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डॉ. आंबेडकर जी और डॉ. हेडगेवार जी ने हिन्दू समाज की एकता के लिये अपना जीवन खपा दिया – डॉ. मोहन भागवत जी

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डॉ. आंबेडकर जी और डॉ. हेडगेवार जी ने हिन्दू समाज की एकता के लिये अपना जीवन खपा दिया – डॉ. मोहन भागवत जी

 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने आज कारवालों नगर स्थित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त कार्यालय का उद्घाटन किया। साथ ही केशव भवन में नवनिर्मित डॉ. भीमराव आंबेडकर सभागार का भी उद्घाटन किया। उन्होंने डॉ. आंबेडकर जयंती पर बाबा साहेब को पुष्पांजलि अर्पित की।



उन्होंने कहा कि “हिन्दू समाज में एकता-समानता बनाने के लिये डॉ. आंबेडकर जी और डॉ. हेडगेवार जी ने अपना पूरा जीवन खपा दिया। यही हमारा उद्देश्य है। भारत को एक मजबूत, आत्मनिर्भर और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र बनाने का। संघ का कार्य राष्ट्र निर्माण से जुड़ा है और इस नये कार्यालय से समाज में और भी प्रभावी ढंग से कार्य किया जाएगा”।


डॉ. आंबेडकर जी संघ की शाखा पर गए थे। उन्होंने कहा था – हमारा कुछ बातों में मतभेद हो सकता है, फिर भी संघ कार्य को हम अपनत्व के भाव से देखते हैं। यह समाचार उस समय के केसरी समाचार पत्र में प्रकाशित हुआ था। केसरी समाचार पत्र लोकमान्य तिलक जी का था, यद्यपि उस समय लोकमान्य तिलक जी नहीं थे। इन्हीं विचारों को लेकर संघ निरंतर आगे बढ़ रहा है, समता युक्त शोषण मुक्त भारत बने, ऐसा हम सब का प्रयास है।



उन्होंने कहा कि संघ का काम केवल संघ का काम नहीं है। वह वास्‍तव में समाज का काम है। पूरे समाज को वह काम करना चाहिये। अपने स्‍वयं के लिये, देश के लिये, परिवार के प्रत्‍येक व्‍यक्ति के लिये। दुनिया में कहीं भी, किसी भी देश में समाज जब इस काम को करता है, तब उसका प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक परिवार सुखी होता है। समाज के नाते समाज भी सुखी, प्रतिष्ठित, सुरक्षित होता है और उस समाज के कारण विश्‍व भी लाभान्वित होता है। अपने समाज में पिछले 2000 वर्षों से जो आत्मविस्‍मृति आयी, उसके कारण हम आपसी स्वार्थों में उलझ गए, भेद पैदा हुए। अधिकाधिक भेदों की खाई चौड़ी होती चली गई और हम अपने कर्तव्य से विमुख हो गए। जिसका लाभ विदेशी आक्रांताओं ने लिया। हमको पीटा-लूटा और यह बात चलती चली आयी। इसलिए यह काम पूर्णत: बंद हो गया। जो काम पूर्णत: बंद हो गया, वह काम समाज फिर करे, इसके लिये पहले प्रारम्‍भ करना पड़ता है। प्रारम्‍भ करने वाले अलग दिखायी देते हैं क्योंकि बाकी समाज नहीं करता है। शुरू में ऐसा लगता है कि वह काम उनका ही है, जिन्‍होंने आरम्‍भ किया है। मगर वह काम तो पूरे समाज का है। जैसे कोई स्कूटर, मोटरसाइकिल स्टार्ट करता है तो इसके लिए पहले चाबी घूमाकर स्टार्ट किया जाता है या दूसरा प्रकार होता है किक मारकर स्‍टार्ट करना। पहले तो वह स्टार्टर ही काम करता है, बाद में पूरी मशीन चलती है। 



सरसंघचालक जी ने कहा कि ऐसे अपना समाज, इसका प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक परिवार सुखी सुरक्षित निरामय बने। अपना कर्तव्य करे और पूरा समाज सुखी-सुरक्षित प्रतीत हो, जिससे विश्व की आवश्यकताओं को पूरा करने का उसका सामर्थ्‍य बने और वह वैसा करे। इसलिए यह काम शुरू हुआ। यह काम है हिन्दू संगठन का काम। जो अपने आपको हिन्दू कहता है, उनसे इस देश के भले-बुरे के बारे में पूछा जाएगा। अत: जवाबदेही भी उनकी बनती है। उस हिन्दू समाज को तैयार होना चाहिये क्योंकि भारत उनकी मातृभूमि है। वे भारत माता की भक्ति करते हैं। भारतवर्ष में महापुरुषों, भक्तों की, ऋषियों की, राजर्षियों की, ब्रह्मर्षियों की अखंड परम्‍परा है। भारत देश के भाग्योदय पर उनका भाग्योदय निर्भर है। भारत देश दुनिया में प्रतिष्ठित हो रहा है तो विश्व भर के हिन्दुओं की सुरक्षा-प्रतिष्ठा बढ़ रही है। ऐसा नहीं था, तब विश्‍व भर के हिन्दू न तो सुरक्षित थे और न ही प्रतिष्ठित। हिन्दू समाज का काम है भारतवर्ष के लिए अपने आपको ऐसा बनाना। यही कार्य है और उस कार्य का यह आलय है – यह कार्यालय। कार्यालय एक भवन नहीं होता। कार्यालय केवल कुछ कागज-पत्रों के रखने या कुछ लोगों के रहने की जगह नहीं होती। वहां पर संघ का घनीभूत अनुभव मिलता है। संघ का काम सबको जोड़ने का है तो कार्यालय में वह जोड़ने वाले स्वभाव का अनुभव मिलता है।



उन्होंने कहा कि संघ का कार्य सबके जीवन में सत्य, करुणा, शुचिता और तप की प्रवृत्तियां भरना है तो कार्यालय में सत्य, करुणा, शुचिता, तपस का प्रत्यक्ष अनुभव मिले। कार्यालय का जो भावात्मक स्वरूप है, वह मुख्य बात है।



संघ एक जीवन है, संघ एक वातावरण है। वह जीवन और उस जीवन से उत्‍पन्‍न हुआ वातावरण संघ कार्यालय में अनुभूत होता है और जैसा मैंने कहा कि यह करने वाले केवल संघ के स्वयंसेवक नहीं रहते। सभी लोग रहते हैं। कार्यालय में आने जाने वाले लोग भी रहते हैं। कार्यालय को बनाने वाले लोग भी रहते हैं।


आज जिनकी जयंती है, वह बाबा साहेब कहते थे कि स्वातंत्र्य, समता, बंधुता यह तत्‍वत्रयी फ्रांसीसी राज्‍य क्रांति से नहीं ली है। उसे मैंने भगवान बुद्ध के विचार से भारत की मिट्टी में पाया है। दुनिया का यह अनुभव है कि स्‍वातन्‍त्र्य प्राप्‍त करने गए तो समता नष्‍ट होती है और समता लाने जाएंगे तो स्‍वतन्‍त्रता के साथ संकोच करना पड़ता है। स्‍वातन्‍त्र्य और समता एक साथ लानी है तो तीसरा तत्व अनिवार्य है और वह है बंधुभाव। बंधुभाव ही धर्म है। भारत धर्म प्राण देश है। बाबा साहेब इस धर्म तत्व के पक्के पुरस्कर्ता थे। उनका काम क्या था? समाज के जड़-मूल से विषमता को उखाड़ देना। संघ अगर एक चाबी वाला स्‍टार्टर है तो बाबा साहेब का काम किक वाला स्‍टार्टर था क्‍योंकि हिन्दू समाज सुन नहीं रहा था। इसलिए हिन्दू समाज को इस विषमता से बाहर लाने के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन व्यतीत किया।



संघ का कार्य भी जिन डॉक्‍टर डी ने शुरू किया। उनको सामाजिक विषमता का शिकार तो नहीं होना पड़ा, परंतु दारिद्रय एवं उपेक्षा का शिकार होते रहे। बचपन से ही उन्होंने कठिन परिस्थिति में अपनी शिक्षा को पूर्ण किया और उन्होंने भी अपना पूरा जीवन इस समाज की विषमता को हटाकर उसको बंधुता एवं आत्मीयता के एकसूत्र में पिरोने में लगा दिया। अपने लिए कुछ नहीं लिया। जीवनभर हिन्दू समाज में एकता-समानता बनी रहे और यह हिन्दू समाज अपने आपको स्‍वतंत्र करे और सारी दुनिया को, जो सब प्रकार के शोषण- विषमता से चलती है, उससे मुक्त करने का रास्ता बताए। ऐसा योग्‍य अपना समाज बने। इसी‍ में दोनों की जिंदगी खप गयी।



केशव स्मृति समिति के अध्यक्ष कुंज बिहारी गुप्ता ने अंगवस्त्र तथा श्रीफल देकर सरसंघचालक जी का स्वागत किया। मंच पर कार्यक्रम की अध्यक्षता सनातन धर्म मंडल के अध्यक्ष वीरेंद्र जीत सिंह ने की। मंच पर प्रांत संघचालक भवानी भीख उपस्थित रहे। संचालन प्रांत सह संपर्क प्रमुख अरविंद मल्होत्रा ने किया।