये जगह उनके धार्मिक स्थल की है। इस पूरे मामले को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) पहले से ही सर्वेक्षण कर रहा है, जो अदालत के निर्देशों के तहत जारी है।
हिंदू पक्ष ने मांग की थी कि परिसर के एक अलग हिस्से में और विस्तृत सर्वेक्षण किया जाए ताकि वहां किसी प्रकार की नई संरचना या प्रमाण मिल सके जो उनके दावे को समर्थन दे सके। लेकिन अदालत ने इस अतिरिक्त सर्वेक्षण की मांग को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वर्तमान सर्वेक्षण प्रक्रिया पर्याप्त है और इसके अतिरिक्त सर्वेक्षण की कोई आवश्यकता नहीं है।
अदालत का निर्णय
अदालत ने इस मामले में यह भी स्पष्ट किया कि पहले से जारी एएसआई सर्वे में जो क्षेत्र शामिल हैं, वही पर्याप्त माने जाएंगे और नए सर्वेक्षण के लिए अब कोई अनुमति नहीं दी जाएगी। अदालत का कहना है कि बार-बार नए सर्वेक्षण की मांग न केवल मामले को लंबा खींच सकती है, बल्कि यह न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक जटिलताएं भी पैदा कर सकती है।
दोनों पक्षों का रुख
हिंदू पक्ष-
उनका तर्क है कि ज्ञानवापी परिसर में उन धार्मिक संरचनाओं के प्रमाण मौजूद हैं, जो हिंदू धर्म से जुड़े हैं। उनका मानना है कि अतिरिक्त सर्वे से उनके दावे को मजबूत किया जा सकता है और इस पर विस्तृत रिपोर्ट आने से अदालत के समक्ष और ठोस सबूत पेश किए जा सकते हैं।
मुस्लिम पक्ष-
मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह मस्जिद स्थल है और इसे इस्लामी धार्मिक स्थल के तौर पर देखा जाना चाहिए। वे इन अतिरिक्त सर्वेक्षणों का विरोध करते आए हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह धार्मिक सौहार्द को प्रभावित कर सकता है।
इस फैसले का प्रभाव-
अदालत के इस फैसले से यह स्पष्ट है कि फिलहाल इस मामले में कोई अतिरिक्त सर्वेक्षण नहीं होगा, और एएसआई का काम जो पहले से चल रहा है, उसी पर निर्भर रहना पड़ेगा। यह निर्णय आने वाले समय में दोनों पक्षों के बीच जारी बहस और कानूनी लड़ाई को प्रभावित कर सकता है, और उम्मीद है कि इससे प्रक्रिया को थोड़ा तेजी मिलेगी।