हम आज भी नहीं भूले वह भयावह मंजर, जब घाटी में कश्मीरी हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा था. हम भी किसी तरह जान बचाकर भागे थे. विस्थापन का वह दर्द आज वर्षों बाद भी रुला जाता है. इन दर्द भरी यादों और कष्ट भरे समय के बीच वर्ष 2011 में सेवा भारती ने हमारा हाथ थामा, तब से आज तक सेवा भारती हमारा सम्बल बनी हुई है. बताते बताते अंजली की आंखों की कोरें भीग गईं. वह अपने आपको सम्भालती हुई बोली – कोरोना काल में कई घरों के चूल्हे नहीं जल पाए. संकट हम पर भी था, फिर तभी सेवा भारती ने हमारी सुध ली. हमने सेवा भारती से काम मांगा. सेवा भारती की ओर से हमें मास्क बनाने का काम मिला और हमारा चूल्हा कभी ठंडा नहीं पड़ा.
कश्मीरी विस्थापित परिवार की अंजली जयपुर में चल रहे सेवा भारती के राष्ट्रीय सेवा संगम में अपने जम्मू के अथरूट स्वयं सहायता समूह द्वारा तैयार किए जा रहे उत्पादों के साथ आईं हैं. वे बताती हैं कि विस्थापन के दर्द के साथ जीवनयापन की चिंता भी थी, जैसे-तैसे दिन कट रहे थे, तब 2011 में सेवा भारती का आना हुआ और उन्होंने विस्थापित परिवारों की महिलाओं को स्वावलम्बी बनने की प्रेरणा दी.
अंजली ने बताया कि उन्होंने महिलाओं के स्वयं सहायता समूह बनवाए, फिर प्रशिक्षण का कार्य शुरू किया. पहली बार उन्होंने सिलाई सीखी और सबसे पहले एप्रन सिला. तब से अब तक हमारे स्वयं सहायता समूह की महिलाएं 14 तरह के विभिन्न उत्पाद तैयार कर रही हैं और अपने परिवार के भरण-पोषण में सहयोगी की भूमिका निभा रही हैं.
जम्मू-कश्मीर में सेवा भारती की पूर्णकालिक कार्यकर्ता यशस्विनी ने बताया कि वर्षों से टैंट में रह रहे कश्मीरी विस्थापित हिन्दू परिवारों के सहयोग के लिए सेवा भारती ने यह तय किया था कि महिलाओं के लिए सशक्तीकरण केन्द्र शुरू करेंगे, ताकि वे स्वयं कुछ सीखकर अपना रोजगार शुरू कर सकें और अपने परिवार का सम्बल बन सकें.