राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने उत्तराखंड के सभी जिला अधिकारियों से पूछा है कि देवभूमि उत्तराखंड में चल रहे मदरसों की मैपिंग अब तक क्यों नहीं हुई? आयोग की ओर से जिला अधिकारियों को जून में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने को कहा गया है.
आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने देहरादून प्रवास के दौरान कहा था कि उत्तराखंड शासन प्रशासन ने मदरसों के विषय में न तो कोई संतोषजनक कारवाई की और न ही उनकी मैपिंग की. मदरसों में हिंदू बच्चे पढ़ रहे हैं, बहुत से मदरसे बिना अनुमति के चल रहे हैं और बहुत से मदरसे सरकारी जमीन पर कब्जा करके बनाए गए और उनकी आड़ में मस्जिदें बना दी गई.
हल्द्वानी में अब्दुल मलिक का बगीचा भी इसका उदाहरण है, जहां कुछ माह पहले हिंसा हुई थी. उत्तराखंड की बेशकीमती सरकारी जमीनों को योजनाबद्ध तरीके से धार्मिक चिन्ह बना कब्जा करने के षड्यंत्र चल रहे हैं. उत्तराखंड में चार सौ से अधिक मान्यता प्राप्त मदरसे हैं और तीन सौ से ज्यादा फर्जी मदरसे चलने की शिकायते हैं. इन मदरसों की जांच करने या मैपिंग करने के आदेश पहले भी हुए, जिस पर जिला प्रशासन, समाज कल्याण विभाग ने कभी गौर नहीं किया
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने नौ नवम्बर को मुख्य सचिव को पत्र लिखकर दिल्ली आयोग कार्यालय में बुलाया था और उनसे हरिद्वार जिले में मदरसे में हिन्दू बच्चों को पढ़ाए जाने पर सवाल पूछा था.
मुख्य सचिव के प्रतिनिधि के तौर पर मदरसा बोर्ड के उप रजिस्ट्रार उपस्थित हुए थे, जिनके जवाब से आयोग संतुष्ट नहीं हुआ. आयोग के अध्यक्ष ने 13 मई को देहरादून आकर कुछ मदरसों का औचक निरीक्षण किया था और वहां खामियां पाई थी. 13 मई को देहरादून आए बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष ने विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक भी की थी. आयोग अध्यक्ष नाराज थे कि बार-बार निर्देशित किए जाने के बावजूद उत्तराखंड के जिलों में मदरसों की मैपिंग नहीं हुई, जबकि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में ये काम पूरा हो चुका है. बहरहाल गढ़वाल मंडल के जिला अधिकारियों को 7 जून को और कुमाउं मंडल के सभी जिला अधिकारियों को 10 जून को दिल्ली आयोग कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से पेश होने को कहा गया है.