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पिता करता था मजदूरी, बेटी ने राष्ट्रीय स्तर पर नाम किया रौशन

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कहते हैं, लहरों से डरकर नोका पार नहीं होती मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती. कुछ ऐसे ही अपने सपनों को पाने के लिए मेहनत से ताइक्वांडो की राष्ट्रीय खिलाड़ी बनी सफीना खान अब अपनी इस प्रतिभा को दूसरी बेटियों को भी सिखा रही है, जिससे वे अपनी रक्षा खुद से कर सकें. अपनी प्रतिभा के बल पर वह कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालय की छात्राओं को राज्य स्तर पर कांस्य पदक दिलाने में कामयाब रही.

लखनऊ की रहने वाली सफीना का बचपन बहुत गरीबी में बीता. उनके पिता मजदूरी का काम किया करते थे लेकिन यह सब उनके सपनों की उडान में दिक्कत नहीं बन सका. उनकी इच्छा ताइक्वांडो खिलाड़ी बनने की थी, इसलिए उन्होंने पढाई के साथ-साथ ताइक्वांडो में आगे बढने के लिए बहुत मेहनत की. हालांकि लोगों ने उसे बहुत सी बातें कही लेकिन इससे उसका हौसला और अधिक मजबूत होता गया. 2005 में उन्होंने इंटर पास कर महिला डिग्री कॉलेज से स्नातक किया.

2006 में पंजाब में आयोजित हुई राष्ट्रीय ताइक्वांडो प्रतियोगिता में कांस्य पदक अपने नाम कराया था. खेल विभाग ने उन्हें 75 हजार की धनराशि प्रदान की हैं. वह दूसरी बेटियों को भी अपनी प्रतिभा के द्वारा सशक्त बनाने का काम कर रही हैं. वह उन्हें गुड टच और बैड टच के बारे में बताती हैं और आत्मरक्षा के गुर भी सिखाती हैं.

समाज में बेटियों को खेलों के माध्यम से ऐसी कला सिखानी चाहिए, जो उन्हें आत्मबल प्रदान कर सके. उन्हें स्वयं अपनी रक्षा करने के लिए जागरूक बनाना चाहिए. डरकर नहीं डटकर हर समस्या का सामना करना उन्हें आना चाहिए