पत्रकारिता में समरसता के पुरोधा
समरसता का अर्थ है सभी को अपने समान समझना। सृष्टि में सभी मनुष्य एक ही ईश्वर की संतान हैं और उनमें एक ही चौतन्य विद्यमान है। समाज में शांति, सौहार्द और समरसता की भावना विकसित करने में पत्रकारिता बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। सामाजिक तनाव, संघर्ष, मतभेद और युद्ध के समय में संयमित तरीके से कार्य करने में पत्रकारिता का बहुत बड़ा योगदान रहता है। राष्ट्र के प्रति समर्पण एवं एकता की भावना को उभारने में भी पत्रकारिता की अहम भूमिका होती है। यही कारण है कि पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है और पत्रकारों को लोकतंत्र का प्रहरी। यह लेख कुछ ऐसे महान पत्रकारों को समर्पित है, जिनमें राष्ट्र प्रेम, समाज सेवा व सामाजिक समरसता के गुण कूट-कूट कर भरे थे।
गणेश शंकर विद्यार्थी : गणेश शंकर विद्यार्थी जिन्हें सभी पत्रकारिता का आदर्श मानते हैं। एक भारतीय पत्रकार, भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के नेता और स्वतंत्रता आंदोलन के कार्यकर्ता थे। वह समाज में शोषितों वंचितों व पीड़ितों की बुलंद आवाज थे। वह असहयोग आंदोलन और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, जिनका समाज में सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने में अतुलनीय योगदान है। पत्रकारिता में वे ज्यादातर हिंदी भाषा के समाचार पत्र, प्रताप के संस्थापक-संपादक के रूप में जाने जाते हैं। अंग्रेज अधिकारियों एवं देशी नरेशों की निरंकुशता, शोषण एवं दमनकारी नीतियों के विरुद्ध उनकी लेखनी ने अद्वितीय जनजागरण का कार्य किया था। 26 अक्टूबर, 1890 को प्रयागराज (इलाहाबाद) के अतरसुइया मोहल्ले में जन्में विद्यार्थी का आरंभिक जीवन शिक्षा व धर्म ज्ञान के बीच शुरू हुआ। प्रयागराज प्रवास के दौरान ‘कर्मयोगी’ के संपादक पं. सुंदरलाल पत्रकारिता के क्षेत्र में उनके प्रारंभिक गुरु बने। ‘स्वराज्य’ में भी विद्यार्थी जी की टिप्पणियां प्रकाशित होती थीं, जो उन दिनों क्रांतिकारी विचारों का संवाहक था। उन्हीं दिनों ‘सरस्वती’ के यशस्वी संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी को एक युवा और उत्साही सहयोगी की आवश्यकता थी, अतः 2 नवंबर, 1911 को वे उसके सहायक संपादक नियुक्त हुए। यह विशुद्ध साहित्यिक पत्रिका थी, जबकि विद्यार्थीजी पत्रकारिता के माध्यम से स्वातंत्र्य समर में भी योगदान करना चाहते थे। अतः दिसंबर 1912 में वे पं. मदनमोहन मालवीय के पत्र ‘अभ्युदय’ से जुड़ गए। यहां भी उनका मन नहीं लगा। तब उन्होंने कानपुर से हिंदी साप्ताहिक ‘प्रताप’ का प्रकाशन (9 नवंबर, 1913) प्रारंभ किया। ‘प्रताप’ को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, बावजूद इसके वह विचलित नहीं हुए। प्रताप ऐसा पत्र था, जिसमें समाज के हर वर्ग के दुःख और उनकी तकलीफों को वाणी मिलती थी। यहां पर यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि चंपारण में नील की खेती करने को विवश पीड़ित, प्रताड़ित किसानों के प्रतिनिधि राजकुमार शुक्ल की भेंट गांधीजी से विद्यार्थी ने ही कराई थी। ‘प्रताप’ के अनेक विशेषांक भी आजादी की लड़ाई के संवाहक बने, जिसमें ‘राष्ट्रीय अंक’ और ‘स्वराज्य अंक’ विशेष चर्चित रहे। ‘प्रताप’ का कार्यालय राष्ट्रवादियों और क्रांतिकारियों के साथ साहित्यकारों का भी केंद्र था। रामप्रसाद ‘बिस्मिल’, अशफाक उल्ला खान, ठाकुर रोशन सिंह, चंद्रशेखर आजाद, बटुकेश्वर दत्त, शिव वर्मा तथा छैलबिहारी दीक्षित ‘कंटक’ आदि का उन्होंने समय- समय पर सहयोग और मार्गदर्शन किया। सरदार भगत सिंह अपनी फरारी के दिनों में भेष बदलकर ‘प्रताप’ कार्यालय में रहे तथा बलवंत सिंह छद्म नाम से उन्होंने वहां कार्य किया एवं लेख लिखे। राष्ट्र सेवा सामाजिक समस्या में राष्ट्रवादी रचनाओं से जन जागरण कर मां भारती का मस्तक ऊंचा करने वाली आवाज 25 मार्च 1931 को सदा सदा के लिए मौन हो गयी।
बालेश्वर अग्रवाल : सामाजिक समरसता के पुरोधा बालेश्वर अग्रवाल का व्यक्तित्व अपने आप में एक मिसाल है। बालेश्वर अग्रवाल जितने अच्छे पत्रकार थे, उतने ही बेहतरीन इंसान भी थे। व्यक्तित्व के जितने अच्छे पारखी थे, उतने ही बड़े कद्रदान भी थे। बालेश्वर अग्रवाल पत्रकारिता जगत का वह सुपरिचित नाम हैं, जिन्हें पत्रकारों की नई पौध विकसित करने में महारथ हासिल थी। हिंदी पत्रकारिता का अगर उन्हें पुरोधा कहा जाए तो कदाचित गलत नहीं होगा। उनका जन्म 17 जुलाई 1921 को उड़ीसा के बालासोर में हुआ था। बालेश्वर अग्रवाल हिन्दुस्थान समाचार (बहुभाषी न्यूज एजेंसी) के 1956 से 1982 तक प्रधान संपादक व महाप्रबंधक रहे। इस दौरान उन्होंने विश्व भर में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए ऐतिहासिक काम किया। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय ने डी.लिट की उपाधि से सम्मानित किया था। वसुधैव कुटुंबकम् की भावना को उन्होंने अपने जीवन और व्यवहार में प्रत्यक्ष किया था। बाल्यकाल में संघ से जुड़े और जीवन भर संघ के प्रचारक रहे बालेश्वर अग्रवाल कहा करते थे कि जीवन मूल्य किताबों और दीवारों पर लिखने के लिए नहीं होते बल्कि व्यवहार में प्रकट होने चाहिए। उन्होंने अपने जीवनकाल में विश्वभर में भारतीय समुदायों को जोड़ने की पहल कर बड़ा सपना देखा और बीजारोपण किया। राजनीतिक पूर्वाग्रहों के चलते जब इंदिरा गांधी ने हिन्दुस्थान समाचार को कुचल डालने का षड्यंत्र रचा तो उनका मन खिन्न हो गया। इसके बाद जो दूसरा कार्य उन्होंने शुरू किया, वह आज भी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर याद किया जा रहा है। मॉरीशस को तो उनका दूसरा घर ही कहा जाता था। विदेशों से आने वाले प्रवासी भारतीयों की सुविधा के लिए नई दिल्ली में प्रवासी भवन का निर्माण कर उन्होंने उल्लेखनीय कार्य किया। भारत सरकार द्वारा 9 जनवरी को मनाये जाने वाले प्रवासी दिवस की सर्वप्रथम कल्पना भी उन्हीं के दिमाग की उपज थी। अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद की स्थापना कर प्रतिवर्ष वे एक ऐसे भारतवंशी को सम्मानित करते थे जो विदेश की सरजमीं पर रहते हुए भी भारतीय मूल के लोगों और भारत के मध्य सेतु की भूमिका निभाता हो। वर्ष 2013 में भले ही वह हमें दैहिक रूप से छोड़कर चले गए, लेकिन उनके विचार युगों-युगों तक हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
अटल बिहारी वाजपेयी : भारतीय राजनीति के अजातशत्रु, कालजयी कवि, युगपुरुष और भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी दूसरा ऐसा नाम है जिन्होंने पत्रकारिता को नये आयाम दिए। उन्हें केवल भारत के प्रधानमंत्री के रूप में ही नहीं बल्कि पत्रकारिता में सुचिता बनाये रखने, राष्ट्रवादी कविताएं लिखने व सामाजिक समरसता के अग्रदूत के रूप में ज्यादा याद किया जाता है। 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जन्मे कालजयी अटल का जन्मदिन हर साल सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है। वे राष्ट्र के प्रधानमंत्री के साथ-साथ हिन्दी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक थे, और उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य (पत्र) और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। वह एक उत्कृष्ट राजनेता होने के साथ-साथ एक महान व्यक्ति भी थे जिनकी झलक उनकी पत्रकारिता व राष्ट्रवादी कविताओं में मिलती है। उनके लेखों व भाषणों में भावनाओं की अभिव्यक्ति व गहराई प्रतिबिंबित होती है। उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताएं आज भी पत्थरों में प्राण फूंक देती है। अटल जी का विश्वास था कि सामाजिक समरसता चाहे देश में हो या फिर परिवार में हो दोनों के लिए आवश्यक है उन्हीं के शब्दों में ‘सामाजिक समता भी चाहिए और सामाजिक समरसता भी चाहिए’। 16 अगस्त 2018 को भारत ने एक ऐसे महान सपूत को खो दिया जिसने समाज सेवा व राष्ट्र कल्याण के हित में अपना अमूल्य योगदान दिया।इस तरह आज भी न केवल आम जीवन में बल्कि मीडिया के क्षेत्र में हमें समरसता के पुरोधा बालेश्वर अग्रवाल व सुचिता की राजनीति करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी और पत्रकारिता के आदर्श माने जाने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे महान पत्रकारों की आवश्यकता है जिससे भारत में सामाजिक समरसता को बढ़ावा मिले।
लेखिका किसान पी.जी. कॉलेज सिम्भावली (हापुड़) में एसोसिएट प्रोफेसर (अंग्रेजी विभाग) है।




