- शिक्षा के नाम पर अंधेरा: जब मदरसा बन जाए धंधा
- मदरसा या धोखे का अड्डा? उत्तराखंड में शिक्षा की कब्रगाहें उजागर
- उत्तराखंड में दर्जनों अवैध मदरसों का भंडाफोड़, बच्चों को ना ज्ञान मिला, ना भविष्य
- आधुनिक शिक्षा की जगह परोसी जा रही थी दीनी तालीम
- बिना मान्यता, बिना विज्ञान, बिना भविष्य- इन अवैध मदरसों में बच्चों को पढ़ाया जा रहा था केवल अंधविश्वास और पुरानी घिसी-पिटी बातें
देहरादून : उत्तराखंड में प्रशासन की सख्त कार्रवाई से सामने आया है एक घिनौना सच। यहाँ मुस्लिम बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा था। इसी सिलसिले में भगवानपुर और झबरेड़ा में दो मदरसे सील किए गए। दरअसल, भगवानपुर और झबरेड़ा समेत पूरे राज्य में 136 से अधिक अवैध मदरसे बिना किसी वैध अनुमति के वर्षों से चल रहे थे। सरकार ने जब दस्तावेज मांगे, तो ज्यादातर संचालकों के पास दिखाने को कुछ भी नहीं था। लेकिन ये मदरसे केवल अवैध नहीं थे, ये ‘धंधा’ बन चुका था। इन मदरसों में ना पंजीकरण था, ना मान्यता लेकिन चौंकाने वाली बात यह थी कि इन संस्थानों को मोटी धनराशि मिल रही थी। यह राशि कहां से, किसके माध्यम से और किस उद्देश्य से आ रहीं थी इस पर अब जांच बैठा दी गई है। इसे हम शिक्षण संस्थान तो नहीं कहेंगे, ये बच्चों को बर्बाद करने की फैक्ट्री है।
सबसे चिंताजनक बात यह कि इन मदरसों में बच्चों को न विज्ञान सिखाया जाता था, न गणित, न तकनीक, न विश्व का कोई सामान्य ज्ञान। यहां पढ़कर बच्चे डॉक्टर या इंजीनियर नहीं बनते बल्कि पंक्चर गैरेज में ही सिमट कर रह जाते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, इन मदरसों में आधुनिक शिक्षा का कोई नामोनिशान नहीं था। कोई कंप्यूटर लैब नहीं, कोई विज्ञान प्रयोगशाला नहीं। बच्चे बस रटे-रटाए इस्लामिक पाठों में उलझे रहते, न उन्हें सवाल पूछने की आजादी होती, न सोचने की दिशा। बच्चों को एक संकीर्ण विचारधारा में ढालने का षड़यंत्र रचा जाता था। उन्हें यह बताया जाता था कि आधुनिक विज्ञान, अंतरिक्ष, प्रौद्योगिकी ये सब उनके लिए नहीं हैं। उनका जीवन एक तयशुदा मार्ग पर ही चलेगा और परिणामस्वरूप, जब ये बच्चे ऐसे संस्थानों से बाहर निकलते हैं, तो उनके पास न कोई कौशल होता है, न कोई डिग्री ताकि वो डॉक्टर व इंजीनियर बने इसलिए उनका भविष्य बस मजदूर या गैरेज के पंक्चर मिस्त्री बन्ने तक ही सीमित रह जाता था ।
मदरसों के नाम पर पैसों का खेल
कुछ मामलों में पाया गया है कि इन मदरसों को विदेशों से चंदा मिल रहा था, लेकिन उसका प्रयोग बच्चों के विकास में नहीं किया जा रहा था। सरकार अब इन संस्थानों की फंडिंग की फॉरेन्सिक जांच करा रही है क्योंकि आशंका यह है कि ये पैसे शिक्षा के लिए नहीं, बल्कि किसी और उद्देश्य के लिए भेजे जा रहे थे। इन मदरसों में बच्चों की संख्या का कोई लेखा-जोखा नहीं था। कई स्थानों पर बाल श्रम और यौन शोषण जैसी शिकायतें भी मिली हैं जिनकी पुष्टि के लिए जांच चल रही है। प्रशासन को यह भी जानकारी मिली है कि कुछ मदरसों में बच्चों को बाहर की दुनिया से पूरी तरह काटकर रखा जाता था। मोबाइल, टीवी, समाचार सब पर प्रतिबंध था। बच्चे सिर्फ वही सुनते थे जो उन्हें सिखाया जाता था। यह किसी शिक्षण संस्था की नहीं बल्कि मानसिक गुलामी की फैक्ट्री की तस्वीर थी।
क्या यह ‘शिक्षा’ है?
देश के प्रधानमंत्री बार-बार “डिजिटल इंडिया” और “नवाचार” की बातें करते हैं, वहीं इन मदरसों में बच्चे कंप्यूटर तक नहीं देख पाए। शिक्षा का उद्देश्य होता है ज्ञान, विवेक और स्वतंत्र सोच। लेकिन इन अवैध संस्थानों में यह सब नहीं था बल्कि सोच पर ताले जड़ दिए गए थे। अंत में प्रश्न यही है की यदि मदरसे बच्चों को सिर्फ पीछे खींचते हैं तो क्या उन्हें ‘शिक्षा केंद्र’ कहना भी उचित है? क्या देश के बच्चों को दीनी तालीम के नाम पर जंजीरों में जकड़ने वालों को हम और समय देंगे?