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ज्ञान की प्रथम पाठशाला परिवार है – रामलाल जी

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 राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख रामलाल जी ने कहा कि अंग्रेजों ने देश को लूटने, बांटने और हीन भावना में डालने का कार्य किया. अगर आपको भारत को समझना है तो इसे भारतीय दृष्टि से देखें. आज भारत की संस्कृति को कुटुंब व्यवस्था ने सुरक्षित किया है. परिवार व्यवस्था का अपने यहां महत्व है. मनुष्य परिवार से ही धीरे-धीरे सीखता है. ज्ञान की प्रथम पाठशाला परिवार है. परिवार एकजुट होकर चलना सिखाता है, परिवार सहायक है न कि बाधक. हमारे परिवार कायदा नहीं व्यवस्था हैं, भय नहीं भरोसा है, शोषण नहीं पोषण है, संपर्क नहीं संबंध है. जब हम परिवार में रहते हैं तो सभी एकजुट होकर किसी भी प्रकार के आक्रमणों का सामना कर सकते हैं. जैसे पतंग को उसकी डोर ऊपर ले जाती है, ऐसे ही परिवार में एक-दूसरे का साथ हमें उंचाई पर पहुंचाता है, इससे कटें नहीं.

रामलाल जी ‘भारतीय परिवार व्यवस्था एवं वर्तमान चुनौतियाँ’ विषय पर अर्चना प्रकाशन न्यास द्वारा आयोजित पुस्तक लोकार्पण एवं व्याख्यान समारोह में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने जेंडर समानता, सेम सेक्स मैरिज जैसे कई मुद्दों पर बात की. उन्होंने कहा कि हमारे परिवार एवं उसमें महिलाएं, युवतियां, बच्चे देश विरोधी लॉबी के टारगेट पर हैं. इसलिए परिवार अपने बच्चों को इनके जाल में न फंसने दें. बच्चों के विकास में परिवार का महत्वपूर्ण योगदान होता है, अपने बच्चों को भारतीय मूल्यों की शिक्षा दें.

उन्होंने कहा कि आज परिवार को बाधक माना जाने लगा है. लोग कहते हैं परिवार में स्वतंत्रता समाप्त हो जाती है, लेकिन सच तो यह है कि परिवार में लोग एक दूसरे को संभालते हैं. परिवार समाप्त होने से अराजकता उत्पन्न होती है. हमारे ऋषि-मुनियों की लिखी बातों को आज का आधुनिक विज्ञान सिद्ध कर रहा है. दुनिया में व्यक्ति इकाई है, जबकि भारत में परिवार इकाई है.

परिवार को ठीक चलाने के लिए रामलाल जी ने एक्सेप्ट, एडजस्ट और अप्रीशएशन करने की बात पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि परिवार में एक दूसरे को स्वीकार करें, आपस में सामंजस्य बनाकर चलें और एक दूसरे की सराहना करते चलें. महर्षि अरविन्द कहते थे – ईंट पत्थर से परिवार नहीं बनता, बल्कि नैसर्गिक विचारों से परिवार बनता है. परिवार सामंजस्य से चलता है. परिवार में किसी पर आक्षेप न करते हुए हमें सकारात्मक रहना चाहिए.

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि मंत्री उषा ठाकुर ने कहा परिवारों की अक्षुण्णता बनी रहे, इसलिए भारतीय मूल्यों पर चिंतन करना आवश्यक है. हम सभी के पास ज्ञान का भंडार है, हम वेदों के उत्तराधिकारी हैं, सत्य सनातन को जानते हैं. अब इस प्राप्त ज्ञान को व्यवहारिक ज्ञान के रूप में धरातल पर उतारने की आवश्यकता है. उन्होंने सभी से भारत की पावन परंपराओं व संस्कृति के लिए कार्य करने की बात कही. साथ ही कहा कि हम सौभाग्यशाली हैं, जिन्हें भारत की भूमि जन्म के लिए मिली है.

कार्यक्रम में ‘भारतीय जीवन दृष्टि और परिवार परम्परा’ एवं ‘चातुर्मास’ पुस्तक का लोकार्पण हुआ. दोनों पुस्तकों के लेखक क्रमशः शिरोमणि दुबे, प्रादेशिक सचिव, सरस्वती विद्या प्रतिष्ठान म.प्र. व वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा जी हैं.