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बंद हो मदरसों की आर्थिक मदद, दी जा रही धार्मिक शिक्षा -बाल आयोग

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कांग्रेस से साधी चुप्पी, बोले चिट्ठी पढ़ने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।

विरोध में उतरे मुस्लिम समाज के लोग...

मदरसों की सरकारी मदद को लेकर सभी तरफ से मांग उठ रही है। एक बार फिर से बाल आयोग मदरसों को लेकर फंडिंग बंद कराने के लिए सामने आया है। आयोग ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और भारत सरकार के सचिवों को पत्र लिखकर कहा है कि मदरसों में बच्चों को गलत और देश विरोधी शिक्षा दी जा रही है। सरकार द्वारा दी जा रही मिड-डे मील भोजन की सुविधा का लाभ भी बच्चों को नहीं मिल पा रहा है। हालांकि कई मुस्लिम संगठन इसके विरोध में उतर गए हैं। 

आयोग ने आरोप लगाते हुए कहा कि आरटीई शिक्षा से जुड़े सरकारी नियमों को नहीं मानता है। उन्होंने कहा कि मदरसे केवल धार्मिक शिक्षा पर ही बच्चों को फोकस करते हैं ।


क्या है बाल आयोग की मांग –

बाल आयोग ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि सभी राज्यों की तरफ से मदरसों का आर्थिक सहयोग बंद कर देना चाहिए। मदरसों से गैर-मुस्लिम बच्चों को चयन करके हटाना चाहिए।

संविधान के आर्टिकल 28 के मुताबिक, माता-पिता की सहमति के बिना किसी बच्चे को धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती। बाल आयोग ने कहा है कि एक संस्थान के अंदर धार्मिक और औपचारिक शिक्षा एक साथ नहीं दी जा सकती है। हालांकि इस विषय पर कांग्रेस किसी भी प्रकार का टिप्पणी करने से मना किया है। बयान में कहा गया है कि चिट्ठी पढ़ने के बाद कुछ कहा जा सकता है। लेकिन कर्नाटक में पार्टी के इलेक्ट्रॉनिक्स, आईटी, बायोटेक, ग्रामीण विकास और पंचायती राजमंत्री ने कहा कि आयोग को आदर्श रूप से उपाय सुझाने चाहिए, बजाय इसके कि राज्यों से मदरसों को वित्त पोषण बंद करने और बंद करने के लिए कहा जाए। उन्होंने कहा कि यह देखना बहुत विडंबनापूर्ण है कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा मदरसा शिक्षकों के वेतन को तीन गुना करने के फैसले के कुछ ही दिन बाद यह घटनाक्रम हुआ है। वहीं इस मामले में एनडीए की साथी लोकजनशक्ति पार्टी के प्रवक्ता ए.के. बाजपेयी ने कहा है कि अगर कोई मदरसा अवैध रूप से चलता पाया जाता है, तो उसे बंद कर देना चाहिए। लेकिन कोई भी काम आंख मूंदकर नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं पता कि एनसीपीसीआर ने राज्यों से कोई प्रतिकूल रिपोर्ट मिलने के बाद यह पत्र लिखा है या नहीं।