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महिला समूह को आत्मनिर्भर बना रही राधा-कृष्ण की पोशाकें, लाखों में हो रही कमाई

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कहते हैं यदि सच्चे मन से साधना की जाए तो असंभव भी संभव बन जाता है। ऐसी ही दृढ़ विश्वास और कामयाबी की कहानी है बिजनौर, उत्तर प्रदेश के राधे-कृष्ण स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं की। इस ग्रुप की सुमन ने अपने कन्हैया के लिए एक बार पोशाक बनाना शुरू किया, फिर तो क्या मानो सुमन के लिए जीवन के नये रास्ते मिल गये और रोजगार का स्थायी साधन भी। उनके हाथों से बने राधा-रानी के पोशाक देखते ही बनते हैं। उनके हाथों की कारीगरी देखकर लोग आश्चर्यचकित हो जाते हैं। इसके चलते उनके एक-एक पोशाक आठ से दस हजार रुपये में बिक रहे हैं। इस ग्रुप के बारे में जानकारी तब सामने आई जब पिछले दिनों लखपति दीदियों को सम्मानित करने के लिए सम्मान समारोह आयोजित हुआ।

इस दौरान ख्वाजा नंगला गांव की इंग्लिश समाज शास्त्र से एमए तथा बीएड उत्तीर्ण आरती मान ने संघर्ष और सफलता की कहानी सबके सामने रखी।उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत राधे-कृष्ण स्वयं सहायता समूह गठित किया गया। शुरुआत में विद्युत सखी बनकर बिजली बिलों की वसूली शुरू की। इसके बाद अपने साथ और महिलाओं को जोड़कर बैंक सखी के रूप में कार्य किया। इसी दौरान गांव में ही स्थित सैकड़ों वर्ष पुराने श्याम मंदिर से भक्ति भाव के कारण कुछ नया करने की प्रेरणा मिली। इस तरह वह करीब चार साल पहले राधा-रानी की पोशाक तैयार करने लगीं। और आज उनके हाथों से बने राधा-रानी के पोशाक को देखकर लोग भाव विभोर हो जाते हैं।

उन्होंने बताया कि एक पोशाक बनाने में लगभग पांच हजार रुपये तक का खर्च आता है। वहीं तैयार होने के बाद यह पोशाक लगभग आठ से दस हजार रुपये में बिक जाती है। उन्होंने बताया कि समय की कमी के चलते एक साल में 20 पोशाक ही बना पाते हैं। इस तरह आरती केवल आज स्वयं आत्मनिर्भर हैं बल्कि अन्य बहनों के लिए प्रेरणा स्रोत भी हैं।