नई दिल्ली. सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को वाराणसी न्यायालय के 31 जनवरी के आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें हिन्दू पक्षकारों को ज्ञानवापी परिसर के दक्षिणी तहखाने में पूजा की अनुमति दी गई थी.
न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने पक्षों को ज्ञानवापी परिसर में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया ताकि दोनों समुदाय धार्मिक प्रार्थना कर सकें.
शीर्ष न्यायालय ने कहा, ”इस न्यायालय की पूर्व मंजूरी और अनुमति प्राप्त किए बिना किसी भी पक्ष द्वारा यथास्थिति को भंग नहीं किया जाएगा”. हिन्दू दक्षिण से प्रवेश करेंगे और तहखाने में प्रार्थना करेंगे और मुसलमान उत्तर की ओर प्रार्थना करेंगे क्योंकि वे वहां से प्रवेश करेंगे. यह व्यवस्था तब तक जारी रहेगी, जब तक कि मामले का अंतिम फैसला नहीं हो जाता.
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि ‘इस स्तर पर, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि जिला न्यायालय और उच्च न्यायालय के आदेशों के बाद मुस्लिम समुदायों द्वारा नमाज अदा की जा रही है और तहखाना में प्रार्थना हिन्दू पुजारियों तक ही सीमित है, यथास्थिति बनाए रखना महत्वपूर्ण है, ताकि दोनों समुदाय उपरोक्त शर्तों में धार्मिक पूजा कर सकें’.
न्यायालय ने मुस्लिम पक्षकारों की अपील पर हिन्दू पक्षकारों को भी नोटिस जारी किया और मामले को जुलाई में विचार के लिए सूचीबद्ध किया.
यह भी आदेश दिया कि हिन्दू पक्ष केवल दीवानी अदालत के 31 जनवरी के आदेश के अनुसार पूजा करना जारी रखेंगे. न्यायालय ने कहा, ”हिन्दुओं का धार्मिक अनुष्ठान 31 जनवरी, 2024 के आदेश के अनुसार होगा”.
तहखाने में पूजा पर रोक लगाने से इनकार करते हुए, न्यायालय ने तर्क दिया कि तहखाने तक पहुंच जहां पूजा आयोजित की जाती है और वह क्षेत्र जहां मुस्लिम प्रार्थना करते हैं, वह अलग है. मुस्लिम बिना किसी बाधा के नमाज अदा कर रहे थे और पूजा तहखाने के क्षेत्र तक ही सीमित थी.
सर्वोच्च न्यायालय की पीठ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ मुस्लिम पक्षकारों द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 31 जनवरी के वाराणसी न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था, जिसके द्वारा हिन्दू पक्षकारों को ज्ञानवापी परिसर के दक्षिणी तहखाने/तहखाने में प्रार्थना और पूजा करने की अनुमति दी गई थी.
उच्च न्यायालय ने कहा था कि इस बात के ठोस प्रथम दृष्टया सबूत हैं कि 1551 से स्थल पर हिन्दू प्रार्थना की जा रही थी, जब तक कि उन्हें 1993 में रोक नहीं दिया गया था.