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प्रकृति के साथ शाश्वत जीवन का मार्ग भारत के पास है – डॉ. मोहन भागवत जी

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लोनावला

लोनावला स्थित स्वामी कुवल्यानंद द्वारा स्थापित कैवल्यधाम योग अनुसंधान संस्था के 101वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि भौतिक प्रगति के नाम पर मानव ने प्रकृति को भारी नुकसान पहुंचाया है। सतत विकास के लिए मानव के साथ-साथ प्रकृति के उत्थान का मार्ग आवश्यक है। सृष्टि के पोषण का यह विचार योग शास्त्र में है। प्रकृति के साथ शाश्वत जीवन का मार्ग भारत के पास है और हमें इसे विश्व कल्याण के लिए प्रशस्त करना होगा। इस अवसर पर संन्यास आश्रम के प्रमुख महामंडलेश्वर स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरी जी, पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं शताब्दी वर्ष समिति के अध्यक्ष सुरेश प्रभु, मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुबोध तिवारी आदि उपस्थित थे। सरसंघचालक जी ने कहा कि योग केवल व्यायाम का प्रकार नहीं है, बल्कि सभी को जोड़ने का एक माध्यम है। योगाभ्यास से शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का संतुलन प्राप्त होता है। योग विज्ञान के माध्यम से व्यक्ति निर्माण कर पृथ्वी पर शांति और सुख के एक नए युग की शुरुआत करने के लिए कैवल्यधाम कार्यरत है।” उन्होंने कहा कि योगव्यक्ति, परिवार, समाज और विश्व का कल्याण कर सकता है। विविधता परिवर्तनशील होती है। एकता शाश्वत होती है। भारत का उत्थान, समृद्धि विश्व के कल्याण के लिए है। विश्व कल्याण के लिए भारत का प्राचीन ज्ञान आवश्यक है।

विज्ञान और अध्यात्म परस्पर विरोधी नहीं

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि ज्ञान और अध्यात्म में विरोध का कोई कारण नहीं है क्योंकि जिस प्रकार विज्ञान प्रयोगों से सिद्ध होता है, उसी प्रकार अध्यात्म अनुभव से सिद्ध होता है। आगे का वैज्ञानिक अनुसंधान केवल आंतरिक प्रेरणा या आंतरिक विज्ञान से ही संभव है। विज्ञान की प्रगति सूक्ष्मतम कणों के ज्ञान तक पहुंच गई है। हालांकि, उससे आगे भी एक सूक्ष्म कण है। दूसरी ओर, अंतरिक्ष में दिखाई देने वाला विशाल ब्रह्मांड एक प्रकार का अतीत ही है। इसलिए, आधुनिक विज्ञान भी नए निष्कर्षों पर पहुंच रहा है।” इस अवसर पर स्वामी विश्वेश्वरानंद ने कहा, “स्वामी कुवल्यानंद ने योग विज्ञान को आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर कसने और संरक्षित करने का महान कार्य किया है। उनकी दूरदर्शिता से ही कैवल्यधाम जैसी संस्था का निर्माण हुआ, जिसने अपने प्राचीन ज्ञान और परंपरा को बीज रूप में संरक्षित रखा है। अपनी शताब्दी मनाने वाला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और कैवल्यधाम दोनों ही राष्ट्र सेवा का कार्य कर रहे हैं।” सुरेश प्रभु ने कहा कि कैवल्यधाम योगशास्त्र में शुद्धता का प्रतीक है। कैवल्यधाम व्यक्ति को समाज का एक उपयुक्त घटक बनाने का कार्य कर रहा है। वहीं, समर्थ और सक्षम भारत के निर्माण हेतु एक संगठित समाज के निर्माण हेतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कार्य कर रहा है। शताब्दी वर्ष में संघ द्वारा निर्धारित पंच परिवर्तन के विषयों में समाज ने अपनी सहभागिता निभाई है और इससे एक बड़ा सामाजिक परिवर्तन होगा। सुबोध तिवारी ने कहा कि कैवल्यधाम योगशास्त्र के विज्ञान और परंपरा को समाज तक पहुँचाने का प्रयास कर रहा है। उच्च शिक्षा में योगाभ्यास को शामिल करने के साथ-साथ, कैवल्यधाम में कैंसर के उपचार में योग विज्ञान के उपयोग पर भी शोधकार्य जारी है।” कार्यक्रम में डॉ. शरदचंद्र भालेकर द्वारा लिखित योग पोलिसऔर डॉ. ऋतु प्रसाद द्वारा लिखित सात्विक आहारपुस्तकों का विमोचन किया गया। कार्यक्रम का सूत्र संचालन शनाया वात्स्यायन ने किया। सरसंघचालक ने प्रातःकालीन सत्र में कैवल्यधाम स्थित प्रयोगशालाओं और संस्थानों का अवलोकन किया।