राष्ट्रीय अस्मिता को पुष्ट करने वाला कार्य ही राष्ट्रीय - श्री गुरुजी
राष्ट्रीय एकात्मता का विचार इसी शुद्ध भूमिका में से होना चाहिये। इस वास्तविक राष्ट्रधारा से, उसकी परंपरा-आशा-आकांक्षाओं से एकरसता का निर्माण ही एकात्मता (इन्टेग्रेशन) है। इस राष्ट्रीय अस्मिता को पुष्ट एवम् सबल करने वाले कार्य ही राष्ट्रीय हैं। इस अस्मिता से अपने को पृथक् मान कर इस राष्ट्र की आशा-आकांक्षाओं के विपरीत, उनके विरुद्ध आकांक्षाओं को धारण कर अपने पृथक अधिकारों की मांग करने वाले समूह सांप्रदायिक (कम्युनल) कहे जाने चाहियें। अपने विभक्त अधिकारादि की पूर्ति हेतु राष्ट्र पर आघात करने वाले-ये आघात धर्मान्तरण के रूप में, श्रद्धास्थानों को ध्वस्त या अपमानित करने के रूप में, महापुरुषों को अवगणित करने के रूप में या अन्य किसी रीति से हों राष्ट्र विरोधी माने जाने चाहियें।
।। श्री गुरूजी व्यक्तित्व एवं कृतित्व, डॉ. कृष्ण कुमार बवेजा, पृष्ठ 152-53 11




