नई दिल्ली. एक राष्ट्र, एक चुनाव को लेकर केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में उच्च स्तरीय समित का गठन किया था. समिति ने देशभर में चर्चा के पश्चात अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी थी. समिति की सिफारिशों को 18 सितंबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्वीकार कर लिया.
भारत के चार पूर्व मुख्य न्यायाधीशों (सीजेआई) ने उच्च स्तरीय समिति से चर्चा कर एक साथ चुनाव समर्थन किया है. पूर्व मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, रंजन गोगोई, शरद अरविंद बोबडे और यूयू ललित ने व्यक्तिगत परामर्श में भाग लिया और लिखित जवाब प्रस्तुत किए, सभी ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन किया.
उच्च स्तरीय समिति ने शुरुआती कदम के तौर पर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं एक साथ चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा है, अगले चरण में आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर नगरपालिका और पंचायत चुनाव कराए जाएंगे.
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, 28 फरवरी को लिखे पत्र में पूर्व सीजेआई दीपक मिश्रा ने जोर दिया कि एक साथ चुनाव कराने के ‘मूल ढांचे के खिलाफ’, ‘संघवाद’ या ‘लोकतंत्र विरोधी’ होने के दावे निराधार हैं.
योजना का समर्थन करते हुए पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई ने लागत दक्षता, प्रशासनिक सरलीकरण, मतदाताओं की बढ़ी हुई भागीदारी और धन और बाहुबल के कम प्रभाव सहित कई लाभों पर प्रकाश डाला है. उन्होंने संवैधानिक संशोधनों की आवश्यकता का भी प्रस्ताव रखा और सर्वसम्मति बनाने, उपयुक्त विधायी ढांचे के निर्माण और मतदाता जागरूकता अभियानों को बढ़ाने जैसी कार्यान्वयन रणनीतियों का सुझाव दिया.
पूर्व सीजेआई एसए बोबडे ने इस साल फरवरी में समिति के अध्यक्ष रामनाथ कोविंद से मुलाकात की और अपने विचार व्यक्त किए कि एक साथ चुनाव कराने से बुनियादी ढांचे, संघवाद या लोकतांत्रिक सिद्धांतों का उल्लंघन होने की चिंताएं गलत हैं.
सीजेआई यूयू ललित ने भी चुनावी प्रक्रिया में सुधार, लोकतांत्रिक सिद्धांतों को बनाए रखने और सार्वजनिक व्यय को कम करने के लिए एक साथ चुनाव कराने की क्षमता पर प्रकाश डाला है. उन्होंने बताया कि बार-बार चुनाव कराने से आदर्श आचार संहिता के बार-बार लागू होने के कारण निर्णय लेने और विकास में बाधा आती है.
सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता से भी परामर्श किया गया, उन्होंने एक साथ चुनाव कराने की अवधारणा और पहल का समर्थन किया है.
रिपोर्ट के अनुसार, उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों से परामर्श किया गया, उनमें से नौ ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया, जबकि तीन ने चिंताएं और आपत्तियां व्यक्त कीं.
एक साथ चुनाव कराने पर आपत्ति जताने वालों में दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एपी शाह, कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति गिरीश चंद्र गुप्ता और मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी शामिल हैं.
एक साथ चुनाव का समर्थन करने वाले उच्च न्यायालयों के पूर्व मुख्य न्यायाधीश हैं…..
दिल्ली उच्च न्यायालय की पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोरला रोहिणी
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश दिलीप बाबासाहेब भोसले
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन
राजस्थान और बॉम्बे उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंदराजोग
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजय यादव
कलकत्ता उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश प्रकाश श्रीवास्तव
मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश एमएन भंडारी
बॉम्बे उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आरडी धानुका
2019 में, भारत के विधि आयोग ने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव का समर्थन किया था.
उल्लेखनीय है कि 2024 के आम चुनाव के अपने घोषणापत्र में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सत्ता में आने पर एक राष्ट्र एक चुनाव लागू करने का वादा किया था. इस साल जनवरी में, केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा था कि एक साथ चुनाव लागू किए जाने के बारे में केंद्र सरकार के नोटिस पर 81 प्रतिशत उत्तरदाता विचार के पक्ष में थे.