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संघ दर्शन

जयंती विशेष: कश्मीर के भारत विलय में श्री गुरुजी का बड़ा योगदान, जानिए आरएसएस के द्वितीय सरसंघचालक जी के बारे में सबकुछ

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1940 में जब देश को स्वतंत्र करवाने का आंदोलन पूरे यौवन पर था तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बागडोर संभाल कर अपने 33 साल के लम्बे कार्यकाल में लगभग 70 बार पूरे देश का प्रवास कर इसको वट वृक्ष का रूप देने वाले दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवरकर ( श्री गुरुजी ने संघ को दुनिया के पहले गैर सरकारी स्वयंसेवी संगठन का दर्जा दिलाया। उस समय हिन्दू समाज को पुनः शक्ति सम्पन्न करने का कार्य चुनौतियों भरा था। गुरु जी ने विकट परिस्थितियों में संगठन का नेतृत्व संभाल कर स्वयंसेवकों का उचित मार्गदर्शन किया।

इस महान विभूति का जन्म नागपुर में 19 फरवरी 1906 को फाल्गुन मास की एकादशी को पिता सदाशिवराव के घर माँ लक्ष्मी बाई की पवित्र कोख से चौथी संतान के रूप में हुआ, जिससे परिवार में खुशियों की लहर दौड़ गई और इनका नाम माधव रखा गया। परिवार में इन्हें सभी प्यार से मधु कहकर ही बुलाते थे। धार्मिक विचारों वाली मां और अध्यापन का कार्य करने वाले पिता की छाप के कारण इनकी धार्मिक साहित्य और विद्यालय की पुस्तकों में खास रुचि थी। जब वह बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में बीएससी करने आए तब यहां के केंद्रीय ग्रंथालय में लाखों पुस्तकों का भंडार मिला। यहां आकर उनमें ज्ञान और अध्यात्म की भूख काफी बढ गई। रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद, तुलसीदास और कबीर समेत हजारों किताबें पढ़ीं। इसी अध्ययनकाल ने उनके भीतर आध्यात्मिकता, वैचारिक समृद्धता और राष्ट्रवाद की भावना का जागरण हुआ।

बचपन से ही व्यायाम के बहुत शौकीन थे और भरपूर हाकी खेलने के साथ-साथ कभी-कभी टेनिस भी खेलते थे। विद्यार्थी जीवन में ही इन्होंने बांसुरी एवं सितार वादन में अच्छी खासी प्रवीणता हासिल कर ली थी।

अपनी विलक्षण बुद्धि के कारण हर कक्षा में प्रथम रहने वाले माधव एम. एस. सी (MSC) करने के बाद काशी विश्वविद्यालय में अध्यापन का कार्य करने लगे। अपनी विलक्षण प्रतिभा और योग्यता के कारण छात्रों में से अति लोकप्रिय हो गए थे। गुरु की इन्हें कोई उपाधि तो नहीं मिली थी, लेकिन बीएचयू के छात्र इन्हें इसी संबोधन से पुकारते थे जिसके कारण गुरुजी के नाम से प्रसिद्ध हुए। यहीं पर इनकी मुलाकात भैया जी दाणी के माध्यम से संघ के संस्थापक डॉ केशव राव बलिराम हेडगेवार से हुई जो धीरे-धीरे मित्रता में बदल गई। इसी दौरान माता-पिता द्वारा शादी करने का दबाव डालने पर शादी करने से साफ मना कर दिया। अब माधव अपना ज्यादा समय डॉक्टर हेडगेवार के साथ संघ कार्य के लिए प्रवास में बिताने लगे। डॉक्टर हेडगेवार जी ने इनकी योग्यता को देखते हुए धीरे-धीरे संघ कार्य की जिम्मेदारी देनी शुरू की और 1938 में नागपुर संघ शिक्षा वर्ग के सर्वाधिकारी के बाद 1939 में सर कार्यवाह नियुक्त किया।

संघ कार्य और समाज को संगठित करने की दिन रात चिंता के कारण हेडगेवार जी का स्वास्थ्य खराब होने लगा। वह बीमार रहने लगे तो डॉ हेडगेवार जी ने संघ के बाकी पदाधिकारियों से विचार-विमर्श कर गुरु जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया, जिसकी घोषणा हेडगेवार जी की मृत्यु के बाद 3 जुलाई 1940 को नागपुर के रेशिम बाग में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में प्रांत संघचालक बाबा साहिब पाध्या ने किया। सरसंघचालक का कार्यभार संभालते ही गुरु जी ने पूरे देश का भ्रमण शुरू कर घर-घर जाकर आजादी की लड़ाई लड़ रहे कार्यकर्ताओं का मार्गदर्शन किया और आजादी के बाद उजड़ कर आए हिंदुओं के पुनर्वास का प्रबंध करवाया।

केन्द्रीय गृहमंत्री सरदार पटेल ने जम्मू-कश्मीर रियासत के दीवान मेहरचन्द महाजन से भारत के साथ विलीनीकरण (accession) करने के लिए कश्मीर-नरेश श्री हरि सिंह जी को तैयार करने के लिए कहा था। मेहरचन्द महाजन ने श्रीगुरुजी के पास संदेश भिजवाया कि वे कश्मीर-नरेश से मिलकर उन्हें इस विलीनीकरण के लिए तैयार करें। महाजन जी के प्रयास से कश्मीर-नरेश और श्रीगुरुजी की भेंट की तिथि निश्चित हो सकी।

श्रीगुरुजी 17 अक्तूबर, 1947 को विमान से श्रीनगर पहुँचे। 18 अक्टूबर को प्रातः भेंट हुई। भेंट के समय 15-16 वर्षीय युवराज कर्ण सिंह जांघ की हड्डी टूटने से प्लास्टर में बंधे वहीं लेटे हुए थे। मेहरचन्द महाजन भी भेंट के समय उपस्थित थे। कश्मीर-नरेश का कहना था – मेरी रियासत पूरी तरह से पाकिस्तान पर अवलम्बित है। सारे रास्ते सियालकोट तथा रावलपिण्डी की ओर से हैं। रेल सियालकोट की ओर से है। मेरे लिये हवाई अड्डा लाहौर का है। अतः हिन्दुस्थान के साथ मेरा सम्बन्ध किस तरह बन सकता है?

श्रीगुरुजी ने समझाया – आप हिन्दू राजा हैं। पाकिस्तान में विलय करने से आपको और आपकी हिन्दू प्रजा को भीषण संकटों से संघर्ष करना होगा। यह ठीक है कि अभी हिन्दुस्थान से रेल के रास्ते और हवाई मार्ग का कोई सम्पर्क नहीं है, किन्तु इन सबका प्रबन्ध शीघ्र ही हो जायेगा। आपका और जम्मू-कश्मीर रियासत का भला इसी में है कि आप हिन्दुस्थान के साथ विलीनीकरण कर लें। मेहरचन्द महाजन ने कश्मीर नरेश से कहा कि गुरुजी ठीक कह रहे हैं। आपको हिन्दुस्थान के साथ रियासत का विलय करना चाहिए। अन्ततः कश्मीर-नरेश ने श्रीगुरुजी को तूस की शाल भेंट की। इस प्रकार जम्मू-कश्मीर के भारत-विलय में श्रीगुरुजी का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा।

30 जनवरी 1948 को जब महात्मा गांधी की हत्या हुई तो सभी शाखाओं में 13 दिन तक शोक मनाने को कहा। संघ की बढ़ रही शक्ति से परेशान कांग्रेस को महात्मा गांधी की हत्या से बहाना मिल गया और संघ पर झूठा आरोप लगाकर 1 फरवरी 1948 को आधी रात को नागपुर पुलिस ने गाँधी की हत्या का षड्यंत्र रचने के आरोप में इन्हें गिरफ्तार कर लिया और 4 फरवरी को संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 17 महीने के बाद 12 जुलाई 1949 को भारत सरकार को संघ पर से प्रतिबंध हटाकर 13 जुलाई को गुरुजी को रिहा करना पड़ा। बेतुल जेल से रिहा होते ही इन्होंने दोबारा देश का भ्रमण कर स्वयंसेवकों को प्रतिबंध के कड़वे दिनों को भुलाकर नए सिरे से पूरी ताकत के साथ संघ कार्य में जुटने का संदेश दिया तथा इसी के साथ संघ कार्य के लिए अपना परिवार छोड़ने वाले युवा प्रचारकों को संघ के अलावा अन्य सामाजिक कार्यों के लिए नए संगठन के गठन का कार्य सौंपा। उस समय में ही बनाई गई राजनीतिक पार्टी की देश और कई राज्यों में सरकारें चल रही हैं। इसके अतिरिक्त कई राज्यों में संघ के ही स्वयंसेवक राज्यपाल के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

1948 में संघ पर प्रतिबंध लगाने वाली नेहरूजी की सरकार ने 1962 में चीन के साथ युद्ध के समय संघ द्वारा निभाई भूमिका से प्रधानमंत्री नेहरू इतने खुश हुए कि 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में संघ की पूर्ण गणवेश धारी टुकड़ी को बैंड (घोष) सहित भाग लेने के लिए बुलाया गया। 300 स्वयंसेवकों का पूर्ण गणवेश में घोष की ताल पर कदम मिलाकर चलना उस कार्यक्रम का प्रमुख आकर्षण था।

1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई के समय स्वयंसेवकों ने अपनी जान जोखिम में डालकर भी सेना के अग्रिम मोर्चों तथा बंकरों तक हथियार और खाना पहुंचाकर सेना और सरकार का सहयोग किया।

संघ कार्य के लिए कड़ी मेहनत और भ्रमण के कारण गुरुजी को कैंसर जैसे भयानक रोग ने अपनी चपेट में ले लिया और स्वास्थ्य धीरे-धीरे गिरने लगा। मार्च 1973 की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक तक इनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ चुका था और 25 मार्च को दिया इनका बौद्धिक अंतिम बन गया। मई-जून 1973 के संघ शिक्षा वर्ग तक शरीर कमजोर और स्थिति बिगड़ने के कारण वर्ग में आए स्वयंसेवकों ने टोलियां बनाकर गुरु जी के दर्शन किए। 5 जून रात्रि 9:05 पर भारत माता की जय बोलते हुए विश्व के सबसे बड़े गैर सरकारी संगठन के सर्वोच्च नेता ने अपनी देह त्याग कर अपनी जीवन यात्रा को सम्पूर्ण किया।

आज पूरी दुनिया में फैले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक और समर्थक, श्री गुरुजी को उनकी जयंती (19 फरवरी) पर याद कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।