• अनुवाद करें: |
मुख्य समाचार

हमारी ज्ञान परम्परा समृद्ध रही है – बाल मुकुंद पांडे

  • Share:

  • facebook
  • twitter
  • whatsapp

 राजस्थान विश्वविद्यालय के मानविकी सभागार में ‘ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना और ग्राम्य आधारित अर्थव्यवस्था’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय परिचर्चा (08 अगस्त) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र प्रचारक निम्बाराम ने कहा कि हमें अपने गांवों को सुदृढ़ बनाना है और गांवों से युवाओं का पलायन रोकना है, तो परम्परागत व्यवसायों की ओर लौटना होगा. कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता. उन्होंने कहा, कि हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है. यदि कृषि उत्पादों में जो जहां पैदा होता है, उसके प्रसंस्करण के लिए वहीं यूनिट लगे, परम्परागत ग्राम्य व्यवसायों को बढ़ावा मिले, तो पलायन रुक सकता है. हाथ से काम करने वाला कभी बेरोजगार नहीं रहता. आज आईटीआई और पॉलिटेक्निक किया कोई युवा खाली नहीं बैठा, सबके पास काम है, लेकिन इंजीनियरिंग किए अनेक युवा काम ढूंढ रहे हैं.

मुख्य वक्ता बाल मुकुंद पांडे (संगठन सचिव, अ.भा. इतिहास संकलन योजना, दिल्ली) ने वेदों का उल्लेख करते हुए कहा, हमारी ज्ञान परम्परा समृद्ध रही है. ऋग्वेद का उप-वेद आयुर्वेद है, जो ज्ञान का खजाना है. स्वर, ताल, लय, छंद का ज्ञान सामवेद में है, अथर्ववेद में रसायन, संगणक विज्ञान, भूगर्भ विज्ञान का ज्ञान है. खेत कब जोतें, बीज कब लगाएं, हल का फलक कितना बड़ा हो, हमारे पूर्वज इन बारीकियों की भी जानकारी रखते थे. हमारी अर्थव्यवस्था पहले ग्राम आधारित थी. गांवों का अपना अर्थतंत्र था. गांव समृद्ध होते थे, तो शहर समृद्ध होते थे. हमारे 16 संस्कारों में 27 जातियों के लोगों का समावेश होता था. लोग एक दूसरे से सीखते थे. उन्होंने कहा आज सोने का गहना बनाना किसी पॉलिटेक्निक में नहीं सिखाया जाता, लेकिन कारीगरों की कमी नहीं है. यह परम्परागत ज्ञान है.

कार्यक्रम अध्यक्ष राजस्थान विश्वविद्यालय की कुलपति अल्पना कटेजा ने कहा, हमें अंग्रेजों से स्वतंत्रता तो मिल गई, लेकिन अभी अंग्रेजी मानसिकता से स्वतंत्र होना बाकी है. इसके लिए हमें आर्थिक देशभक्ति और टेक्नोलॉजी देशभक्ति जगानी होगी. इसका अर्थ है – हमें स्वदेश में बनी वस्तुओं और स्वदेशी टेक्नोलॉजी को अपनाने की मानसिकता बनानी होगी.

परिचर्चा का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन से तथा समापन राष्ट्रगान से हुआ. कार्यक्रम के संयोजक कैलाश गूजर ने कार्यक्रम की प्रस्तावना रखी और गोपाल शरण गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापित किया.

परिचर्चा का आयोजन भारतीय इतिहास संकलन समिति (जयपुर प्रांत) एवं राजस्थान विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वाधान में विश्व संवाद केंद्र जयपुर के सहयोग से किया गया.