- उत्तर भारत का पहला गोंद गार्डन किसानों की नई आशा
- लालकुआँ में तैयार हो रही है समृद्धि की जैविक नर्सरी
- 861 पेड़ों से शुरू हुई यह पहल ग्रामीण रोजगार का टिकाऊ मॉडल
- खेती के साथ अब गोंद उत्पादन से आत्मनिर्भर बनेंगे काश्तकार
हल्द्वानी : जब प्रकृति संरक्षण और आर्थिक सशक्तिकरण का संगम किया जाए तो विकास सिर्फ कागजों में नहीं, खेतों और जंगलों में भी दिखाई देने लगता है। उत्तराखण्ड के लालकुआँ में तैयार हुआ उत्तर भारत का पहला गोंद गार्डन इसी बदलाव का प्रतीक है जहाँ विलुप्त होती प्रजातियों के साथ-साथ अब किसानों की आय और आत्मनिर्भरता की फसल भी लहलहाने लगी है। यह पहल सिर्फ जैव विविधता का संरक्षण नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थायी और लाभकारी बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। उत्तराखण्ड के लालकुआँ वन अनुसंधान केंद्र में तैयार हुआ उत्तर भारत का पहला गोंद प्रजातियों का गार्डन अब किसानों की आर्थिक दशा को बदलने की तैयार है। मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी की मानें तो वर्ष 2018 में लगाए गए 861 प्राकृतिक गोंद उत्पादक पेड़ अब उत्पादन के लिए तैयार हैं।
किन प्रजातियों को शामिल किया गया
इस गार्डन में बबूल, ढाक, झिंगन, कुंभी, उदाल, अकेसिया, सेनेगल और आमड़ा जैसी प्रजातियों को विकसित किया गया है जिनसे निकलने वाली प्राकृतिक गोंद की दवा, खाद्य, पेंट और चिपकने वाले उत्पादों में भारी मांग में है।
बाजार और मांग:
अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्राकृतिक गोंद के ऊँचे भाव
आयुर्वेदिक दवाओं और हेल्थ सप्लीमेंट्स में उपयोग
पेंट और गोंद उत्पादक कंपनियों से भी मांग
ये पहल किसानों को रासायनिक खेती से हटकर जैविक और लाभकारी विकल्प की ओर मोड़ने में कारगर साबित होगी।
क्या होगा लाभ:
- गोंद की खेती से कम पानी, कम देख-रेख में अच्छी कमाई
- बंजर या अनुपयोगी भूमि में भी खेती संभव
- नर्सरी से पौधे लेकर निजी भूमि पर लगा सकते हैं गोंद वाले पेड़
ग्रामीण युवाओं के लिए स्वरोजगार का अवसर
लालकुआँ वन अनुसंधान केंद्र का यह मॉडल न सिर्फ जैव विविधता के संरक्षण का उदाहरण है, बल्कि अब वह "प्राकृतिक संसाधनों से आत्मनिर्भर भारत" की दिशा में एक सफल प्रयोग बनता जा रहा है। वन विभाग जल्द ही जंगलों और अन्य क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर इन प्रजातियों का रोपण करेगा। किसानों को प्रशिक्षण और पौधों की आपूर्ति दी जाएगी। इससे पारंपरिक खेती से हटकर वैकल्पिक आय के स्रोत मिलेंगे। प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान और वैज्ञानिक अनुसंधान का समन्वय जब एक साथ आता है, तो उसका परिणाम होता है आत्मनिर्भरता। लालकुआँ का यह गोंद गार्डन न सिर्फ पेड़ों से लदा जंगल है, बल्कि सपनों का भी एक हरियाली भरा विस्तार है जहां किसान, शोधकर्ता और पर्यावरण तीनों मिलकर एक सशक्त भविष्य की जड़ें रोप रहे हैं।