ऑपरेशन सिंदूर – शस्त्र और शास्त्र, दोनों धरातलों पर ध्वस्त पाकिस्तान
लेखक- राकेश सैन
‘बाजीराव मस्तानी’ फिल्म में सभी ने देखा कि पेशवाई के लिए साक्षात्कार के समय बाजीराव ने अपने तीर से मोरपंख का आकार कम कर ‘शस्त्र और शास्त्र’ के ज्ञान में अपनी पारंगता का प्रमाण दिया। उनका संदेश था कि मोर का पंख मुगल साम्राज्य है, इसकी जड़ पर प्रहार करो व अपने आप नष्ट हो जाएगा। अभी पाकिस्तान के साथ हुए टकराव के समय भी भारत ने ‘शस्त्र और शास्त्र’ दोनों धरातलों पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की। शस्त्र के धरातल पर तो सभी जानते हैं कि कैसे भारत ने पाकिस्तान में स्थित आतंकी अड्डों को ध्वस्त किया, वहां की वायु रक्षा कवच को तहस नहस करते हुए अपनी अचूक नभ सुरक्षा व्यवस्था का परिचय दिया। लेकिन, इसके साथ-साथ हमने पाकिस्तानी सेना अध्यक्ष जनरल मुनीर द्वारा अलापे गए धर्म के नाम पर दो राष्ट्र के सिद्धांत को भी धाराशाही कर दिया।
सन् 1817 में पैदा हुए सर सैयद अहमद खान ने अंग्रेज सरकार के सामने यह सिद्धांत दिया था कि मुसलमान एक अलग राष्ट्र है। उनका यही विचार आगे चल कर दो राष्ट्र सिद्धांत बना, जिससे 1947 में धर्म के नाम पर भारत का विभाजन हुआ। कट्टरपंथ, जनूनी हिंसा और नेतृत्व की कमजोरी के चलते चाहे भारत ने धर्म के नाम पर हुए इस बंटवारा स्वीकार कर लिया, परन्तु वैचारिक धरातल पर यह कभी नहीं माना कि पूजा पद्धति अलग होने से किसी की राष्ट्रीयता अलग हो जाती है।
भारत की युगों से अवधारणा रही है ‘एकम् सद् विप्रा बहुधा वदन्ति’ अर्थात ईश्वर एक है, पर विद्वान उसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। इसी विश्वास के कारण हम 1947 में हुए विभाजन को अप्राकृतिक व ईश्वर की इच्छा के विपरीत मानते हुए पुन: अखण्ड भारत की बात करते हैं।
लेकिन, 17 अप्रैल 2025 को पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल सैयद असीम मुनीर ने सैयद अहमद खान के उस विषाक्त द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को एक बार फिर दोहराया। कहा कि ‘इसके पीछे मूल विचार यह है कि मुस्लिम और हिन्दू दो अलग-अलग राष्ट्र हैं।’ मुनीर ने ऐबटाबाद के काकुल में पाक सैन्य अकादमी में पासिंग आउट परेड को सम्बोधित करते हुए कहा, ‘द्वि-राष्ट्र सिद्धांत इस मौलिक विश्वास पर आधारित है कि मुसलमान और हिन्दू एक नहीं, बल्कि दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। मुसलमान जीवन के सभी पहलुओं जैसे धर्म, रीति-रिवाज, परम्परा, सोच और आकांक्षाओं में हिन्दुओं से अलग हैं।’
जनरल मुनीर सम्बोधित चाहे पाकिस्तानी रंगरूटों को कर रहे थे, परन्तु उनकी चिट्ठी का पता भारतीय मुसलमान थे। याद करें कि यह लगभग वही समय था, जब भारत में कुछ छद्म धर्मनिरपेक्ष दलों की तुष्टिकरण की नीति के चलते वक्फ बोर्ड अधिनियम में संसद द्वारा किए संशोधन के कारण यहां मुस्लिम भावनाएं भडक़ी हुई थीं। इस दौरान बंगाल में साम्प्रदायिक दंगे भी हुए, जिसमें कई निर्दोष हिन्दुओं ने जान गंवाई और अपमान भी झेले। जनरल मुनीर ने ऐसे संवेदनशील मौके पर आंच में भूसा झोंकने का काम करते हुए भारत के मुसलमानों में फिर से द्वि-राष्ट्र सिद्धांत स्थापित करने का कुत्सित प्रयास किया। यह वैचारिक विमर्श स्थापित करने का प्रयास किया कि हिन्दुओं के चलते भारत के मुसलमान चैन से नहीं रह सकते। साम्प्रदायिक हिंसा भडक़ाने के लिए उसने 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगांव पर आतंकी हमला करवाया, जिसमें हिन्दुओं को छांट-छांट, उनका खतना जांच कर मौत के घाट उतारा गया।
कहने का भाव कि पाकिस्तान ने आतंकी हमले के रूप में ‘शस्त्र’ और द्विराष्ट्र सिद्धांत के रूप में ‘शास्त्र’ दोनों धरातल पर हमले किये। लेकिन भारत ने ‘शठे शाठ्यम समाचरेत’ अर्थात जैसे को तैसा नीति पर चलते हुए दोनों हमलों की धार को पूरी तरह कुन्द कर दिया। भारत ने दुश्मन पर शस्त्र से आघात तो किया ही साथ में ऑपरेशन सिंदूर की जानकारी देने के लिए जिन दो महिला सैन्य अधिकारियों विंग कमाण्डर व्योमिका सिंह व कर्नल सोफिया कुरैशी को जिम्मेवारी सौंपी गई वो भारतीय सांस्कृतिक एकता की परिचायक बनीं। केवल इतना ही नहीं, ऑपरेशन सिंदूर की सफलता का दुनिया को संदेश देने के लिए जिन प्रतिनिधिमण्डलों का चयन किया गया है, उसमें बहुदलीय व बहु-उपासना पद्धति से जुड़े नेता शामिल किए गए हैं। ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तान के सामने पूरा देश एक साथ मुट्ठी तान कर खड़ा हो गया।
वैसे जनरल मुनीर की द्वि-राष्ट्र के विषाक्त सिद्धांत वाली वैचारिक जुगाली उस समय स्वत: ही खारिज हो जाती है, जब मुसलमान होते हुए भी तालिबान पाकिस्तान को अपना दुश्मन घोषित कर देता है और बलोचिस्तान मुक्ति सेना हमधर्मी पाक सेना के खून से होली खेलती है। मुसलमान मजहब के नाम पर एक राष्ट्र होते तो पाकिस्तान से बंगलादेश अलग क्यों होता? इरान-इराक में युद्ध क्यों होते? 51 देशों में विभक्त इस्लामिक जगत अभी तक धर्म के नाम पर एक राष्ट्र क्यों नहीं बन पाया? इसी द्वि-राष्ट्र के सिद्धांत के ताबूत पर अब भारत के ऑपरेशन सिन्दूर ने एक और मजबूत कील ठोक दी है।
भारतीय समाज की एकता समझाने के लिए पाकिस्तानी जनरल मुनीर को एक कथा सुनाना चाहूंगा। गंधर्वों द्वारा दुर्योधन को बंदी बनाए जाने पर अपनी पारिवारिक कटुता भुला कर युधिष्ठिर ने भीम को आदेश दिया कि वह जाए और युवराज दुर्योधन को गंधर्वों से मुक्त करवाए। भीम द्वारा प्रश्न किए जाने पर युधिष्ठिर कहते हैं कि हमारे परिवार में चाहे सौ मतभेद हों, परन्तु दुनिया के लिए हम भरतवंशी ‘सौ और पांच’ नहीं ‘एक सौ पांच’ हैं। इसी तरह लोकतांत्रिक व्यवस्था के चलते भारतीयों में सौ मतभेद हो सकते हैं, परन्तु दुश्मन के लिए हम भी वही हैं ‘वयं पंचाधिकम् शतम्’।