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गिरीश जी में समाज में ईश्वर को देखने दृष्टि विकसित हुई – भय्याजी जोशी

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पुणे

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य भय्याजी जोशी ने पद्मश्री गिरीश प्रभुणे के अमृत महोत्सव सत्कार समारोह में कहा कि गिरीश प्रभुणे में समाज में ईश्वर को देखने की दृष्टि विकसित हुई है। उन्होंने ईश्वर की तरह ही समाज की सेवा की, जिसकी भक्ति का साधन कर्मशीलता थी। ऐसे कर्म मार्ग पर चलने वाले व्यक्तित्व का नाम गिरीश प्रभुणे है। चिंचवड स्थित प्रा. रामकृष्ण मोरे सभागार में आयोजित कार्यक्रम में प्रांत संघचालक प्रा. नाना जाधव, सांसद श्रीरंग बारणे, विधायक शंकर जगताप, विधायक उमाताई खापरे, विधायक अमित गोरखे, पद्मश्री रमेश पतंगे, आयुक्त शेखर सिंह आदि उपस्थित रहे। गिरीश प्रभुणे ने समाज के वंचित घटकों और घुमंतू-विमुक्त समुदायों के लिए ग्रामायण, यमगरवाड़ी परियोजना और पुनरुत्थान समरसता गुरुकुलम शुरू किया। वे पिछले ५० वर्षों से घुमंतू-विमुक्त समुदायों को शिक्षा के माध्यम से मुख्यधारा में लाने का कार्य कर रहे हैं। भय्याजी जोशी ने कहा कि “गिरीश जी ने बंधे-बंधाए जीवन से परे जाकर एक अंधेरा और उतना ही साहसी रास्ता चुना। जिन पर सत्कर्मों का विश्वास होता है, उन्हीं के लिए यह संभव होता है। समाज के प्रश्नों पर चर्चा करने और प्रबंध लिखने वालों की कमी नहीं है। परंतु, उसका समाधान खोजकर कार्य करने की प्रामाणिकता और हिम्मत बहुत कम लोगों के पास है। गिरीश जी के पास वह है। उन्होंने सफलता-असफलता का गणित न लगाकर, निराशा को पास न आने देकर यह साधना पूरी की है।” उन्होंने आह्वान किया कि शरीर, मन और बुद्धि के साथ-साथ आंतरिक शक्तियों से कोई कार्य स्वीकार किया जाए तो वह अपरिवर्तनीय रहता है। घुमंतू-विमुक्त और वंचितों के उत्थान के लिए गिरीश जी द्वारा शुरू किए गए इस यज्ञ में हम भी यथाशक्ति समिधा डालें, कार्यकर्ताओं को भी समाज कार्य के लिए साधनों की प्रतीक्षा न करते हुए कार्यरत रहना चाहिए। सांसद बारणे और विधायक शंकर जगताप ने मत व्यक्त किया कि वंचित वर्ग के बच्चों को गढ़ने के लिए प्रभुणे काका द्वारा किया गया कार्य अतुलनीय है, जिससे अगली कई पीढ़ियों को प्रेरणा मिलेगी। यमगरवाड़ी के समन्वयक महादेव गायकवाड ने बताया कि गिरीश जी के साथ उनकी पत्नी ने घर संभाला और पूरा परिवार ही इस ध्येयवाद में शामिल हो गया। गुरुकुलम की प्रधानाचार्या पूनम गुजर ने कहा, समाज के वंचित घटक को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने के लिए प्रभुणे काका ने २००६ में पुनरुत्थान समरसता गुरुकुलम्‌ की स्थापना की। भारत के पुनरुत्थान की भूमिका वाले गुरुकुल में कौशल-आधारित शिक्षा दी जाती है।

यमगरवाड़ी परियोजना की छात्रा ललिता जाधव ने कहा, “गिरीश जी हमारे लिए देवतुल्य और ऋषितुल्य हैं। जिन छात्रों को इंसान के रूप में जीने की अनुमति नहीं थी, उन्हें उन्होंने शिक्षा दी। यमगरवाड़ी परियोजना के माध्यम से आपने हजारों वंचितों के लिए कार्य किया है। इसलिए पद्मश्री पुरस्कार भी आपके कारण बड़ा हो गया है।”

घुमंतू-विमुक्तों के काम से संघ को समझा गया

मुझ जैसे मध्यमवर्गीय घर में जन्मे कार्यकर्ता को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कारण घुमंतू-विमुक्तों की सेवा करने का अवसर मिला। इसमें दामुआण्णा दाते, मुकुंदराव पणशीकर, नाना नवले, रमेश पतंगे जैसे लोगों का अमूल्य साथ मिला। वास्तव में, घुमंतू समुदायों के काम के कारण ही मुझे संघ समझ में आया। यह मेरा कर्तृत्व नहीं, बल्कि संघ का है। पारधी समुदाय सहित अन्य घुमंतू जातियों का भी उत्थान हो रहा है। उन्हें मुख्यधारा में लाने के लिए अभी दो से तीन पीढ़ियों तक कार्य करना होगा। – गिरीश प्रभुणे