असम में 15 अगस्त 1950 में भीषण भूकंप के प्रकोप से अनगिनत मकान धराशायी हो गए तथा करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हो गई। ब्रह्मपुत्र नदी ने अपना मार्ग ही परिवर्तित कर लिया तथा धरती में 12-12 फुट चौड़ी दरारें पड़ गई। नदी पर बने पुल टूट गए तथा सर्वत्र त्राहि-त्राहि मच गई। स्वयंसेवकों ने स्वयं स्फूर्ति से आगे आकर सहायता तथा सेवा कार्य प्रारम्भ किया। श्री गुरुजी ने पत्र भेजकर स्वयंसेवकों को अपनी सम्पूर्ण शक्ति जुटाकर पीड़ितों की सेवा करने की प्रेरणा दी। सितम्बर मास के अन्त में श्रीगुरुजी स्वयं असम गए। समस्त असमवासियों को उन्होंने यह संदेश दिया कि संगठित और अनुशासित होने से हम इस प्रकार के संकटों का भी सफलतापूर्वक सामना कर सकेंगे। उन्होंने कहा, “भूकम्प से जीवन और सम्पत्ति की भयंकर क्षति हुई है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं ने सहायता कार्य आरम्भ किया है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि सर्वप्रथम संगठित रूप से सहायता करने वाली रा.स्व.संघ की असम शाखा थी। उसके द्वारा प्रारम्भ की गई ‘असम पीड़ित सहायता समिति' भूकम्प पीड़ित और बाढ़ पीड़ितों को अच्छी तरह सहायता पहुँचा रही है। समस्या की विशालता को देखते हुए जो कुछ कुछ हो रहा या हुआ है, अत्यन्त अल्प है। यह स्थानीय नहीं अपितु एक राष्ट्रीय विपत्ति है। जो कुछ भी हुआ है या हो ऐसी आपदाएं ही राष्ट्रीय एकता तथा लोगों के सेवा भाव की कसौटी होती हैं। मैं भारतवासियों से अभ्यर्चना करता हूँ कि वे चल रहे सहायता कार्य के निमित्त उदारता पूर्वक जन-वस्त्र आदि देकर असम की सहायता करें। सरकार ने भी पीड़ितों की सहायता करना शुरु किया है। मैं आशा करता हूँ कि सेना की सक्षम सेवाओं को प्रत्यक्ष कार्य में लगाते हुए सरकार शीघ्रता से और भी अधिक प्रभावी कदम उठाएगी।"
।। श्री गुरुजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा, पृष्ठ – 64 ।।